माल . . . 11 . श्रम की उर्वरता को और उसके परिणामस्वरूप उस मन से पैदा होने वाले उपयोग-मल्यों के परिमाण को बढ़ा देता है, वही उपयोग मूल्यों के इस बड़े हुए परिमाण के कुल मूल्य को घटा देगा, बशर्ते कि इस परिवर्तन से इन उपयोग-मूल्यों उत्पादन के लिए प्रावश्यक कुल श्रम- काल कम हो गया हो। पौर, इसके विपरीत, यदि उत्पादक शक्ति के इस परिवर्तन के फलस्वरम इन उपयोग- मूल्यों के उत्पादन के लिए प्रावश्यक भन-काल बढ़ गया होगा, तो यही परिवर्तन इन उपयोग-मूल्यों के कुल मूल्य को बढ़ा देगा। एक मोर, शरीरविज्ञान की दृष्टि से हर प्रकार का आम मानव-यम-शक्ति को बर्ष करना है, और एक जैसे, अमूर्त मानव-श्रम के रूप में यह मालों के मूल्य को उत्पन्न करता है और उसका निर्माण करता है। दूसरी मोर, हर प्रकार का श्रम मानव-श्रम-शक्ति को एक बास डंग से और एक निश्चित उद्देश्य को सामने रखकर खर्च करना है, और अपने इस रूप में, पानी मूर्त उपयोगी श्रम के रूप में, वह उपयोग-मूल्यों को पैदा करता है। यह साबित करने के लिए कि श्रम ही एकमात्र ऐसी सर्वथा पर्याप्त एवं वास्तविक माप है, जिससे हर जमाने में तमाम मालों के मूल्यों का अनुमान लगाया जा सकता है और उनका एक दूसरे से मुकाबला किया जा सकता है, ऐडम स्मिथ ने लिखा है : श्रम की समान मात्राओं का मजदूर के लिए सब समय और सब जगह एक सा मूल्य होना चाहिए। उसके स्वास्थ्य, बल और क्रियाशीलता की सामान्य अवस्था में और उसमें जितनी अौसत निपुणता हो, उसके साथ उसे अपने अवकाश , अपनी स्वतंत्रता तथा अपने सुख का सदा एक सा अंश देना पड़ता है।", ("Wealth of Nations", पहली पुस्तक , अध्याय ५१) एक ओर तो यहां (किन्तु हर जगह नहीं) ऐडम स्मिथ ने मालों के उत्पादन में खर्च किये गये श्रम की मात्रा के द्वारा मूल्य के निर्धारित होने को श्रम के मूल्य के द्वारा मालों के मूल्य के निर्धारित होने के साथ गड़बड़ा दिया है और इसके फलस्वरूप यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि श्रम की समान मात्रामों का सदा एक सा मूल्य होता है। दूसरी ओर, उनको अन्देशा है कि जहां तक श्रम मालों के मूल्य के रूप में प्रकट होता हैं, वहां तक वह केवल श्रम-शक्ति के खर्च के रूप में ही गिना जाता है, लेकिन श्रम-शक्ति का यह ख़र्च उनके लिए महज अवकाश, स्वतंत्रता और सुख का त्याग करना है और उसके साथ-साथ जीवित प्राणियों की साधारण कार्रवाई नहीं है। लेकिन ऐडम स्मिथ की दृष्टि में तो केवल मजदूरी पर काम करने वाला माधुनिक मजदूर ही है। उनके उस गुमनाम पूर्वज का, जिसे हमने पृ० ५४ के पहले फुटनोट में उद्धृत किया है, यह कहना ज्यादा सही लगता है कि "जीवन की इस पावश्यक वस्तु को प्राप्त करने के लिए एक आदमी ने हफ्ते भर तक काम किया है और वह, जो उसे बदले में कुछ देता है, वह जब इसका हिसाब लगाने बैठता है कि उसका सम-मूल्य क्या है , तो वह इससे बेहतर और कुछ नहीं कर सकता कि अनुमान लगाकर देखे कि इतना ही श्रम और समय उसका किस चीज़ में लगा था। और यह-असल में देखा जाय, तो-एक चीज में किसी निश्चित समय तक लगे एक मादमी के श्रम का किसी दूसरी चीज़ में उसी समय तक लगे किसी दूसरे आदमी के श्रम के साथ विनिमय करने के सिवा और कुछ नहीं है।" (उप० पु०, पृ०३६।) [यहां श्रम के जिन दो पहलुपों पर विचार किया गया है, उनके लिए अंग्रेजी भाषा में सौभाग्य से दो अलग-अलग शब्द है। वह श्रम, जो उपयोग-मूल्य पैदा करता है और जिसका महत्त्व गुणात्मक दृष्टि से होता है, work कहलाता है, जो labour से अलग होता है; और जो श्रम मूल्य पैदा करता है और जिसका महत्त्व परिमाणात्मक दृष्टि से होता है, वह labour कहलाता है, जो work से अलग होता है।-के. ए.] ...
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६४
दिखावट