पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५८५

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५८२ पूंजीवादी उत्पादन कारण खरी नहीं है। इसके विपरीत, "मजदूर चाहे, तो अपनी मजदूरी के उस सारे भाग के लिये, जो महज जीवन की पावश्यकताओं से अधिक होता है, उत्पादन पूरा होने तक व्हर सकता है। और यदि अस्थायी म से अपने भरण-पोषण के लिये काफी पैसा उसके हाथ में हो तो वह पूरी मजदूरी के लिये भी ठहर सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में मजदूर व्यवसाय को चलाने के लिये मावश्यक पैसे का एक भाग अपने पास से देकर असल में इस हद तक खुब पूंजीपति की भूमिका अदा करने लगता है।" घोड़ा और आगे बढ़कर मिल यह भी कह सकते थे कि वो मखदूर न केवल अपनी जीवन की पावश्यकतामों को खुद पूरा कर लेता है, बल्कि उत्पादन के साधन भी मुहैया कर लेता है, वह असल में खुद अपना मजबूर होता है। और तब वह यह भी कह सकते थे कि अमरीका का काश्त करने वाला किसान महब कृषि-वास होता है, जो सामन्त के बजाय खुद अपने लिये बेगार करता है। इस प्रकार, साफ़-साफ़ यह साबित करने बाव कि अगर पूंजीवादी उत्पादन का अस्तित्व न हो, तो भी वह हमेशा कायम रहेगा, मिल बड़ी सुसंगतता का परिचय देते हुए इसके विपरीत यह भी प्रमाणित कर देते हैं कि वहां पर पूंजीवादी उत्पादन कायम है, वहां भी उसका कोई अस्तित्व नहीं होता। "और पहली स्थिति में भी" (जहाँ पूंजीपति मजबूर को जीवन के लिये पावश्यक सभी वस्तुएं बेता है) "उसको" (मजदूर को) "उसी रोशनी में देखा जा सकता है," अर्थात् उसको भी पूंजीपति समझा जा सकता है, "पयोंकि वह अपना मन बाबार-भाव से कम कीमत पर रे देता है (I) और इसलिये यह समझा जा सकता है कि उसके भम के बाबार- भाव तथा उसकी मजबूरी में जो अन्तर होता है, वह रकम (2) मजदूर अपने मालिक को उपार रे देता है, जिसका उसे सूब मिल जाता है, इत्यादि।"1 वास्तव में मजदूर एक हप्ते मावि तक अपना श्रम पूंजीपति को मुफ्त में पेशगी देता रहता है, और हफ्ते मादि के अन्त में उसे बाजार-भाव के अनुसार उसके दाम मिल जाते हैं। और यह बीच है, को, मिल के कवनानुसार, मजदूर को पूंजीपति में बदल देती है ! समतल मैदान में साधारण टीले भी पहाड़ियों चैते मालूम होते हैं और मानकल के मीण-बुद्धि पूंचीपति वर्ग की दिमाग्री समतलता उसके महान दिमागों की ऊंचाई से नापी जा सकती है। । . . . •२८ नवम्बर १८७८ के अपने पत्र में मार्क्स ने एन • एफ. डेनियलसन (निकोलाई-प्रोन) को. जो सुझाव दिया था, उसके माधार पर इस पैरे का "यह भी एक मजीब ढंग का दृष्टि- प्रम" से लेकर “किसी नैसर्गिक पावश्यकता के कारण जरूरी नहीं है" तक का अंश इस तरह होना चाहिये : "मि. मिल यह मानने को तैयार है कि एक ऐसी पार्षिक व्यवस्था में भी, जहां मजदूरों और पूंजीपतियों के दो अलग-अलग वर्ग है, पूंजीपति का यह करना सर्वथा जरूरी नहीं है।"-पसी संस्करण में मारवार-लेनिनवार इंस्टीट्यूट का नोट । J. St. Mill, “Principles of Pol. Econ." (जान स्टुअर्ट मिल, मर्यशास्त्र के सिद्धान्त'), London, 1868, पृ. २५२-२५३, विभिन्न स्थानों पर।