६७२ पूंजीवादी उत्पादन अनुभाग ४ - अतिरिक्त मूल्य के पूंजी तथा आय के सानुपातिक विभाजन से स्वतंत्र किन बातों से संचय की राशि निर्धारित होती है? श्रम-शक्ति के शोषण की मात्रा। श्रम की उत्पादकता। व्यवसाय में लगी हुई पूंजी और ख़र्च कर दी गयी पूंजी का बढ़ता हुआ अन्तर ।- पेशगी लगायी गयी पूंजी का परिमाण - यदि यह पहले से निश्चित हो कि अतिरिक्त मूल्य किस अनुपात में पूंजी तथा प्राय में विभाजित हो जाता है, तो यह स्पष्ट है कि संचित पूंजी का परिमाण अतिरिक्त मूल्य के निरपेक्ष परिमाण पर निर्भर करेगा। मान लीजिये कि ८० प्रतिशत का पूंजीकरण और २० प्रतिशत का उपभोग हो जाता है। तब यदि कुल अतिरिक्त मूल्य ३,००० पौण है, तो संचित पूंजी २,४००, और यदि वह १,५०० पौण है, तो संचित पूंची १,२०० पौण होगी। इसलिये, जिन तमाम बातों से अतिरिक्त मूल्य की राशि निर्धारित होती है, उन्हीं से संचय का परिमाण भी निर्धारित होता है। इन तमाम बातों का हम संक्षेप में एक बार फिर वर्णन किये देते हैं, लेकिन केवल उसी हद तक, जिस हद तक कि उनसे संचय के विषय में कुछ नये दृष्टिकोणों से विचार करने में सहायता मिलती है। पाठक को यह याद होगा कि अतिरिक्त मूल्य की बर मुल्यतया भम-शक्ति के शोषण की मात्रा पर निर्भर करती है। अर्थशास्त्र इस तथ्य को इतना अधिक महत्व देता है कि श्रम की बढ़ी हुई उत्पादकता के फलस्वरूप संचय में जो तेजी मा जाती है, उसे प्रशास्त्र कभी- कभी मजदूर के बढ़े हुए शोषण के फलस्वरूप पायी हुई तेजी समान बैठता है।' अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन से सम्बंध रखने वाले अध्यायों में हम बराबर यह मानकर चले थे कि मजदूरी कम से कम श्रम-शक्ति के मूल्य के बराबर बर होती है। किन्तु व्यवहार में मजदूरी को जबर्दस्ती 1"रिकार्डो ने लिखा है : 'समाज की अलग-अलग अवस्थानों में पूंजी का संचय-या श्रम से काम लेने' (अर्थात् उसका शोषण करने) 'के साधनों का संचय-अधिक या कम तेज होता है, और हर हालत में वह लाजिमी तौर पर श्रम की उत्पादक शक्तियों पर निर्भर करता है। सामान्यतया श्रम की सब से अधिक उत्पादक शक्तियां वहां होती है, जहां उपजाऊ भूमि की बहुतायत होती है।' यदि पहले वाक्य में श्रम की उत्पादक शक्तियों से लेबक का अर्थ किसी भी उपज के उस प्रशेषभाजक भाग की अल्पता से है, जो उन लोगों को मिल जाता है, जिनके हाथ के श्रम से वह उपज पैदा हुई है, तो यह वाक्य लगभग एक सा है, क्योंकि बचा हुमा मशेषभाजक भाग उस कोष का होता है, जिससे यदि मालिक चाहे ("If the owner pleases"), तो पूंजी का संचय किया जा सकता है। परन्तु यह बात माम तौर पर ऐसे स्थानों पर नहीं होती, जहां बहुत अधिक उपजाऊ भूमि होती है।" ("Observations on Certain Verbal Disputes, &c." ["कुछ शाब्दिक विवादों के विषय में कुछ टिप्पणियां, इत्यादि'], पृ० ७४, ७५)
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