पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६१९

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पूंजीवादी उत्पादन को श्रम के साधारण बाम के अनुरूम सीमामों से भागे साँचकर ले जाने का-बर अस्तित्व है। जब उसका अपने कम दाम पर बेचने वाले प्रतिबनी से मुकाबला होता है, तो वह इस बात पर भी जोर देने लगता है कि इस मोवरटाइम काम के लिये अतिरिक्त मजदूरी (extra pay) की जानी चाहिये। मगर यहां भी उसको यह मालूम नहीं होता कि जिस तरह मम के साधारण घण्टे के दाम में कुछ प्रवेतन मम शामिल होता है, उसी तरह इस अतिरिक्त मजबूरी में भी कुछ ऐसा श्रम शामिल होता है, जिसके लिये उजरत नहीं दी जाती। मिसाल के लिये, मान लीजिये कि १२ घण्टे के काम के दिन के एक घण्टे का दाम ३ पेन्स होता है, जो पाये घण्टे के श्रम की पैदावार के मूल्य बराबर होता है, जब कि प्रोवरटाइम काम के एक घण्टे का नाम ४ पेन्स होता है, जो घण्टे के श्रम की पैदावार के मूल्य के बराबर होता है। ३ पहली सूरत में पूंजीपति काम के घन्टे के प्राधे भाग को मुफ्त में हस्तगत कर लेता है, दूसरी सूरत में वह एक तिहाई भाग पर मुफ्त में अधिकार कर लेता है।