मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ५४३ . . हम तीसरी माधुनिक उद्योग की ही अनिवार्य पैदावार है। इन कानूनों के इंगलड में विस्तार पर विचार करने के पहले हम फैक्टरी-कानूनों की कुछ खास पारामों पर, जो काम के घण्टों से सम्बंधित नहीं है, संक्षेप में विचार करेंगे। सफाई से सम्बंध रखने वाली पारामों की शब्दावली इस ढंग की है कि पूंजीपति बड़ी प्रासानी से अपने बचाव की तरकीब निकाल लेते हैं। इसके अलावा, इन पारामों का क्षेत्र बहुत ही अपर्याप्त है, और सच पूछिये, तो ये धाराएं केवल दीवारों पर सफेदी कराने, कुछ अन्य मामलों में सफाई रखने, ताना हवा के लिये रोशनदानों की व्यवस्था करने और खतरनाक मशीनों से मजदूरों के बचाव का प्रबंध करने से सम्बंध रखने वाली पारामों तक ही सीमित है। मालिकों ने इन पारामों का, जिनके कारण उनको अपने मजदूरों के अंगों के बचाव के उपकरणों पर कुछ चर्चा करना पड़ रहा था, बीवानों की तरह बो सर्वस्त विरोध किया था, उसकी पुस्तक में फिर चर्चा करेंगे। उनके इस विरोष से स्वतंत्र व्यापार की उस कड़ि पर भी एक नया और तीला प्रकाश पड़ता है, जिसका यह कहना है कि विरोधी हितों वाले समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत लाभ के सिवाय और किसी पीत की चिन्ता न करते हुए अनिवार्य रूप से सब के कल्याण के लिये काम करता है। यहां एक उदाहरण काफी होगा। पाठक को मालूम है कि पिछले २० वर्षों में फ्लक्स के उद्योग का बहुत विस्तार हुमा है और इस विस्तार के साव प्रापरलैण्ड में scutching mills (फ्लेक्स को पीट-पीटकर उसका रेशा अलग करने वाली मिलों) की संख्या भी बढ़ गयी है। १८६४ में उस देश में १,८०० ऐसी mills (मिलें) थीं। शरव और शीत ऋतु में वहां नियमित रूप से स्त्रियों और लड़के-लड़कियों को, पास-पड़ोस के छोटे कास्तकारों की पत्तियों और पुत्र-पुत्रियों को, जिनका मशीनों के बिलकुल मादी न होने वाले वर्ग से सम्बन्ध होता है, तों से उठाकर scutching mills (फ्लक्स को पीट-पीटकर उसका रेशा अलग करने वाली मिलों) के बेलनों के बीच में फ्लैक्स डालने का काम करने के लिये नौकर रखा जाता है। इन मिलों में जितनी और बेसी भायानक दुर्घटनाएं होती हैं, उनकी मशीनों के इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलती। कोर्क के निकट किल्डिनान में स्थित इस तरह की एक मिल में १८५२ और १८५६ के बीच छः दुर्घटनाएं ऐसी हुई, जिनमें मजदूरों की मान गयी, और साठ दुर्घटनामों में ये लुंज-पुंज हुए। इन तमाम दुर्घटनामों को कुछ शिलिंग के सस्ते और बहुत ही सरल उपकरण लगाकर रोका जा सकता था। गउनपैदिक में फैक्टरियों को सर्टीफिकेट देने वाले गक्टर (certifying surgeon) ग. रब्लयू० व्हाइट ने १५ दिसम्बर १८६५ को अपनी रिपोर्ट में लिखा है : "scutching mills (फ्लेक्स को पीट-पीटकर उसका रेशा अलग करने वाली मिलों) में घटने वाली गम्भीर दुर्घटनाएं बहुत गरावनी किस्म की होती है। बहुत सी दुर्घटनामों में शरीर का चौथाई भाग पड़ से अलग हो जाता है, और उसके फलस्वरूप या तो पावमी मर जाता है और या उसे बाकी बीवन लाचार और मुहताज बनकर तुल भोगना पड़ता है। देश में मिलों की संख्या में वृद्धि हो जाने से, बाहिर है, इन भयानक परिणामों की और वृद्धि होगी, और यदि इन मिलों को कानून के मातहत कर दिया जाये, तो बड़ा भारी उपकार हो। मुझे विश्वास है कि scutching mills (पलेक्स को पीट-पीटकर उसका रेशा अलग करने वाली मिलों) का यदि समुचित रूप से निरीक्षण हो, तो पावकल जाने वाली बानों और भेंट बढ़ने वाले अंगों को बचाया जा सकता है। 1 उप० पु०, पृ. XV (पन्द्रह), अंक ७२ और उसके प्रागे के अंक ।
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