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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६१६

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समयानुसार मजदूरी ६१३ . यह बात प्राम तौर पर सभी लोग जानते हैं कि उद्योग की किसी शाखा में काम का दिन जितना लम्बा होता है, उसमें मजदूरी की पर उतनी ही नीची होती है।' पटरी-इंस्पेक्टर ए. रेव ने इसके उदाहरण के रूप में १८३६ से १८५६ तक २० वर्षों का तुलनात्मक सिंहावलोकन किया है। उससे पता चलता है कि इन बीस वर्षों में जिन फ्रक्टरियों पर १० घण्टे का कानून लागू हो गया था, उनमें मजदूरी की दर बढ़ गयी थी, और जिन फैक्टरियों में रोज पौवह-पौवह, पन्द्रह-पनाह घन्टे काम चलता रहता था, उनमें मजदूरी गिर गयी थी।' हम ऊपर इस नियम का जिक्र कर चुके हैं कि "यदि श्रम का दाम पहले से निश्चित हो, तो दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी इस बात पर निर्भर करती है कि कितना मम सर्च किया गया है।" इससे पहला निष्कर्ष यह निकलता है कि मन का नाम जितना कम होगा, श्रम की मात्रा उतनी ही अधिक होगी या काम के दिन को उतना ही अधिक लम्बा होना पड़ेगा, अन्यथा मजदूर को खरा सी प्रोसत मखदूरी भी नहीं मिल पायेगी। मम के दाम का बहुत कम होना यहाँ श्रम-काल को बढ़ाने की प्रेरणा का काम करता है।' दूसरी ओर, काम का समय बढ़ा दिये जाने से मन के दाम में गिराव पा जाता है, और उसके साथ-साथ दैनिक या साप्ताहिक मजदूरी भी कम हो जाती है। श्रम-शक्ति का दैनिक मूल्य श्रम के बामके से निर्धारित होने से पता चलता है एक निश्चित संख्या के घण्टों का दिन कि यदि काम के दिन को महब लम्बा कर दिया जाता है और किसी तरह उसकी पति-पूर्ति 1 " . . लिये उससे अधिक ऊंची दर की मजदूरी देनी होगी; और (२) यह कि काम के दिन की सामान्य सीमा के मागे का प्रत्येक घण्टा भोवरटाइम का घण्टा माना जायेगा और उसके एवज में अपेक्षाकृत ऊंची उजरत देनी होगी। 'यह एक बहुत उल्लेखनीय बात है कि जहां लम्बे घण्टों का कायदा है, वहां कम मजदूरी देने का भी कायदा होता है" ("Reports of Insp. of Fact. 31st Oct., 1863" [ 'फैक्टरी- इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६३ '], पृ. ९)। “जिस काम के एवज में महज जरा सा भोजन मिल जाता है, वह काम प्रायः बहुत ज्यादा देर तक चलता है" ("Public Health. Sixth Report, 1864" [' सार्वजनिक स्वास्थ्य की छठी रिपोर्ट, १८६४ '],पृ. १५)।

  • “Reports of Inspectors of Fact., 30th April, 1860" ('$ -fackt mit

रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८६०'), पृ० ३१, ३२ । 'मिसाल के लिये , इंगलैण्ड में हाथ से कीलें बनाने वालों को श्रम का दाम कम होने के कारण अपनी प्रत्यल्प साप्ताहिक मजदूरी कमाने के लिये रोजाना पन्द्रह घण्टे काम करना पड़ता है। “वे दिन के बहुत से घण्टों (सुबह के ६ बजे से रात के ८ बजे) तक काम करते हैं। और ११ पेंस से लेकर १ शिलिंग तक कमाने के लिये मजदूर को पूरे समय सक्त मेहनत करनी पड़ती है। मौजारों की विसाई, धन का वर्ष और जो लोहा जाया हो जाता है, कुछ रकम उसके एवज में इस मजदूरी में से काट ली जाती है। इस सब में कुल मिलाकर २६ पेन्स या ३ The te and " ("Children's Employment Com. III Report" [ 'hartan मआयोग की तीसरी रिपोर्ट'], पृ. १३६, अंक ६७११) इतनी ही देर तक काम करके औरतें सप्ताह में केवल ५ शिलिंग कमाती है। (उप० पु०, पृ० १३७, अंक ६७४।)