बीसवां अध्याय समयानुसार मजदूरी मजबूरी खुब भी अनेक प्रकार के रूप धारण करती है, हालांकि अर्थशास्त्र की साधारण पुस्तकों में इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया जाता। इन पुस्तकों की प्रश्न के केवल भौतिक रूप में ही दिलचस्पी होती है, और वेप के प्रत्येक भेद को अनदेखा कर देती है। किन्तु इन तमाम मों का विवेचन तो केवल विशेष रूप से मजदूरी का अध्ययन करने वाले पंचों में ही किया जा सकता है। इस पुस्तक में उसका स्थान नहीं है। फिर भी यहां पर मजदूरी के दो मौलिक मों का संक्षिप्त वर्णन तो करना ही होगा। पाठक को याद होगा कि श्रम-शक्ति की बिक्री सदा एक निश्चित अवधि के लिये होती है। इसलिये श्रम-शक्ति का दैनिक मूल्य, साप्ताहिक मूल्य प्रादि जिस परिवर्तित रूप में सामने पाते है, यह समयानुसार मखदूरी, अर्थात् पैनिक मजबूरी, साप्ताहिक मजदूरी पावि का रूप है। दूसरी बात हमें यह देखनी चाहिये कि १७ वें अध्याय में श्रम-शक्ति के बाम और अतिरिक्त मूल्य के सापेक्ष परिमाणों में होने वाले परिवर्तनों से सम्बंधित जिन नियमों का विक किया गया है, वे एक साधारण मान्तरण के द्वारा मजदूरी के नियमों में बदल जाते हैं। इसी प्रकार, मम- शक्ति का विनिमय-मूल्य और यह मूल्य जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुओं की जिस राशि में बदल दिया जाता है, इन दोनों के बीच बो अन्तर होता है, वह अब नाम मात्र की मजदूरी और वास्तविक मजदूरी के अन्तर केस में पुनः प्रकट होता है। सारभूत रूप के विषय में हम जिन बातों की पहले ही चर्चा कर पाये हैं, उनको अब दृश्य रूप के विषय में हराना निरर्षक है। इसलिये हम यहां पर समयानुसार मजदूरी के कुछ विशेष लक्षणों तक ही अपने को सीमित रखेंगे। मदूर को अपने दैनिक प्रयवा साप्ताहिक मन के एवज में मुद्रा की बोरकम मिलती है, बह उसकी नाम-मात्र की मजदूरी, या मूल्य के म अनुमानित मजदूरी, होती है। परन्तु यह बात स्पष्ट है कि काम के दिन की लम्बाई के अनुसार, अर्थात् मजदूर सचमुच जितना मम रोजाना देता है, उसके अनुसार, एक ही दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी से बम के बहुत अलग- मलग बाम व्यक्त हो सकते हैं, यानी मन की एक ही मात्रा के लिये मुद्रा की बहुत अलग-अलग रातमें पीना सकती है। इसलिये, समयानुसार मजदूरी पर विचार करते हुए हमें एक बार फिर . पर मुद्रा का मूल्य हम यहां पर सदा स्थिर मानकर चल रहे है। "श्रम का दाम वह रकम होती है, जो श्रम की एक निश्चित मात्रा के एवज में दी जाती (Sir Edward West, "Price of Corn and Wages of Labour" (# guarit , अनाज का वाम और श्रम की मजदूरी'], London, 1826, पृ० ६७।) वेस्ट ने ही गुमनाम
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