साधारण पुनरुत्पादन ६४५ - . के मशीन बनाने वाले कारीगरों को देश छोड़कर जाने की सन्त मनाही थी। जो कोई इस प्रतिबंध को भंग करता था, उसको भयानक कष्ट उठाना पड़ता था और कठोर बण्ड का भागी बनना पड़ता था। मजबूर-वर्ग के पुनरुत्पादन के साथ-साथ निपुणता का संचय होता चलता है, जिसे हर पीढ़ी अपने बाद में पाने वाली पीढ़ी को सौंपती जाती है। जैसे ही कोई संकट पाता है और इस बात का खतरा पैदा होता है कि पूंजीपति को निपुण मजदूर अब और नहीं मिलेंगे, वैसे ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पूंजीपति इस प्रकार के निपुण वर्ग के अस्तित्व को किस हद तक उत्पादन के उन तत्वों में गिनता है, जिनपर उसको स्वामित्व का अधिकार प्राप्त है, और किस हद तक वह सचमुच उसको अपनी अस्थिर पूंजी की वास्तविकता समझता है। जब अमरीका में गृह-पट छिड़ गया और उसके साथ-साथ जब कपास का प्रकाल पड़ा, तब, जैसा कि सब जानते हैं, लंकाशायर की सूती मिलों के अधिकतर मजदूरों को काम से जवाब मिल गया। उस वक्त मजदूर- वर्ग और समाज के अन्य हलकों, बोनों ही क्षेत्रों से यह प्रावाज उठी कि "फालतू" मजदूरों को देश छोड़कर उपनिवेशों को या संयुक्त राज्य अमरीका को चले जाने के लिये राज्य की प्रोर से सहायता मिलनी चाहिये या राष्ट्रीय पैमाने पर सभी लोगों से चन्दा करके उनको मदद दी जानी चाहिये। इसपर "The Times" ने २४ मार्च १८६३ को मानचेस्टर के चेम्बर्स प्रात कामर्स के एक भूतपूर्व अध्यक्ष, एउमण पोटर का एक पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र को हाउस माफ़ कामन्स में ठीक ही कारखानदारों का घोषणा-पत्र कहा गया था। यहां पर हम इस पत्र के ऐसे विशिष्ट अंश छांटकर उद्धृत कर रहे हैं, जिनमें बिना शर्म-हया के श्रम शक्ति पर पूंजी स्वामित्व के अधिकार का दावा किया गया है। 'उस पादमी को" (जिस पादमी की रोजी छूट गयी है) "बताया जा सकता है कि सूती मिलों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी है ... और सच तो यह है कि... उसमें शायद एक तिहाई की कमी करना प्रावश्यक हो गया है, और उसके बाद जो दो तिहाई मजदूर बचेंगे, उनके लिये एक स्वस्थ डंग की मांग होगी... जनमत उनके परावास के पक्ष में है ... मालिक इसके लिये राजी नहीं हो सकता कि उसके लिये श्रम की पूर्ति का लोत ही खतम कर दिया जाये ; उसके विचार से यह सुझाव गलत भी और दोषपूर्ण भी हो सकता है... लेकिन यदि सार्वजनिक कोष का परावास में सहायता देने के लिये ही उपयोग किया जाना है, तो मालिक को अपनी बात कहने और शायद इसका विरोध करने का हक भी है।" इसके प्रागे मि० पोटर ने यह बताया है कि सूती व्यवसाय कितना लाभदायक है, किस प्रकार इस "पंधे ने मायरलेस और इंगलग के लेतिहर रिस्ट्रिक्टों की फालतू पावादी को नीच लिया . . 1 1"केवल एक ही चीज़ है, जिसके बारे में हम कह सकते हैं कि वह पहले से संचित होती जाती है और तैयार की जाती है । वह है मजदूर की निपुणता निपुण श्रम का संचय पौर संग्रह, यह अति महत्वपूर्ण क्रिया, जहां तक अधिकतर मजदूरों का सम्बंध है, बिना किसी पूंजी के ही सम्पन्न हो जाती है।' (Th. Hodgskin, "Labour Defended, &c." [टोमस होजस्किन, 'श्रम का समर्थन, इत्यादि'], पृ. १३।) 'उस व्रत को कारखानेदारों का घोषणा-पत्र समझा जा सकता है।" (Ferrand, "Mo- tion on the Cotton Famine" [फेर्राण्ड , कपास के प्रकाल पर प्रस्ताव '], हाउस माफ़ कामन्स, २७ अप्रैल १८६३ ।) . 34
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