५२८ पूंजीवादी उत्पादन ही स्थिति में रखने के कारण बहुत ही पका देने वाला है। इस पंचे लगे हुए बच्चे अधिकाधिक पकते जाते हैं और कई घण्टों की लम्बी कैद की समाप्ति का समय निकट माने तक चिड़ियों के समान बेचैन हो उठते हैं। उनका काम क्या है, सरासर गुलामी है" ("Their work is like slavery")।जब औरतें और उनके बच्चे अपने घर पर, जिसका प्राजकल मतलब है किराये की कोठरी और अक्सर तो केवल एक बरसाती, काम करते हैं, तब यदि सम्भव हो सकता है, तो स्थिति और भी खराब होती है। नोटिंघम को यदि केन माना जाये, तो ८० मील के प्रर्ष-व्यास का जो वृत्त बनता है, उसमें इस तरह का काम बांटा जाता है। बच्चे जब रात को ६ या १० बजे गोदामों के बाहर निकलते हैं, तो अक्सर उनको लेस का एक-एक बमल घर पर बैठकर पूरा करने के लिये पमा दिया जाता है। बगुलाभगत पूंजीपति, जिसका प्रतिनिधित्व उसका कोई कर्मचारी यहां पर करता है, हर बच्चे को एक-एक बडल देने के साथ-साथ यह पासपूर्ण वाक्य भी कहता जाता है कि "यह मां के लिये है", हालांकि यह अच्छी तरह जानता है कि इन प्रभागे बच्चों को भी रात को जागकर मां की मदद करनी पड़ेगी।" तकिये का लैस बनाने का धंधा मुख्यतया इंगलैण के दो खेतिहर इलाकों में होता है। उनमें से एक हौनिटन नामक लैस का इलाका है, जो वनशायर के दक्षिणी किनारे पर २० से ३० मील तक फैला हुआ है और जिसमें उत्तरी डेवन के भी कुछ स्थान शामिल हैं। दूसरे इलाके में बकिंघम, बेरोई और नोबम्पटन के बिलों का अधिकतर भाग और साथ ही इनसे मिले हुए प्रोक्सफ़ोरशायर तपा हंटिंगठनशायर के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। काम प्रायः खेतिहर मजदूरों की मोपड़ियों में होता है। बहुत से कारखानेवार ३,००० से भी अधिक लैस बनाने वालों से काम लेते हैं। लेस बनाने वालों में मुख्यतया बालिकायें और युवा लड़कियां होती है। उनमें लड़का एक नहीं होता। लैस पर फिनिश करने के धंधे (lace finishing) के सम्बंध में हमने जिन परिस्थितियों का वर्णन किया है, वे सब यहां पर भी पायी जाती है। केवल इतना अन्तर होता है कि “mistresses' houses" ("मालकिनों के मकानों") के स्थान पर यहां "lace-schools" ("लेस के स्कूल") होते है, जिनको गरीब पौरतें अपने शॉपड़ों में कायम कर देती हैं। पांच वर्ष की उम्र से और अक्सर तो इसके भी पहले से बच्चे यहाँ काम शुरू करते हैं और बारह या पन्द्रह वर्ष के होने तक काम करते हैं। बिल्कुल नन्हे बच्चे पहले वर्ष चार से पाठ घन्टे तक काम करते हैं, बाद को उनके काम का समय छः बजे सुबह से रात के पाठ या बस बजे तक हो जाता है। "जिन कोरियों में काम होता है, पाम तौर पर छोटे-छोटे मॉपड़ों की उन साधारण कोरियों के समान होती है, जिनको लोग रहने के लिये इस्तेमाल करते हैं। इसलिये कि हवा के तेव मोंके अन्दर न पायें, चिमनी का मुंह बन्द कर दिया जाता है। कोरी के अन्दर जो लोग काम करते हैं, वे महब अपने बदन की गरमी से ही गरम रहते हैं। जाड़ों में भी अक्सर यही स्थिति होती है। अन्य स्थानों में तवाकषित स्कूलों की ये कोरियो सामान रखने की छोटी- छोटी कोरियों के समान होती हैं, जिनमें उन्हें गर्माने के लिये कोई अंगीठी मी नहीं होती... . 1 "Ch. Empl. Comm. II Rep., 1864" (arharton gratuit et रिपोर्ट, १९६४'), पृ. XIX (उन्नीस), Xx (बीस XXI (इक्कीस)। 'उप. पु., पृ. XXI (इक्कीस), XXII (वाईस)। .
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