मशीनें और माधुनिक उद्योग ५५५ अपनी अन्तिम रिपोर्ट में Ch. Empl. Comm. (बाल-सेवायोजन पायोग) मे १४,००,००० से अधिक बच्चों, लड़के-लड़कियों और स्त्रियों पर फैक्टरी-कानून लागू करने का सुझाव दिया है। इनमें से लगभग पाषे ऐसे हैं, जिनका छोटे उद्योगों में और तथाकषित घरेलू काम के द्वारा शोषण हो रहा है। मायोग ने लिखा है: "परन्तु यदि संसद को बच्चों, लड़के-लड़कियों और स्त्रियों की उस पूरी संख्या को, जिसका हमने ऊपर जिक्र किया है, कानून के संरक्षण में रख देना उचित प्रतीत हो तो इसमें तनिक भी सन्देह नहीं हो सकता कि ऐसा कानून न केवल बच्चों और दुर्वल व्यक्तियों के लिये, जिन्हें संरक्षण देना इसका फ़ौरी उद्देश्य है, अत्यन्त हितकारी सिड होगा, बल्कि उससे उन वयस्क मजदूरों को भी बहुत लाभ पहुंचेगा, जिनकी संख्या और भी बड़ी होती है और जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों उंग से इन तमाम पंधों में तत्काल'ही इस कानून के प्रसर के नीचे मा जायेंगे। इस तरह का कानून इन तमाम मजदूरों के लिये काम के नियमित और सीमित घन्टे अनिवार्य बना देगा; इस कानून के फलस्वरूप मजदूरों के काम के स्थान स्वास्थ्यप्रद एवं स्वच्छ बशा में रखे जाने लगेंगे ; प्रतएव उससे मजदूरों की शारीरिक शक्ति के उस भार की सुरक्षा और वृद्धि में सहायता मिलेगी, जिसपर उनका अपना कल्याण और उनके देश का कल्याण इतना अधिक निर्भर करता है । इस प्रकार के कानून से नयी पीढ़ी बचपन में ही प्रत्यषिक श्रम करने से बच जायेगी, जो उनके बदन का सारा सत सोल गलता है और उनको असमय ही बूढ़ा बना देता है; और, अन्त में, इस तरह का कानून नयी पीढ़ी के लिये कम से कम १३ वर्ष की आयु तक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर सुनिश्चित करेगा, और इस तरह यह कानून उस भयानक जहालत का अन्त कर देगा...जिसका हमारे सहायक कमिश्नरों की रिपोर्टों में इतना सच्चा चित्र देखने को मिलता है और जिसे देखकर हरेक को अत्यधिक कष्ट और राष्ट्रीय पतन की तीव अनुभूति का होना अनिवार्य है। अनुदार' बल के मंत्रिमण्डल ने ५ फरवरी १८६७ को शाही अभिभाषण के रूप में यह III Rep." ('बाल-सेवायोजन आयोग की तीसरी रिपोर्ट'), पृ० १३, अंक १४; पृ० २५, अंक १२१, पृ० २६, अंक १२५; पृ० २७, अंक १४० , इत्यादि । आयोग ने जिन धंधों पर कानून लागू करने का सुझाव दिया है, उनकी सूची इस प्रकार है : लैस बनाना , मोजे बुनना , सूखी घास की बुनी हुई वस्तुएं तैयार करना , पहनने के कपड़ों का हस्तनिर्माण तथा उसकी अनेक उपशाखाएं, बनावटी फूल बनाना , जूते बनाना, दस्ताने बनाना, दर्जीगीरी, पिघलाऊ-भट्ठियों से लेकर सुई बनाने के कारखानों तक धातु का काम करने वाले हर तरह के कारखाने, काग़ज़ की मिलें, कांच के कारखाने , तम्बाकू के कारखाने , रबड़ के कारखाने , धागे बटना (बुनाई के लिये), हाथ से कालीन बनाना, छाते और छतरियां बनाना, तकुए और फिरकियां बनाना, टाइप की छपाई, जिल्दसाजी, लेखनसामग्री (sta- tionery, जिसमें काग़ज़ के थैले , कार्ड, रंगीन काग्रज प्रादि भी शामिल है) बनाना, रस्सियां बनाना, काले पत्पर (jet) के जेवर बनाना, इंटें बनाना, रेशम का हस्तनिर्माण, कोवेण्टरी की बुनाई, नमक के कारखाने, चरबी की बत्तियां बनाना, सीमेंट के कारखाने, चीनी साफ़ करने वाली मिलें , बिस्कुट बनाना , लकड़ी से सम्बंधित अनेक उद्योग और दूसरे मिले-जुले धंधे। 'उप. पु., पृ. XXV (पच्चीस), अंक १६६ । • यहां पर ("मनुदार दल के मंत्रिमण्डल से 'सीनियर के शब्दों में" तक) अंग्रेजी पाठ जिसके अनुसार हिन्दी पाठ है, चौधे जर्मन संस्करण के अनुसार बदल दिया गया है।- सम्पा. टोप बनाना, - . , 13 (G .
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