माल १) मूल्य की अभिव्यंजना के दो ध्रुवः सापेक्ष रूप और सम-मूल्य रूप . मूल्य के रूप का सारा रहस्य इस प्राथमिक रूप में छिपा हुआ है। इसलिए इस स्म का विश्लेषण करना ही हमारी असली कठिनाई है। यहाँ दो भिन्न प्रकार के माल (हमारे उदाहरण में कपड़ा और कोट), स्पष्ट हो, दो अलग-अलग भूमिकाएं प्रदा करते हैं। कपड़ा अपना मूल्य कोट के रूप में व्यक्त करता है। कोट उस सामग्री का काम करता है, जिसके रूप में यह मूल्य व्यक्त किया जाता है। कपड़े की भूमिका सक्रिय है, कोट की मिलिय। कपड़े का मूल्य सापेक्ष मूल्य के रूप में सामने पाता है, या यूं कहिये कि वह सापेन रूप में प्रकट होता है। कोट सम-मूल्य का काम करता है, या यूं कहिये कि यह सम-मूल्य रूप में प्रकट होता है। सापेक्ष रूप और सम-मूल्य रूप मूल्य की अभिव्यंजना के दो घनिष्ट रूप से सम्बन्धित , एक दूसरे पर निर्भर और अपृषक तत्व है, लेकिन ये साप ही साथ एक दूसरे के अपवर्षक, विरोधी परम छोर-यानी एक ही अभिव्यंजना के दो ध्रुव-हैं। ये वो म मशः उन दो भिन्न मालों में बंट गये हैं, जिनको इस अभिव्यंजना ने एक दूसरे के सम्बंध में ला खड़ा किया है। कपड़े के मूल्य को कपड़े के रूप में व्यक्त करना सम्भव नहीं है। २० गड कपड़ा-२० गत कपड़ा यह मूल्य की अभिव्यंजना नहीं है। इसके विपरीत, इस प्रकार का समीकरण तो केवल इतना ही बताता है कि २० गव कपड़ा २० गव कपड़े के सिवा-या कपड़ा नामक उपयोग-मूल्य की एक निश्चित मात्रा के सिवा-और कुछ नहीं है। प्रतएव, कपड़े का मूल्य केवल सापेक ढंग से ही-अर्थात् किसी और माल के रूम में ही - व्यक्त किया जा सकता है। इसलिए कपड़े मूल्य का सापेक्ष रूप पहले से यह मानकर चलता है कि कोई और माल भी- यहां पर कोट- सम-मूल्य के रूप में मौजूद है। दूसरी ओर, जो माल सम-मूल्य के रूप में सामने पाता है, वह उसके साथ-साथ सापेन रूप नहीं धारण कर सकता। दूसरे माल का मूल्य व्यक्त नहीं किया जा रहा है। उसकी भूमिका तो बस पहले माल का मूल्य व्यक्त करने वाली सामग्री का काम पूरा करना है। इसमें सम्बह नहीं कि २० गव कपड़ा-१ कोट, या २० गड कपड़े का मूल्य है १ कोट, इस अभिव्यंजना से यह उल्टा सम्बंध भी प्रकट होता है कि १ कोट-२० गव कपा, या १ कोट का मूल्य है २० गत कपड़ा। लेकिन तब मुझे कोट का मूल्य सापेक ढंग से व्यक्त करने के लिए समीकरण को उलटना पड़ेगा, और जैसे ही में यह करता हूं, वैसे ही कोट के बजाय कपड़ा सम-मूल्य बन जाता है। प्रतएव, मूल्य की एक ही अभिव्यंजना में कोई एक माल एक साथ दोनों म धारण नहीं कर सकता। इन रूपों की ध्रुवता ही उनको परस्पर अपवर्ती बनाती है। इसलिए, कोई माल सापेक रूप धारण करेगा या उसका उल्टा सम-मूल्य म, यह पूर्णतया इस बात पर निर्भर करता है कि मूल्य की अभिव्यंजना में संयोगवश उसकी कौनसी स्थिति है- अर्थात् वह ऐसा माल है, जिसका मूल्य व्यक्त किया जा रहा है, या ऐसा माल, जिसके म में मूल्य व्यक्त किया जा रहा है। .
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