मशीनें और माधुनिक उद्योग . विशुद्ध रूप से प्राविधिक बाधामों के अलावा, जिन्हें प्राविधिक साधनों के द्वारा हटाया जा सकता है, खुद मजदूरों की अनियमित पावतों के कारण भी श्रम के घण्टों का नियमन करना मुश्किल हो जाता है। यह मुश्किल बास तौर पर वहां देखने को मिलती है, जहां कार्यानुसार मजबूरी का अधिक चलन है और वहां दिन या सप्ताह के एक भाग में यदि समय की कुछ हानि हो जाती है, तो वह बाद को मोवरटाइम काम करके या रात को काम करके पूरी कर दी जाती है। यह एक ऐसी किया है, जो बयस्क मजदूर को पशु-तुल्य बना देती है और उसकी पत्नी तथा बच्चों को बरबाद कर देती है।' श्रम-शक्ति खर्च करने में नियमितता का यह प्रभाव यपि एक ही तरह के नौरस काम को नागवार पकन की प्राकृतिक एवं तीन प्रतिक्रिया होता है, परन्तु उसके साथ-साथ इससे भी अधिक मात्रा में बह उत्पादन की अराजकता से पैदा होता है,- उस अराजकता से, वो सुब पूंजीपति द्वारा प्रम-शक्ति के अनियंत्रित शोषण की सूचक होती है। प्रौद्योगिक बक में बो नियतकालिक सामान्य परिवर्तन पाते रहते हैं और हर उद्योग पर मनियों के जिन विशिष्ट उतार-चढ़ावों का असर पड़ा करता है, उनके अलावा हमें उस चीज का भी ध्यान रखना होगा, जो "अनुकूल मौसम" कहलाती है और जो या तो इस बात पर निर्भर करती है कि वर्ष के कुछ खास मौसम समुद्री परिवहन के लिये उपयुक्त होते हैं और वे एक निश्चित समय पर पाते हैं, और या जो फ्रेशन पर और उन बड़े मारों पर निर्भर करती है जो यकायक मिल जाते हैं और जिनको कम से कम समय में पूरा कर देना पड़ता है। रेल और तार-व्यवस्था के विस्तार के साथ इस तरह के मार देने की भारत और जोर पकड़ लेती है। "रेल-व्यवस्था का देश भर में प्रसार हो जाने से फौरी पार देने की प्रावत को बहुत प्रोत्साहन मिला है। अब जरीवार ग्लासगो, मानचेस्टर और एडिनबरा से चौवह दिन में एक . कि फैक्टरी-कानूनों के विस्तार का कानून है) जो अस्थायी अव्यवस्था अनिवार्य रूप से पैदा होती है और जो असल में प्रत्यक्ष रूप से उन बुराइयों की सूचक होती है, जिनको दूर करना इस कानून का उद्देश्य था, उस अस्थायी अव्यवस्था के बावजूद मैं खुश हुए बिना नहीं रह सकता हूं, इत्यादि।" ("Rep. of Insp. of Fact., 31st Oct., 1865" ['फैक्टरी-इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६५'], पृ० ९६, ९७)। उदाहरण के लिये , पिघलाऊ भट्ठियों के सिलसिले में यह स्थिति है कि “ सप्ताह के अन्तिम दिनों में आम तौर पर काम की अवधि बहुत ज्यादा बढ़ा दी जाती है, क्योंकि मजदूरों को सोमवार को तथा कभी-कभी मंगलवार को भी कुछ समय तक या पूरा दिन काहिली में बिता देने की पादत पड़ी हुई है।" ("Child. Empl. Comm., III Rep." ['बाल-सेवायोजन मायोग की तीसरी रिपोर्ट '], पृ. VI [छ:]1) "छोटे-छोटे मालिकों के यहां पाम तौर पर काम के घण्टे बहुत अनियमित होते हैं। वे दो-दो या तीन-तीन दिन जाया कर देते हैं और फिर इस अति को पूरा करने के लिये रात भर काम करते हैं ... यदि उनके बच्चे होते हैं, तो वे सदा उनसे भी काम लेते हैं। (उप० पु०, पृ. VII [सात]1) "काम पर पाने में नियमितता का प्रभाव होता है, जिसे देर तक काम करके समय की क्षति को पूरा कर देने की सम्भावना तथा प्रचलित प्रथा से प्रोत्साहन मिलता है।' (उप० पु०, पृ. XVIII [मारह]) “बिर्मिघम में... प्रत्यधिक समय जाया हो जाता है ... कुछ समय मजदूर काहिली में बिता देते हैं, बाकी समय वे गुलामों की तरह मेहनत करते है।" (उप० पु०, पृ. XI [ग्यारह]।) 11 11