पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६३

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पूंजीवादी उत्पादन . हमारी धारणा के अनुसार कोट की कीमत बस गन कपड़े की कीमत से दुगनी है। उनके मूल्यों में यह अन्तर कहां से पैदा होता है? यह इस बात से पैदा होता है कि कपड़े में कोट का केवल भाषा मम सर्च हुमा है, और चुनांचे वह इस बात से पैदा होता है कि कपड़े के उत्पादन के लिए जितने समय तक मम-शाक्ति खर्च करने की पावश्यकता है, कोट के उत्पादन में उससे दुगने समय तक मम-शक्ति वर्ष की गयी होगी। इसलिए, वहां उपयोग-मूल्य के सम्बंध में किसी भी माल में निहित मम का महत्त्व केवल गुणात्मक दृष्टि से होता है, वहाँ मूल्य के सम्बंध में उसका महत्व केवल परिमाणात्मक दृष्टि से होता है और उसे पहले विशुद्ध और साधारण मानव-श्रम में बदलना पड़ता है। उपयोग- मूल्य के सम्बंध में प्रश्न होता है कि कैसा और क्या? मूल्य के सम्बंध में प्रश्न होता है : कितना? कितने समय तक? चूंकि किसी भी माल के मूल्य का परिमाण केवल उसमें निहित मम की मात्रा का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कुछ खास अनुपातों में तमाम मालों के मूल्य समान होंगे। यदि एक कोट के उत्पादन के लिए मावश्यक तमाम अलग-अलग ढंग के उपयोगी श्रम की उत्पादक शक्ति एक सी रहती है, तो तैयार होने वाले कोटों के मूल्यों का जोड़ उनकी संस्था के अनुसार बढ़ता जायेगा। परि एक कोट 'क' दिनों के श्रम का प्रतिनिधित्व करता है, तो वो कोट २ 'क' दिनों के भम का प्रतिनिधित्व करेंगे, और इसी तरह यह क्रम मागे बलता जायेगा। लेकिन मान लीजिये कि एक कोट के उत्पादन के लिए प्रावश्यक श्रम की अवषि दुगनी या भाषी हो जाती है। पहली सूरत में एक कोट की कीमत अब उतनी हो जायेगी, जितनी पहले दो कोटों की वो, और दूसरी सूरत में दो कोटों की कीमत अब सिर्फ इतनी ही रह जायेगी, जितनी पहले एक कोट की पी, हालांकि बोनों सूरतों में एक कोट अब भी उतना ही काम देता है, जितना वह पहले देता था, और उसमें निहित उपयोगी श्रम में वही गुण रहता है, वो उसमें पहले था। लेकिन कोट के उत्पावन पर खर्च किये गये मन की मात्रा बदल गयी है। उपयोग-मूल्यों के परिमाण में वृद्धि होने का मतलब है भौतिक पन में वृद्धि होना। दो कोट वो मारनी पहन सकते हैं, एक कोट केवल एक ही प्रावमी पहन सकता है। फिर भी यह सम्भव है कि भौतिक धन के परिमाण में वृद्धि होने के साथ-साथ उसके मूल्य के परिमाण में कमी मा पाये। इस परस्पर विरोधी गति का मूल मम के दोहरे स्वल्म में है। उत्पादक शक्ति का, बाहिर है, किसी मूर्त उपयोगी सके मम से सम्बंध होता है। कोई खास तरह की उत्पादक किया किसी निश्चित समय में कितनी कारगर होती है, यह उसकी उत्पादकता पर निर्भर करता है। इसलिए, उपयोगी मम की उत्पादकता जितनी बढ़ती या घटती है, उसी अनुपात में बह त्यावा या कम बहुतायत के साथ पैदावार तैयार करता है। दूसरी ओर, इस उत्पादकता में वो परिवर्तन होते हैं, उनका उस मम पर कोई असर नहीं पड़ता, जिसका प्रतिनिधित्व मूल्य करता है। चूंकि उत्पादक शक्ति बम के मूर्त, उपयोगी मों का गुण है, इसलिए चाहिर है कि जब हम मन को उसके मूर्त, उपयोगी यों से अलग कर लेते हैं, तब उसके बाद उत्पादक शक्ति का श्रम पर प्रभाव पड़ना बन्द हो जाता है। इसलिए उत्पादक शक्ति में चाहे जैसा परिवर्तन हो जाये, एक सा मम यदि समान अवधि तक किया जायेगा, तो उससे सवा समान परिमाण में मूल्य उत्पन्न होगा। लेकिन समान अवधि में उससे उपयोग मूल्य मिन्न-भिन्न परिमानों में पैदा होंगे पनि उत्पादक शक्ति बढ़ गयी होगी, तो अधिक परिमाण में उपयोग मूल्य पैसा होंगे, और यदि यह घट गयी होगी, तो कम परिमाण में। उत्पादक शक्ति का नो परिवर्तन . .