पूंजीवादी उत्पादन . . . - . अनुभाग ३ - मूल्य का रूप अथवा विनिमय-मूल्य माल दुनिया में उपयोग मूल्यों, वस्तुओं अथवा जिन्स के रूप में पाते हैं, जैसे लोहा, कपड़ा, अनाज इत्यादि। यह उनका साधारण, सावा, शारीरिक म है। लेकिन ये यदि माल है, तो सिर्फ इसलिए किये दोहरी किस्म की पीयें हैं। ये उपयोग की वस्तुएं भी है और उसके साथ-साथ मूल्य के भण्डार भी। इसलिए, ये बी केवल उसी हर तक माल के रूम में प्रकट होती है, अथवा मालों का रूप धारण करती है, जिस हद तक कि उनके दो म होते हैं: एक-शारीरिक अपवा प्राकृतिक रूप, और दूसरा-मूल्य-म। मालों के मूल्य की वास्तविकता इस दृष्टि से भीमती विकली (Dame Quicly) से मिन्न है कि हम यह नहीं जानते कि "उसे कहाँ पायेंगे"। मालों का मूल्य उनके तत्व की अनगढ़ भौतिकता का विल्कुल उल्टा होता है, पदार्थ का एक परमानु भी उसकी बनावट में प्रवेश नहीं कर पाता। किसी भी एक माल को ले लीजिये और फिर उसे अकेले ही चाहे जितनी बार बर-उबर घुमाकर देखिये, लेकिन जिस हब तक वह मूल्य है, उस हब तक उसे समझ पाना असम्भव प्रतीत होता है। किन्तु यदि हम यह याद रखें कि मालों के मूल्य की केवल सामाजिक वास्तविकता होती है, और यह वास्तविकता ये केवल उसी हद तक प्राप्त करते हैं, जिस हर तक कि वे एक समान सामाजिक तत्व की, पर्वात् मानव-श्रम की, अभिव्यंजनाएं अथवा मूर्त म है, तो उससे स्वाभाविक रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि मूल्य केवल माल के साथ माल के सामाजिक सम्बंध के रूप में ही प्रकट हो सकता है। असल में तो हमने विनिमय-मूल्य से, प्रथवा मालों के विनिमय-सम्बंध से, ही अपनी यह सोच पारम्भ की थी, जिसका उद्देश्य उस मूल्य का पता लगाना बा, मो इस सम्बंध के पीछे छिपा हुमा है। अब हमें फिर उस म की तरफ लौटना चाहिए, जिस रूप में मूल्य पहली बार हमारे सामने पाया था। हर पाबमी, यदि वह और कुछ नहीं जानता, तो इतना र जानता है कि सभी मालों का सामान्य मूल्प-स्म होता है, जो उनके उपयोग मूल्यों के नाना प्रकार के शारीरिक मों से बहुत भिन्न होता है। मेरा मतलब मालों के मुद्रा-म से है। यहाँ, लेकिन, हमारे सामने एक ऐसा काम पाकर खड़ा हो जाता है, जिसे पूंजीवादी प्रशास्त्र ने अभी तक कभी हाल में भी नहीं लिया है। वह काम यह है कि इस मुद्रा-म्प की उत्पत्ति कैसे हुई, इसका पता लगाया बाये, और मालों के मूल्य-सम्बंध में मूल्य . किस प्रकार व्यक्त होता है, इसको उसकी सबसे सरल, लगभग प्रवृश्य रूपरेखा से प्रारम्भ करके प्रांतों को चकाचौंध कर देने वाले मुद्रा-रूम तक के विकास को समझा जाये। यदि हम यह काम करेंगे, तो मुद्रा केस में नो पहेली हमारे सामने पेश है, उसे भी लगे हाथों बूम गलेंगे। सबसे सरल मूल्य-सम्बंध, बाहिर है, वह है, जो किसी एक माल और दूसरी तरह के किसी एक और माल के बीच कायम होता है। इसलिए वो मालों के मूल्यों का सम्बंध हमारे सामने उनमें से किसी एक माल मूल्य की सबसे सरल अभिव्यंजना को पेश कर देता है। क) मूल्य का प्राथमिक. अथवा आकस्मिक रूप क' माल का 'प' परिमाण-'ख' माल का 'फ' परिमाण, प्रवा 'क' माल के 'प' परिमाग का मूल्य है माल का 'फ' परिमाण। २० गव कपड़ा १ कोट, अपवा २० गव कपड़े का मूल्य है १ कोट। -
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