पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६७२

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अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण ६६६ . अर्थ नहीं होता कि वे खुद अपनी पैदावार का पहले से कम हिस्सा अपने वास्ते चाहते हैं और पहले से अधिक हिस्सा अपने मालिक के पास छोड़ देने को राजी हैं। और अगर यह कहा जाये कि इससे तो 'glut' (प्रचुरता) पैदा हो जायेगी, क्योंकि " (मजदूरों के द्वारा) "उपभोग कम हो जायेगा, तो इसका मैं केवल यही जवाब दे सकता हूं कि 'glut' (प्रचुरता) मोटे मुनानों का ही दूसरा नाम है।"1 परन्तु यह पण्डिताऊ सगड़ा कि मजदूर को घूसकर जो लूट मचायी जाये, उसको प्रषिक से अधिक संचय करने के दृष्टिकोण से प्रौद्योगिक पूंजीपति और हाथ पर हाथ रखकर खाने वाले धनी के बीच किस तरह बांटा जाये, जुलाई को क्रान्ति का सामना होने पर जल्दी-जल्दी बवा दिया गया। उसके थोड़े समय बाद लियों के शहरी सर्वहारा ने क्रान्ति का शंख बनाया और इंगलैग का बेहाती सर्वहारा खलिहानों और अनाज के गोलों में भाग लगाने लगा। इंग्लिश चैनल के इस पोर प्रोबेनवाद फैलने लगा, उस मोर से साइमोंवाद और यूरियेवाद का प्रसार होने लगा। अब अप्रामाणिक प्रशास्त्र के उदय की घड़ी मा पहुंची थी। जिस दिन नस्साऊ रब्लयू • सीनियर ने मानचेस्टर में यह पाविष्कार किया था कि पूंजी का मुनाफ़ा (मय व्याज के) काम के दिन के बारह घंटों में से केवल अन्तिम घटे की पैदावार होता है, उसके मेक एक वर्ष पहले वह दुनिया के सामने एक और माविष्कार की घोषणा कर चुका था। उसने बड़े गर्व के साथ कहा था: 'उत्पादन के एक प्राचार के रूप में पूंजी शब्द के स्थान पर मैं परिवर्जन शब्द का प्रयोग करता हूं।"" प्रामाणिक अर्थशास्त्र के प्राविष्कारों का यह एक बेमिसाल नमूना है। यहां एक मार्षिक परिकल्पना के स्थान पर एक चाटुकारितापूर्ण शन रख दिया गया है-volla tout (पौर बस)। सीनियर ने लिखा है : जब जंगली प्रादमी धनुष बनाता है, तब वह उद्योग तो करता है, परन्तु परिवर्जन नहीं करता।" इससे पता "

. 1 उप० पु., पृ० ५६ ।

  • Senior, “Principes fondamentaux de l'Écon. Pol.”, Arrivabene 97 97974,

Paris, 1836, पृ० ३०८।-पुराने प्रामाणिक अर्थशास्त्र के मतावलम्बियों के लिये इस बात को सहन करना असम्भव था। उन्होंने लिखा: “इसके" (श्रम और मुनाफ़ा - इस शब्दावली के) “स्थान पर मि० सीनियर श्रम और परिवर्जन- इस शब्दावली का प्रयोग करते है। जो अपनी आय को रूपान्तरित कर देता है, वह उस भोग का परिवर्जन कर देता है, जो उसे इस माय को खर्च कर देने पर प्राप्त होता । मुनाफ़ा पूंजी से नहीं, पूंजी के उत्पादक ढंग के उपयोग से पैदा होता है।" (John Cazenove, उप० पु०, पृ० १३० , नोटा) इसके विपरीत, जान स्टुअर्ट मिल एक तरफ़ तो रिकार्यों के मुनाफ़े के सिद्धान्त को स्वीकार कर लेते हैं और दूसरी तरफ़ सीनियर के “परिवर्जन की उजरत" के सिद्धान्त को भी अपना लेते हैं। सभी प्रकार के द्वन्द्व का स्रोत , हेगेलीय विरोध उनके लिये जितना अरुचिकर है, बेतुके विरोधों से उनको उतना ही मानन्द प्राप्त होता है। इस मप्रामाणिक अर्थशास्त्री के दिमाग में यह साधारण सा विचार कभी नहीं पाया कि प्रत्येक मानव-कार्य को उसके कार्य का "परिवर्जन" समझा जा सकता है। भोजन करना उपवास का परिवर्जन है, चलना निश्चल बड़े रहने का परिवर्जन है, काम करना काहिली का परिवर्जन है, काहिली काम का परिवर्जन है; इत्यादि, इत्यादि। इन महानुभावों को कभी-कभार स्पिनोजा की इस उक्ति पर भी विचार करना चाहिये कि "Determinatio est Negatio" (निर्धारण निषेध है)। .