पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६५७

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६५४ पूंजीवादी उत्पादन & अतिरिक्त मूल्य के जिस भाग का पूंजीपति उपभोग कर गलता है, उसकी पोर हम यहां ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसी तरह फिलहाल इस बात से भी हमारा कोई सम्बंध नहीं है कि नयी पूंजी मूल पूंजी में जोड़ दी जाती है या उसे अलग करके उससे स्वतंत्र रूप से काम लिया जाता है। फिलहाल हम इस बात की भी कोई परवाह नहीं करते कि जिस पूंजीपति ने इस अतिरिक्त पूंजी का संचय किया है, वह खुद उसका उपयोग करता है या उसे किसी और पूंजीपति को दे देता है। हमें केवल यह बात नहीं भूलनी चाहिये कि नव-निर्मित पूंजी के साथ- साप मूल पूंजी भी अपना पुनरुत्पादन करना और अतिरिक्त मूल्य पैदा करना जारी रखती है और यह बात समस्त संचित पूंजी तथा उससे उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त पूंजी के लिये भी सब होती है। मूल पूंजी का १०,००० पौड पेशगी लगाकर निर्माण किया गया था। यह रकम उसके मालिक के पास कहाँ से पायी थी? प्रशास्त्र के समस्त प्रवक्ता एक स्वर से उत्तर देते हैं: "यह रकम मालिक को खुब उसके और उसके पूर्वजों के मन से मिली है। और सचमुच केवल उनकी यह मान्यता ही मालों के उत्पादन के नियमों के अनुरूप प्रतीत होती है। परन्तु २,००० पौण की प्रतिरिक्त पूंजी पर यह बात लागू नहीं होती। वह कैसे पैदा हुई, यह हम अच्छी तरह जानते हैं। उसके मूल्य में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जो प्रवेतन भम से न उत्पन्न हुमा हो। उत्पादन के साधन, जिनके साथ अतिरिक्त मम-शक्ति का समावेश किया जाता है, और जीवन के लिये प्रावश्यक वे वस्तुएं, जिनसे मजदूरों का भरण- पोषण होता है, वे सभी अतिरिक्त पैदावार के संघटक भागों के सिवा और कुछ नहीं होती। में उस सालाना जिराज का ही हिस्सा होती है, जो पूंजीपति-वर्ग हर साल मजदूर-वर्ग से वसूलता है। जब इस खिराज के एक हिस्से से पूंजीपति-वर्ग अतिरिक्त श्रम-शक्ति खरीदता है, तब यदि वह उसके पूरे दाम भी ये गलता है और यहाँ सम मूल्य का सम-मूल्य के साथ ही विनिमय होता है, तब वह पुराना चकमा ही इस्तेमाल किया जाता है, जिसके द्वारा प्रत्येक विजेता होते हुए देश के लोगों की मुद्रा लूटकर फिर उसी से उनका माल बरीब लेता था। यदि अतिरिक्त पूंजी उसी व्यक्ति को नौकर रखती है, जिसने उसे उत्पन्न किया है, तो इस उत्पादक को न केवल मूल पूंजी के मूल्य में वृद्धि करने का अपना काम जारी रखना पड़ता है, बल्कि उसे अपने पहले के मम की पैदावार को उसकी लागत से अधिक मम देकर खरीदना पड़ता है। यदि इस चीख पर पूंजीपति वर्ग और मजदूरवर्ग के बीच होने वाले लेन- बेन के रूप में विचार किया जाये, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अतिरिक्त मजदूरों को पहले से काम में लगे हुए मजदूरों के प्रवेतन मम के द्वारा नौकर रखा जाता है। यह भी हो सकता है कि पूंजीपति अतिरिक्त पूंजी को ऐसी मशीन में बदल गले, बो इस पूंजी के पैदा करने वालों को काम से जवाब दे और उनकी जगह पर कुछ बच्चों को नौकर रख ले। हर हालत में, मजदूर-वर्ग एक वर्ष के अतिरिक्त मम से उस पूंजी का सृजन कर देता है, बिसे अगले वर्ष नये भम को नौकर रखना है। इसी को पूंजी से पूंची पैदा करना कहते हैं। 1 “Le travail primitif auquel son capital a da sa naissance" ["Te uifen जिससे उसकी पूंजी का जन्म हुमा है"], Sismondi उप. पु., Paris संस्करण, अंथ १, पृ० १०६।) "पूंजी श्रम को नौकर रखे, इसके पहले श्रम पूंजी को उत्पन्न करता है।" (E.G. Wa- kefield, "England and America" [f. जी. वेकफ्रीला, 'इंगलैण्ड और अमरीका'], London, 1833, बण्ड २, पृ० ११०।) .