५९. पूंजीवादी उत्पादन . (२) अतिरिक्त मूल्य के परिमान और मम शक्ति के मूल्य के परिमाण के पारस्परिक सम्बंध में वो भी तबदीली पाती है, वह अतिरिक्त मम के निरपेक्ष परिमाण में और इसलिये अतिरिक्त मूल्य के निरपेक्ष परिमाण में परिवर्तन होने के फलस्वरूप पाती है। (३) मम-शक्ति की पिसाई पर अतिरिक्त श्रम को लम्बा जींचने की जो प्रतिक्रिया होती है, मम-शक्ति का निरपेक मूल्य केवल उस प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ही बदल सकता है। इसलिये भम-शाक्ति के निरपेक्ष मूल्य में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन अतिरिक्त मूल्य के परिमाण में होने पाले परिवर्तन का कारण कमी न होकर सवा उसका परिणाम होता है। हम सबसे पहले उस सूरत को लेते हैं, जब काम का दिन छोटा कर दिया जाता है। (१) जब उपर्युक्त परिस्थितियों में काम का दिन छोटा किया जाता है, तो भम- शाक्ति का मूल्य और उसके साथ-साथ पावश्यक भम-काल ज्यों के त्यों बने रहते हैं। पर अतिरिक्त मम और अतिरिक्त मूल्य कम हो जाते हैं। अतिरिक्त मूल्य के निरपेक्ष परिमाण के साथ-साथ उसका सापेक्ष परिमाण भी कम हो जाता है, अर्थात् उसका परिमाण अम-शक्ति के मूल्य की तुलना में कम हो जाता है, जिसका परिमाण ज्यों का त्यों रहता है। इस स्थिति में पूंजीपति किसी भी तरह के नुकसान से केवल इसी प्रकार बच सकता है कि मम-शक्ति के राम को उसके मूल्य से भी कम करो। काम के दिन को छोटा करने के बिस माम तौर पर जितनी बलीलें दी जाती है, उन सब में यह मान लिया जाता है कि काम का दिन उन परिस्थितियों में छोटा किया जाता है, जिनको हम यहाँ मानकर चल रहे हैं। वास्तव में इसका उल्टा होता है। श्रम की उत्पादकता और तीव्रता का परिवर्तन या तो काम के दिन के छोटा किये जाने के पहले या तुरन्त उसके बाद हो जाता है। (२) मान लीजिये कि काम के दिन को लम्बा कर दिया जाता है। फर्व कीजिये कि पावश्यक मम-काल ६ घण्टे का है, या भम-शक्ति का मूल्य ३ शिलिंग है। और मान लीजिये कि अतिरिक्त श्रम ६ घण्टे का होता है, या अतिरिक्त मूल्य भी ३ शिलिंग का होता है। तब काम का पूरा दिन १२ घन्टे का होगा और वह ६ शिलिंग के मूल्य में निहित होगा।अब यदि काम के दिन को २ घण्टे और बढ़ा दिया जाये और मन-शक्ति का नाम ज्यों का त्यों रहे, तो अतिरिक्त मूल्य निरपेक्ष और सापेक्ष दोनों दृष्टियों से बढ़ जायेगा। मम-शक्ति के मूल्य में यद्यपि कोई निरपेक्ष परिवर्तन नहीं होता, तथापि बह सापेन दृष्टि से गिर जाता है। जिन परिस्थितियों को हम १ में मान कर चले थे, उनके अन्तर्गत मम शक्ति के मूल्य के सापेक्ष परिमाण में उस वक्त तक कोई परिवर्तन नहीं हो सकता था, जब तक कि उसके निरपेक्ष परिमाण में भी परिवर्तन नहीं हो जाता। यहां पर, उसके विपरीत, श्रम-शक्ति के मूल्य के सापेन परिमाण में होने वाला परिवर्तन अतिरिक्त मूल्य के निरपेल परिमाण के परिवर्तन का नतीजा होता है। 1 . 1 "इसकी क्षतिपूर्ति करने वाली कुछ परिस्थितियां होती है... जिनपर Ten Hours' Act (दस घण्टे के कानून) के अमल में पाने से कुछ प्रकाश पड़ा है।" ("Rep. of Insp. of Fact. for 31st Oct. 1848" ['फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८४८'], पृ०७।)
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