साधारण पुनरुत्पादन ६४७ . कारी शक्ति को छीनकर ("by taking away its working power") या मजदूरी के खर्चे में, मान लीजिये, पांचवें हिस्से को-या पचास लाल की-कमी करके इस धंधे का विस्तार कम कर दीजिये, उसे दबाकर छोटा कर दीजिये और फिर देखिये कि मजदूरों के ऊपर जो वर्ग है,-यानी छोटे-छोटे दुकानदार,- उनका क्या हाल होता है ? और जमीन के लगान का, झोंपड़ों के किरायों का क्या हाल होता है ? .. फिर यह भी पता लगाइये कि इस सबका छोटे काश्तकारों पर, खाते-पीते गृहस्थों पर और... जमींदारों पर क्या असर होता है ? पौर तब बताइये कि क्या देश के सभी वर्गों के लिये इससे अधिक प्रात्मघाती सुझाव कोई और हो सकता है कि राष्ट्र की कल-कारखानों में काम करने वाली माबादी के सर्वोत्तम भाग का निर्यात करके और उसकी सबसे अधिक उपजाऊ उत्पादक पूंजी और धन बढ़ाने के साधनों के एक भाग के मूल्य को नष्ट करके राष्ट्र को निर्बल बना दिया जाये। मेरी तो यह सलाह है कि (पचास या साठ लाल पौण स्टलिंग के) एक ऋण का प्रबंध किया जाये...उसे सम्भवतया वो या तीन वर्षों पर फैलाया जा सकता है; और उसकी व्यवस्था करने के लिये विशेष कानून बनाकर सूती व्यवसाय वाले सिस्ट्रिक्टों के संरक्षकों के बोर्गे में कुछ विशेष नये कमिश्नर जोड़ दिये जायें और इस तरह मजदूरों के लिये किसी धंधे का या किसी प्रकार के श्रम का इन्तजाम किया जाये, ताकि जिन लोगों को ऋण दिया जाये, उनका कम से कम नैतिक स्तर कायम रहे... खमींदारों या मालिकों के लिये इससे बुरी बात और क्या हो सकती है ("can anything be worse for landowners or masters") कि उनके सबसे अच्छे मजदूर उनसे छिन जायें और बानी का एक वीर्ष एवं पारेचक परावास के फलस्वरूप और एक पूरे प्रान्त में पूंजी तथा मूल्य के पारेचन के परिणामस्वरूप नैतिक मनोबल टूट जाये और वे निराशा के गर्त में डूब जायें?" कारखानेदारों के विशिष्ट प्रवक्ता, पोटर, ने वो किस्म की "मशीनों" में भेद किया है। बोनों ही प्रकार की मशीनें पूंजीपति की सम्पत्ति होती हैं, पर उनमें से एक प्रकार की मशीनें सदा फैक्टरी में खड़ी रहती हैं, जबकि दूसरी प्रकार की मशीनें रात के समय और इतवार के दिन फैक्टरी के बाहर, गोपड़ियों में रहती हैं। एक किस्म निर्जीव मशीनों की होती है, दूसरी जीवित मशीनों की। निर्जीव मशीनें न सिर्फ रोज-ब-रोज घिसती जाती हैं और उनका मूल्य-हास होता जाता है, बल्कि उनका एक बड़ा भाग निरन्तर होने वाली प्राविधिक प्रगति के कारण इतनी जल्दी पुराना पड़ जाता है कि चन्द महीनों के बाद ही उनको हटाकर नयी मशीनें लगाने में फायदा नवर माने लगता है। इसके विपरीत, जीवित मशीनों से जितनी ज्यादा देर तक काम लिया जाता है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के रूप में मिलने वाली बसता जितनी अधिक संचित होती जाती है, ये मशीनें उतनी ही अधिक उपयोगी बनती जाती है। "The Times" ने सूती कपड़े के इस सेठ को यह जवाब दिया था: "मि० एउमन पोटर सूती मिलों के मालिकों के प्रसाधारण एवं सर्वोच्च महत्व से इतने अधिक प्रभावित है कि इस वर्ग को बीवित रखने तथा उसके पंधे को अमर बनाने के उद्देश्य से वह अमजीवी वर्ग के पांच लाख लोगों को उनकी इच्छा के विक्ट एक विशाल नैतिक मुहताणलाने में बन्द करके रखना चाहते हैं। मि० पोटर ने प्रश्न किया है कि क्या यह पंवा इस लायक है कि उसे चिन्ता रखा जाये? हम उत्तर देते हैं कि हां, निस्सन्देह, वह इस लायक है कि उसे ईमानदारी के तरीकों से जिन्दारता जाये। मि० पोटर फिर सवाल करते हैं कि क्या यह इस लायक है कि इन मशीनों को अच्छी हालत में रखा जाये? इस सवाल का जवाब देने में हमें हिचकिचाहट होती है। "मशीनों" से मि० पोटर का मतलब मानव-मशीनों से है, क्योंकि इसके . ,
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