पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६१८

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समयानुसार मजदूरी ६१५ Is made)। बस केवल जनता को लाभ होता है।"1 पाठक को लम्बन के उन दो तरह के रोटी वालों की याद होगी, जिनमें से एक तरह के रोटी वाले अपनी रोटी पूरे नाम पर बेचते ये (इस तरह के रोटीवाले the fullpriced bakers ["पूरे वाम वाले नानबाई"] कहलाते थे) और दूसरी तरह के रोटी वाले सामान्य वाम से कम लेते थे (इस तरह के रोटी बाले “the underpriced" ["कम बाम वाले"] या “the undersellers" ["कम बाम पर बेचने वाले"] कहलाते थे)। "Fullpriced" ("पूरे बाम वालों") ने संसदीय जांच-समिति के सामने प्रतिबंदियों को भर्त्सना करते हुए कहा था कि "अब ये लोग केवल इसी तरह जीवित है कि पहले जनता को बोला देते हैं और फिर १२ घण्टे को मजदूरी देकर अपने मजदूरों से १८ घण्टे का काम कराते हैं . यह प्रतियोगिता ... मजदूरों के प्रवेतन श्रम (the unpaid labour) के सहारे चलायी जा रही थी और माज भी वह उसी के सहारे चलायी जा रही है . रोटी वालों में प्रापस में जो प्रतियोगिता चल रही है, उसके कारण रात का काम बन्द करने में कठिनाई हो रही है। पाटे के भाव के अनुसार रोटी की जो लागत बैठती है, जो नानबाई (underseller) उससे भी कम दाम पर अपनी रोटी बेचता है, उसे यह कमी मजदूरों से ज्यादा काम लेकर पूरी करनी पड़ती है . . . यदि मैं अपने मजदूरों से केवल १२ घण्टे काम लेता हूं और मेरा पड़ोसी १८ से २० घण्टे तक काम लेता है, तो रोटी के भाव के मामले में वह लाजिमी तौर पर मुझसे बाजी मार जायेगा। यदि मजदूर प्रोवरटाइम की उजरत मांग सकते, तो यह स्थिति सुधर जाती... Undersellers (कम दामों पर रोटी बेचने वालों) ने जिन लोगों को नौकर रख रक्ता है, उनमें एक बड़ी संख्या विदेशियों और लड़के-लड़कियों की है। उनको जो भी मजदूरी मिल जाती है, वे मजबूरन उसी को स्वीकार कर लेते हैं।" यह विलाप इसलिये भी दिलचस्प है कि उससे यह जाहिर हो जाता है कि पूंजीपति के मस्तिष्क में उत्पादन के सम्बंधों का केवल दिखावटी म्प ही प्रतिविम्बित होता है। पूंजीपति यह नहीं जानता कि श्रम के सामान्य दाम में भी प्रवेतन श्रम की एक निश्चित मात्रा शामिल होती है और सामान्यतया यह प्रवेतन श्रम ही उसके लाभ का श्रोत होता है। अतिरिक्त श्रम- काल नामक परिकल्पना का उसके लिये कोई अस्तित्व ही नहीं है, क्योंकि वह काम के सामान्य दिन में शामिल होता है, जिसके बारे में पूंजीपति का खयाल है कि मजदूर को मजदूरी देकर उसने उसकी पूरी कीमत चुका दी है। लेकिन पूंजीपति के लिये भोवरटाइम का-काम के दिन 1 "Children's Employment Com., III Rep." ('aretharga greitt तीसरी रिपोर्ट'), गवाहियां, पृ० ६६, अंक २२ ।

  • "Report, & c., Relative to the Grievances Complained of by the Journey-

men Bakers" ("रोटी बनाने वाले मजदूरों की शिकायतों से ताल्लुक रखने वाली रिपोर्ट, इत्यादि'), London, 1862, पृ० LI (बावन), और इसी पुस्तिका के गवाहियों वाले अंश में अंक ४७६, ३५६, २७। बहरहाल जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है और जैसा कि खुद उनके प्रवक्ता बेनेट ने भी स्वीकार किया है, fullpriced (पूरे दाम लेने वाले नानबाई) भी अपने मजदूरों से "माम तौर पर रात को ११ बजे काम शुरू करवाते हैं ...अगले दिन सुबह के ८ बजे तक उनसे काम लेते रहते हैं... फिर वे सारे दिन काम में लगे रहते हैं... उनका काम रात के ७ बजे खतम होता है "(उप० पु०, पृ० २२) ।