६४४ पूंजीवादी उत्पादन . . प्रतः पूंजीपति और उसका सिद्धान्तकार प्रतिनिषि, पर्यशास्त्री, बोनों मजदूर के व्यक्तिगत उपभोग के केवल उसी भाग को उत्पावक समझते हैं, जो मजदूर वर्ग को निन्दा रखने के लिये आवश्यक होता है और इसलिये जिसके बिना पूंजीपति को शोषण करने के लिये श्रम-शक्ति नहीं मिल सकती ; इस भाग के मागे मजदूर जो कुछ अपने मने के लिये खर्च करता है, वह अनुत्पादक उपभोग को मब में पाता है। यदि पूंजी के संचय से मजबूरी में वृद्धि और मजबूर के उपभोग में कुछ इखाना हो जाये, पर उसके साथ-साथ पूंजी के द्वारा श्रम शक्ति के उपभोग में कोई वृद्धि न हो, तो नयी पूंजी का अनुत्पादक उंग से उपभोग होने लगेगा। असल में, जहां तक खुब मजदूर का सम्बंध है, उसका व्यक्तिगत उपभोग अनुत्पादक होता है, क्योंकि उससे एक जरूरतमन्द व्यक्ति के अतिरिक्त और किसी चीज का पुनरुत्पावन नहीं होता; पर पूंजीपति और राज्य के लिये उसका व्यक्तिगत उपभोग उत्पादक उपभोग होता है, क्योंकि उससे उस शक्ति का उत्पावन होता है, जो उनके धन को उत्पन्न करती है। इसलिये, जब मजदूर-वर्ग प्रत्यक्ष रूप से श्रम-क्रिया में व्यस्त नहीं होता, सामाजिक दृष्टि से तब भी वह श्रम के साधारण प्राचारों की तरह ही पूंजी का उपांग होता है। कुछ खास सीमानों के भीतर उसका व्यक्तिगत उपभोग तक उत्पादन की प्रक्रिया का एक तत्व मात्र होता है। किन्तु उत्पादन की प्रक्रिया इसका पूरा खयाल रखती है कि ये सचेतन मौजार उसको बीच मंझधार में छोड़कर अलग न हो जायें। इसके लिये वह उनकी पैदावार को, जैसे ही वह बनकर तैयार होती है, उनके ध्रुव से हटा कर पूंजी के प्रति-ध्रुव पर पहुंचा देती है। व्यक्तिगत उपभोग से, एक तरफ़, श्रम के इन सचेतन प्राचारों के जिन्दा रहने और पुनरुत्पादन के साधन मिल जाते है, दूसरी भोर, व्यक्तिगत उपभोग जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुओं को नष्ट करके श्रम की मी में मजदूर के हमेशा मौजूद रहने का पक्का प्रबंध कर देता है। रोमन गुलाम को जंजीरों से बांधकर रखा जाता था; मजदूरी पर काम करने वाले मजदूर को उसके मालिक के साथ प्रवृत्य पागों से बांध दिया जाता है। मजदूरों के मालिकों के लगातार होने वाले परिवर्तनों पौर करार के fictlo juris (कानूनी मूठ) के बरिये मजदूर की माखादी का दिखावटी डॉग कायम रखा जाता है। पुराने बक्तों में जब कभी पूंजी को इसकी पावश्यकता होती थी, वह कानून बनाकर स्वतंत्र मजदूर पर अपना स्वामित्व का अधिकार जमा देती थी। उदाहरण के लिये, १८१५ तक इंगलड 1James Mill, उप. पु., पृ० २३८ । “यदि श्रम का दाम इतना अधिक बढ़ जाये कि पूंजी की वृद्धि के बावजूद और अधिक श्रम से काम लेना असम्भव हो जाये, तो मैं कहूंगा कि पूंजी की इस प्रकार की वृद्धि का प्रब भी अनुत्पादक ढंग से उपभोग होगा।" (Ricardo, उप० पु०, पृ. १६३।) "जिसे सचमुच उत्पादक उपभोग कहा जा सकता है, वह केवल वह उपभोग है, जिसमें पूंजीपति पुनरुत्पादन करने के उद्देश्य से धन का उपभोग करते हैं या धन को" (यहां धन से उसका मतलब उत्पादन के साधनों से है) "नष्ट करते है ... जो व्यक्ति मजदूर को नौकर रखता है, उसके लिये और राज्य के लिये मजदूर एक उत्पादक उपभोगी होता है, लेकिन अगर बिल्कुल सही-सही देखा जाये, तो खुद अपने लिये वह उत्पादक उपभोगी नहीं होता।" (Malthus, “Definitions, etc." [माल्यूस, 'परिभाषाएं, इत्यादि'], पृ० ३०।) .
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