६१८ पूंजीवादी उत्पादन के मुताबिक काम करते हैं और समयानुसार मजदूरी अपवाद-स्वस्म होती है, जब कि देहात के कम्पोजिटरों को दिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है और वहाँ कार्यानुसार मजदूरी अपवाद होती है। लन्दन के बन्दरगाह के जहाज बनाने वाले ठेके पर या कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली के मुताबिक काम करते हैं, जबकि बाकी सभी स्थानों के जहाज बनाने वालों को दिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है। लन्दन को खोनसाखी की दुकानों में अक्सर एक से काम के लिये फ्रांसीसी मजदूरों को कार्यानुसार और अंप्रेच मजदूरों को समयानुसार मजदूरी दी जाती है। नियमित रूप से काम करने वाली जिन फैक्टरियों में शुरू से पाखिर तक कार्यानुसार मजदूरी का बौर-चौरा है, उनमें भी कुछ खास ढंग के काम इस प्रकार की मजबूरी के लिये अनुपयुक्त होते हैं और इसलिये उनकी उजरत समय के अनुसार दी जाती है। लेकिन इसके अलावा यह बात भी स्वतःस्पष्ट है कि मजदूरी देने के रूप में जो भेद होता है, उससे मजदूरी के भौतिक स्वरूप में कोई फर्क नहीं पड़ता, हालांकि उसका एक रूम दूसरे रूम की अपेक्षा पूंजीवादी उत्पादन के विकास के लिये अधिक सुविधाजनक होता है। मान लीजिये कि काम के साधारण बिन में १२ घण्टे होते हैं, जिनमें से मजदूर को ६ घण्टों की उजरत मिलती है और ६ घण्टों को नहीं। मान लीजिये कि इस तरह में ६ शिलिंग का मूल्य पैदा होता है और इसलिये एक घण्टे के श्रम से ६ पेन्स का मूल्य तैयार होता है। फर्ज कीजिये कि अनुभव के द्वारा हम यह जानते हैं कि जो मजदूर प्रोसत मात्रा की , एक दिन " एक फैक्टरी 1T. J. Dunning, "Trades Unions and Strikes" (टी० जे० डन्निंग, 'ट्रेड यूनियनें और हड़ताले'), London, 1860, पृ० २२ । 'मजदूरी के इन दोनों रूपों का एक ही समय में और साथ-साथ योग करने से मालिकों को धोखा देने का कितना बड़ा मौका मिलता है, इसका एक उदाहरण देखिये। में ४०० व्यक्ति नौकर हैं। उनमें से प्राधे कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली पर काम करते हैं, और उनको प्रत्यक्षतः ज्यादा देर तक काम करने में दिलचस्पी होती है। बाकी २०० को दिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है, पर वे भी दूसरे २०० मजदूरों के समान ही देर तक काम करते हैं और प्रोवरटाइम काम के लिये उनको कोई अतिरिक्त मजदूरी नहीं मिलती . इन २०० व्यक्तियों का प्राधे घण्टे रोज का काम एक व्यक्ति के ५० घण्टे के काम के बराबर, ५ या एक व्यक्ति के सप्ताह भर के श्रम के के बराबर होता है, जिससे मालिक सरासर फ़ायदे में रहता है।" ("Reports of Insp. of Fact., 31st Oct., 1860" ['फ़ैक्टरी-इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १९६०'], पृ. ६।) "अत्यधिक काम लेने का पाजकल भी बहुत काफ़ी चलन है, और अधिकतर स्थानों में खुद कानून ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि अपराधी के लिये पकड़े जाने और सजा पा जाने का कोई खतरा नहीं रहता। मैं पुरानी बहुत सी रिपोर्टों में यह दिखा चुका हूं कि... इससे उन मजदूरों को क्या हानि पहुंचती है, जिनको कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली के मुताबिक नौकर नहीं रखा गया है और जिनको साप्ताहिक मजदूरी मिलती है।" (लेमोनाई होर्नर की रिपोर्ट, "Reports of Insp. of Fact., 30th April, 1859" [ फैक्टरी-इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३० अप्रैल १८५६'], पृ. 5, 21) .
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