कार्यानुसार मजदूरी ६२७ पूंजीपति इस तरह के हर बावे के जवाब में क ही कहता है कि जो लोग इस तरह की बातें करते है, उन्होंने मजदूरी के स्वरूप को बिल्कुल नहीं समझा है। यह बड़ी चीख-पुकार शुरू कर देता है कि यह उद्योग की प्रगति पर कर लगाने की अनधिकृत चेष्टा है, और साफ- साफ़ यह घोषणा कर देता है कि श्रम की उत्पादकता से मजबूर का कतई कोई सम्बंध नहीं है।' 1 की दर २६ अक्तूबर १८६१ के लन्दन के “Standard" में रोचडेल के मजिस्ट्रेटों के सामने जान ब्राइट एण्ड कम्पनी नाम की एक फ़र्म के मुक़दमे की रिपोर्ट छपी है। इस फर्म ने "कालीन बुनने वालों की ट्रेड-यूनियन के एजेण्टों पर धमकी देने के लिये मुक़दमा दायर किया या। ब्राइट कम्पनी के हिस्सेदारों ने कुछ नयी मशीनें लगा ली थीं। पहले जितने समय में और जितना श्रम लगाकर १६० गज कालीन तैयार होता था, अब ये नयी मशीनें उतने ही समय में और उतना ही श्रम (!) लगाकर २४० गज कालीन तैयार कर डालती थीं। यांत्रिक सुधारों में अपनी पूंजी लगाकर मालिक लोग जो मुनाफा कमा रहे हैं, उसमें हिस्सा बंटाने का मजदूरों को कोई अधिकार नहीं है। चुनांचे, बाइट कम्पनी ने ते किया कि मजदूरी पेन्स फ्री गज से घटाकर १ पेनी फ्री गज कर दी जाये, ताकि मजदूर एक निश्चित परिणाम में श्रम करके अब भी ठीक पहले जितना ही कमा सकें। लेकिन नाम के लिये तो मजदूरी की दर में कमी हो ही रही थी, और यह कहा गया था कि मजदूरों को इसकी पहले से कोई सूचना नहीं दी गयी थी, जो अन्याय की बात है। "ट्रेड-यूनियनें मजदूरी की दर को ज्यों का त्यों बनाये रखना चाहती हैं और इसलिये सुघरी हुई मशीनों से जो लाभ होता है, उसमें हिस्सा बंटाने की कोशिश करती हैं। (यह कितनी भयानक बात है! )... वे पहले से ऊंची मजदूरी की मांग करती है, क्योंकि श्रम पहले से कम हो जाता है। दूसरे शब्दों में, वे यांत्रिक सुधारों पर कर लगाने की कोशिश करती है।" ("On Combination of Trades" ['व्यावसायिक संघों के विषय में'], नया संस्करण, London, 1834, पृ०,४२।) , 40
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