पूंजीवादी उत्पादन - ऐलान किया कि उसने प्रौद्योगिक जांच-पायोग की सिफारिशों को बिलों काम दे दिया है। ऐसा होने के पहले,२० वर्ष तक एक नया प्रयोग (experimentum In corpore vili) चलता रहा जिसका खमियाजा मखदूर-वर्ग को उठाना पड़ा था। उसके बाद कहीं जाकर यह ऐलान हो सकाया। संसद ने बच्चों के श्रम के बारे में जांच करने के लिए १८४० में ही एक पायोग नियुक्त कर दिया था। सीनियर के शब्दों में, इस पायोग की १८४२ की रिपोर्ट से "मालिकों और मां-बापों के लोन,स्वार्थ और निर्दयता का पोर लड़के-लड़कियों तवा बच्चों के कष्ट, पतन पोर विनाश का एक ऐसा भयानक चित्र सामने पाया, जैसा इसके पहले कभी नहीं पाया पा... .ऐसा भी समझा जा सकता है कि यह रिपोर्ट एक बीते हुए युग की विभीषिकानों का वर्णन करती है। परन्तु दुर्भाग्य से हमारे पास इस बात का प्रमाण मौजूद है कि ये विभीषिकाएं मान भी ज्यों की त्यों मौजूद हैं। लगभग २ वर्ष हुए हारविक ने एक पुस्तिका प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया है कि १८४२ में जिन बुराइयों का रोना रोया गया, वे प्राव भी उसी तरह फल-फूल रही है। मखदूस्वर्ग के बच्चों के प्राचरण तथा स्वास्थ्य के प्रति ग्राम तौर पर कैसी लापरवाही बरती जाती है, इसका प्रमाण यह है कि यह रिपोर्ट २० वर्ष तक यों ही पड़ी रही और किसी ने उसकी मोर ध्यान नहीं दिया ; और इस बीच वे बच्चे, जिनको इस बात का तनिक भी मामास नहीं दिया गया था कि नैतिकता शब्ब का क्या अर्थ होता है, और जिनमें न तो जान था, न धर्म और न ही स्वाभाविक स्नेह, मौजूना पीढ़ी के मां-बाप बन गये।" अब चूंकि सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन हो गया था, इसलिये संसद को १८४० के प्रायोग की मांगों की भांति १८६२ के पायोग की मांगों को भी टाल देने की हिम्मत नहीं हुई। चुनाचे, पायोग ने भी अपनी रिपोर्टों का केवल एक भाग ही प्रकाशित किया था कि १८६४ में मिट्टी का सामान (जिसमें मिट्टी के बर्तन भी शामिल थे) बनाने वाले उद्योगों पर, दीवार पर मढ़ने वाला कागज, दियासलाइयां, कारतूस और टोपियां बनाने वालों पर पौर क्रस्टियन काटने वालों पर कानून लागू कर दिये गये, वो कपड़ा उद्योगों पर लागू । ५ फरवरी १८६७ को अनुवार-वलीय मंत्रिमल ने शाही अभिभाषण में ऐलान किया कि अब जांच-पायोग की, जिसने अपना काम १९६६ में समाप्त कर दिया था, सिफारिशों पर पापारित बिल संसद में पेश किये जा रहे हैं। IFactory Acts Extension Act (फैक्टरी-कानूनों के प्रसार का कानून ) १२ अगस्त १८६७ को पास हुमा था। उसके द्वारा धातु की ढलाई, गढ़ाई और धातु का काम करने वाले तमाम कारखानों का, जिनमें मशीनें बनाने वाले कारखाने भी शामिल थे, नियमन किया गया था। इसके मलावा, कांच, कागज, गटापारचा, रबड़ पौर तम्बाकू के कारखानों पर, छापेखानों पर, जिल्दसावी का काम करने वाले कारखानों पर पौर, अन्त में, ५० से अधिक व्यक्तियों से काम लेने वाले सभी कारखानों पर भी यह कानून लागू किया गया था।-१७ अगस्त १८६७ को पास किया गया Hours of Labour Regulation Act (श्रम के घण्टों का नियमन करने वाला कानून) अपेक्षाकृत छोटे कारखानों और तथाकथित घरेलू काम का नियमन करता है। इन कानूनों की पौर १८७२ के नये Mining Act (बानों के कानून ) की में दूसरे बण्ड में पुनः पर्चा करूंगा। - Senior, “Social Science Congress" (सीनियर, 'सामाजिक विज्ञान की कांग्रेस'), पृ.५५-५८ । - - -
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