मशीनें और माधुनिक उद्योग ५२७ . ५ . पर यह मम मशीनों के द्वारा ही किया जाता है। अब हम केवल उन मजदूरों की बशा की जांच करेंगे, जो अपने घरों पर बैठकर काम करते हैं और जो हस्तनिर्माणशालाओं या गोदामों में काम नहीं करते। और यहां हम इस व्यवसाय को जिन शाखामों पर विचार करेंगे, ये दो श्रेणियों में बंट जाती है, पानी (१) फ़िनिश करने वाली शालाएं और (२) मरम्मत करने वाली शालाएं। पहली श्रेणी में मशीन के बने हुए लैस पर क्रिनिश की जाती है, और उसमें अनेक उपशाखाएं शामिल हैं। लेस पर फ़िनिश करने का काम (lace finishing) या तो उन मकानों में किया जाता है, जो "mistresses' houses" ("मालकिनों के मकान") कहलाते हैं, या मजदूरिनें अपने घर पर ही अपने बच्चों की मदद से या उसके बिना यह काम पूरा कर देती हैं। "मालकिन के मकान" की मालकिन खुब भी गरीब होती है। जिस कोठरी में काम होता है, वह किसी निजी घर में होती है। मालकिन कारखानेदारों से या गोदामों के मालिकों से काम ले जाती है और कोठरी के प्राकार तथा काम की घटती-बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए औरतों, लड़कियों और छोटे-छोटे बच्चों को नौकर रख लेती है। इन कोठरियों में काम करने वाली मजदूरिनों की संख्या कहीं २० से ४० तक और कहीं १० से २० तक होती है। बच्चे प्रोसतन ६ वर्ष की उम्र में काम करना शुरू कर देते हैं, पर बहुत सी जगहों में वर्ष से भी कम के बच्चे होते हैं। काम के घण्टे साधारणतया सुबह ८ बजे से रात के ८ बजे तक होते हैं। बीच में १ घण्टे की खाने को छुट्टी मिलती है, जिसका कोई समय निश्चित नहीं होता, और अक्सर उन्हीं गंवी कोठरियों में खाना खाया जाता है। जब व्यवसाय में तेजी रहती है, तब अक्सर सुबह के ८ बजे या यहां तक कि ६ बजे ही काम शुरू हो जाता है और रात के १०,११ या १२ बजे तक चलता रहता है। इंगलड की फ़ौजी बारकों में हर फौजी को कानूनन ५००-६०० धन-फूट स्थान दिया जाता है, फौजी अस्पतालों में हर व्यक्ति के लिये १,२०० धन-फुट की व्यवस्था रहती है। लेकिन इन गंवी कोठरियों में, जहां लैस को फ़िनिश देने का काम होता है, हर व्यक्ति के लिये केवल ३७ से लेकर १०० धन-फुट तक ही स्थान होता है। साथ ही गैस की रोशनियां हवा की प्राक्सिजन को खा जाती है। हालांकि इन कोरियों का फर्श टाइलों या पत्थरों का बना होता है, फिर भी लैस को साफ रखने के लिये बच्चों को अक्सर बाड़ों में भी अन्दर पाने के पहले जूते उतार देने पड़ते हैं। "नोटिंधन में यह कोई प्रसाधारण बात कदापि नहीं है कि १४ से २० तक बच्चे एक ऐसी तंग कोठरी में भरे हों, वो शायद १२ वर्ग-कुट से अधिक की नहीं है, और दिन के २४ घण्टों में से १५ घण्टे का काम करते रहते हों, और काम भी ऐसा, जो एक तो जुन ही इतना थका देने वाला और नीरस हो कि भादमी का कचूमर निकाल दे और, दूसरे, जिसे हर प्रकार से मस्वास्थ्यप्रद वातावरण में करना पड़े। सबसे नन्हे बच्चे भी तनावपूर्ण वातावरण में और इतना ध्यान लगाकर तवा ऐसी फुर्ती के साथ काम करते हैं कि देखकर पाश्चर्य होता है। मुश्किल से ही कभी अपनी उंगलियों को कोई पाराम देते हैं या अपनी गति को धीमी करते हैं। यदि उनसे कोई सवाल किया जाता है, तब भी वे इस उद्देश्य से कि एक क्षण भी बरवाव म हो जाये, अपनी प्राव कमी काम से नहीं हटाते।" मालकिन जैसे-जैसे काम के घण्टों को लम्बा करती जाती है, वैसे-वैसे प्रदुम केस में अधिकाधिक रने का प्रयोग करने लगती है। "यह पंवा बड़ा ही नीरस, प्रांतों पर बहुत बोर गलने वाला और शरीर को सवा एक ,
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