५७६ पूंजीवादी उत्पादन - . चाहता है, तो उसके रास्ते में भी कोई ऐसी प्राकृतिक बाधा नहीं पा सकती, बो उसके लिये ऐसा करना सर्वथा असम्भव बना है। श्रम की उत्पादकता का ऐतिहासिक ढंग से विकास हमा है, और, जैसा कि कभी-कभी देखने में प्राता है, उसके साथ किन्हीं रहस्यवादी विचारों को हरगिज नहीं जोड़ना चाहिये। जब मनुष्य पशुओं के स्तर से ऊपर उठ जाते हैं और इसलिये जब उनके श्रम का कुछ हद तक समाजीकरण हो जाता है, केवल तभी ऐसी स्थिति पैदा होती है, जिसमें एक प्रादमी का अतिरिक्त श्रम वूसरे भावमी के अस्तित्व को शतं बन जाता है। सभ्यता के उदय के काल में श्रम की उत्पादकता बहुत कम होती है, पर उसके साथ-साथ आवश्यकताएं भी कम होती है, वे तो उनको पूरा करने के साधनों के साथ-साथ और उनके द्वारा बढ़ती है। इसके अलावा, उस प्रारम्भिक काल में समाज का दूसरों के श्रम पर जीवित रहने वाला भाग प्रत्यक्ष उत्पादकों की विशाल संख्या के मुकाबले में बहुत ही छोटा था। श्रम की उत्पादकता में प्रगति होने के साथ-साथ समाज का यह छोटा सा भाग निरपेक्ष और सापेक्ष दोनों दृष्टियों से बढ़ता जाता है। इसके अतिरिक्त, पूंजी, मय उन सम्बंधों के, जो उसके साथ-साथ चलते हैं, एक ऐसी मार्षिक भूमि में जन्म लेती है, जो खुद विकास को एक लम्बी किया का फल होती है। श्रम की उत्पादकता, वो पूंजी की नींव और उसके प्रस्थान-बिंदु का काम करती है, प्रकृति की नहीं, सदियों पुराने इतिहास की देन है। सामाजिक उत्पादन के रूप के न्यूनाषिक विकास के अलावा श्रम की उत्पादकता भौतिक परिस्थितियों से भी सीमित होती है। ये सारी परिस्थितियां खुब मनुष्य को गठन से (नस्ल मादि से) और उसके इर्द-गिर्द के प्राकृतिक वातावरण से सम्बंध रखती हैं। बाहरी भौतिक परिस्थितियां दो बड़ी पार्षिक भेणियों में बंट जाती है : (१) जीवन-निर्वाह के साधनों के रूप में पायी जाने वाली प्राकृतिक सम्पदा, अर्थात् उपजाऊ परती, मछलियों पावि से भरी हुई नदियां, सागर और तालाब मावि, और (२) मम के साधनों के रूप में पायी जाने वाली प्राकृतिक सम्पदा, जैसे जल-प्रपात, नावें ले जाने योग्य नदियां, जंगली लकड़ी, पातु, कोयला प्रादि । सम्यता के उदय-काल में पहली श्रेणी पासा पलटती है, विकास की अधिक अंची अवस्था में दूसरी श्रेणी का निर्मायक महत्व होता है। मिसाल के लिये, इंगलड का हिन्दुस्तान के साथ मुकाबला कीजिये या प्राचीन काल के एस और कोरिन्थ की काले सागर के किनारे के देशों से तुलना कीजिये। तत्काल सन्तुष्टि की मांग करने वाली प्राकृतिक प्रावश्यकताबों की संख्या जितनी कम होती है और भूमि की स्वाभाविक उर्वरता जितनी प्यावा तथा जलवायु जितना अधिक उपयुक्त होता है, उत्पादक के जीवन-निर्वाह तथा पुनरुत्पादन के लिये उतना ही कम मम-काल पावश्यक होता है। और इसलिये खुद अपने लिये वह बो मन करता है, उसके मुकाबले में वह दूसरों के लिये उतना ही अधिक मन कर सकता है। विमोबोरस ने बहुत दिन पहले प्राचीन मिन के निवासियों के सम्बंध में यह कहा था: "अपने बच्चों के लालन-पालन में उनको इतना कम "अमरीका के प्रादिवासियों में लगभग हर चीज मजदूर की होती है। सौ में से ६६ हिस्से मजदूर के हिसाब में जाते हैं । इंगलैण्ड में शायद २ भी मजदूर के हिस्से में नहीं पड़ता। ("The Advantages of the East India Trade, &c." ['ईस्ट इण्डिया के व्यापार के लाम, इत्यादि'], पृ. ७३।)
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५७९
दिखावट