मशीनें और प्राधुनिक उद्योग , . . Jaly, 1866" ("सानों के बारे में प्रवर समिति की रिपोर्ट, मय...के। गवाहियां, २३ जुलाई १८६६)। इस रिपोर्ट को एक संसदीय समिति ने तैयार किया है, जिसके सदस्य हाउस माफ कामन्स के सदस्यों में से चुने गये और जिनको गवाहों को तलब करने और उनके बयान लेने का अधिकार दिया गया था। यह बड़े प्राकार की एक मोटी पोपी है। रिपोर्ट जुद केवल पांच पंक्तियों में पूरी हो जाती है, जिनमें कहा गया है कि समिति को कुछ नहीं कहना है, और यह कि अभी और गवाहों के बयान लेने की जरूरत है! गवाहों के बयान लेने का तरीका ऐसा था, जिसे देखकर अंग्रेजी अदालतों में गवाहों की जिरह (cross-examination) की याद माती थी, जहां वकील गवाह को राने, उलझाने पौर घबराहट में गल देने के लिये उसके साथ गुस्ताखी करता है, उससे अप्रत्याशित , गोलमोल और उलझन में गल देने वाले सवाल पूछता है, जिनका विषय से कोई सम्बंध नहीं होता, और उससे घुमा-फिराकर हासिल किये गये जवाब को मनमाने पर्व पहनाने की कोशिश करता है। इस जांच में समिति के सदस्य खुद गवाहों से जिरह करते थे, और उनमें खानों के मालिक और सानों का उपयोग करने वाले पूंजीपति बोनों शामिल थे; गवाह क्यादातर कोयला-सानों में काम करने वाले मजदूर थे। यह पूरा नाटक पूंजी की भावना का एक इतना अच्छा उदाहरण है कि इस रिपोर्ट के कुछ उद्धरण हम पाठक के सामने प्रस्तुत किये बिना नहीं रह सकते। पूरी सामग्री को संक्षिप्त रूप में पेश करने के लिये मैंने इन उद्धरणों का वर्गीकरण कर दिया है। मैं यह भी कह दूं कि सरकारी प्रकाशनों में हर सवाल और उसके जवाब पर नम्बर पड़ा हुआ है। १) खानों में १० वर्ष और उससे अधिक मायु के लड़कों को नौकर रखना-खानों में काम प्रायः १४ या १५ घण्टे चलता है, जिसमें पाने-बाने का समय भी शामिल है; कमी- कभी तो सुबह के ३, ४ र ५ बजे से शाम के ५ र ६ बजे तक काम चलता रहता है (नं० ६, ४५२, २३)। वयस्क मजदूर पाठ-पाठ घन्टे की दो पालियों में काम करते हैं; लेकिन खर्च के कारण लड़कों के लिये ऐसी व्यवस्था नहीं होती (नं ८०, २०३, २०४)। छोटे लड़कों से मुख्यतया खान के विभिन्न भागों में रोशनदान का काम करने वाले दरवाजों को खोलने और बन्द करने का काम लिया जाता है। बड़े लड़कों से कोयला ढोने मादि का ज्यादा भारी काम कराया जाता है (नं. १२२, ७३६, १७४७)। ये लड़के १८ या २२ वर्ष की प्रायु तक समीन की सतह के नीचे रोजाना इतनी देर तक काम करते रहते हैं। उसके बाद उनको खान सोबने वालों का वास्तविक काम मिल जाता है (नं० १६१)। बच्चों और लड़के-लड़कियों के साथ पाजकल जैसा बराब व्यवहार किया जाता है और उनसे जैसी कड़ी मेहनत करायी जाती है, वैसा इसके पहले कभी देखने में नहीं पाया था (नं० १६६३-१६६७) खान-कामगार लगभग एक स्वर से यह मांग करते हैं कि संसब एक कानून बनाकर खानों में १४ वर्ष से कम उन के बच्चों को नौकर रखने की मनाही कर दे। और अब हस्सी विवियन (जो जब भी खानों का उपयोग करते हैं) प्रश्न करते हैं : "क्या मजदूर को राप उसके परिवार की गरीबी पर निर्मर नहीं करेगी? "-मि० दूस: "पापके विचार में १२ पौर १४ वर्ष के बीच की उम्र के जिस बच्चे का जनक चोट ला गया है, या बीमार है, या जिसका बाप मर गया है और केवल मा चिन्दा है, उसको अपने परिवार के पालन-पोषण के लिये १ शिलिंग ७ पेन्स रोवाना कमाने से रोक देना या अन्याय नहीं होगा?.. क्या पाप चाहते हैं कि सब के लिये एक सामान्य नियम बनाया जाये?.. या पाप यह सिफारिवा करने के लिये तैयार है कि १२ और १४ वर्ष से कम उनके बच्चों से, उनके मां-बापों की चाहे कुछ भी हालत हो, कानून बनाकर काम लेने की .
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