निरपेक्ष और सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य ५८१ . . मिल ने लिखा है: "मुनाने का कारण यह है कि मम के भरण-पोषण के लिये जितना सी है, वह उससे अधिक पैदा कर देता है।" यहाँ तक तो वही पुराना राग है, पर मिल अपनी तरफ से भी कुछ जोड़ना चाहते हैं, सो वह मागे कहते हैं: "प्रमेय का रूप बदलकर हम यह कह सकते हैं कि पूंजी के मुनाफा देने का कारण यह है कि भोजन, कपड़ा सामान पोर प्रोवारों को तैयार करने में जितना समय लगता है, ये सब पी उससे ज्यादा समय तक काम में प्राती रहती हैं। यहां मिल ने भम-काल की अवधि को उसकी पैदावार के इस्तेमाल की अवधि के साथ गड़बड़ा दिया है। इस दृष्टिकोन के अनुसार, अगर एक रोटी पकाने वाले की पैदावार केवल एक दिन चलती है, तो वह अपने मजदूरों से मशीन बनाने वाले के बराबर मुनाफ़ा कभी हासिल नहीं कर सकता, जिसकी पैदावार २० वर्ष तक या उससे भी ज्यादा पल जाती है। जाहिर है, इतनी बात तो सब है ही कि पक्षियों को घोसला बनाने में जितना समय लग जाता है, अगर घोसला उतने से अधिक समय न टिक पाये, तो परिवे घोंसले बनाना बन्न कर दें। इस मौलिक सत्य की एक बार स्थापना हो जाने के बाद मिल व्यापारवादियों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करते हैं। वह लिखते हैं: “इस प्रकार, हम देखते हैं कि मुनाफा विनिमय की घटना से नहीं, बल्कि मन की उत्पादक शक्ति से उत्पन्न होता है और किसी भी देश का सामान्य मुनाफ़ा, यहाँ विनिमय होता हो या नहीं, सदा मम की उत्पादक शक्ति से निर्धारित होता है। यदि पंचों का विभाजन न हो, तो खरीदना-पेचना भी नहीं होगा, मगर मुनाफा फिर भी होगा।" इसलिये, मिल की दृष्टि में विनिमय, खरीदना और बेचना-पूंजीवादी उत्पावन की ये सामान्य परिस्थितियां -एक घटना मात्र है, और अम-शक्ति का क्रय-विषयम होने पर भी मुनाफा. बर होगा! बह पाने लिखते हैं: “पदि देश के मजदूर मिलकर अपनी मजदूरी से बीस प्रतिशत ज्यादा पैदा कर देते हैं, तो चीजों के बाम कुछ भी हों या न हों, मुनाफा बीस प्रतिशत का होगा।" यह एक मोर तो एक असाधारण डंग की पुनरुक्ति है, क्योंकि अगर मवदूर पूंजीपति के लिये २० प्रतिशत का अतिरिक्त मूल्य पैदा कर देते हैं, तो जाहिर है कि मखदूरों की कुल मजबूरी के साथ उसके मुनाने का २०:१०० का अनुपात होगा। दूसरी पोर, यह कहना बिलकुल गलत है कि "मुनाफा बीस प्रतिशत का होना"। मुनाका इससे हमेशा कम होगा, क्योंकि वह सवा पूंजी के फुल मोड़ पर निकाला जायेगा। मिसाल के लिये, अगर पूंजीपति ने ५०० पौण की पूंजी लगायी है, जिसमें से ४०० पौन उत्सावन के साधनों पर हुए हैं और १०० पाल मजदूरी पर और पनि प्रतिरिक्त मूल्य की पर २० प्रतिशत है। तो मनाने की पर २०.५००, प्रात् ४ प्रतिशत होगी, न कि २० प्रतिशत । इसके बाद हमें इतकी एक बड़ी पड़िया मिसाल देखने को मिलती है कि मिल सामाजिक उत्पादन के विभिन्न ऐतिहासिक मौके साथ कैसे का पाते हैं। वह लिखते हैं:." में वह परिस्थिति मानकर चल रहाई को कुछ अपवादों को मेड़कर सारे संसार में पायी जाती है। यहाँ मजदूरों और पूंजीपतियों के दो अलग-अलग वर्ग होते हैं। यानी में बराबर यह मानकर पल पहाई कि मय मजदूर की उपरत के सारा पर्चा पूंजीपति करता है।" यह भी एक अचीव रंग का दृष्टि-भ्रम है कि मिल को सारे संसार में बह स्थिति विताई देती है, जो अभी तक हमारी परती के बन्द बास-मास स्थानों पर ही पायी जाती है। बहरहाल हम अपनी बात पूरी करें। मिल यह मानने को तैयार है कि "उसका ऐसा करना किसी नैसर्गिक भावश्यकता
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