अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण ६७६ . साल से कम में ही हो जाता है; लेती से पैदा होने वाले कच्चे माल और सहायक पदार्थों का प्रायः हर वर्ष पुनरुत्पादन होता है। इसलिये हर बार जब उत्पादन में पहले से उन्नत तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं, तब उनका नयी पूंजी पर और पहले से कार्यरत पूंजी पर लगभग एक साथ प्रभाव पड़ता है। रसायन-विज्ञान में जब कभी कोई प्रगति होती है, तो उससे न केवल उपयोगी पदार्थों की संख्या में प्रौर पहले से ज्ञात पदार्थों को उपयोग में लाने तरीकों में वृद्धि हो जाती है और इसी प्रकार पूंजी की वृद्धि के साथ-साथ उसके विनियोजन- क्षेत्र का भी विस्तार होता जाता है। उसके साथ-साथ लोग उत्पादन और उपभोग की क्रियानों के मलोत्सर्ग को फिर से पुनरुत्पादन की क्रिया के घर में गल देने के तरीके सील जाते हैं, जिससे पेशगी पूंजी लगाये बिना ही पूंजी की नयी सामग्री का सृजन हो जाता है। जिस प्रकार केवल बम-शक्ति के तनाव में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप प्राकृतिक धन से पहले से अधिक लाभ उठाया जाने लगता है, उसी प्रकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी पूंजी को विस्तार करने की एक ऐसी शक्ति प्रदान कर देते हैं, जो इस बात से स्वतंत्र होती है कि सचमुच कार्य में लगी हुई पूंजी का परिमाण कितना है। साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी का मूल पूंजी के उस भाग पर भी प्रभाव पड़ता है, जो अपने नवीकरण की अवस्था में प्रवेश कर चुका है। मूल पूंजी का यह भाग अपना नया रूप धारण करते समय मुफ्त में ही उस सामाजिक प्रगति का अपने में समावेश कर लेता है, जो उस समय सम्पन्न हो रही थी, जिस समय उसकी पुरानी शकल का उपयोग हो रहा था। जाहिर है, उत्पादक शक्ति के इस विकास के साथ-साथ कार्यरत पूंजी का प्रशिक मूल्य-हास हो जाता है। इस मूल्य-हास का जिस हब तक प्रतियोगिता पर उप प्रभाव पड़ता है, उस हद तक उसका बोझा मजदूर के कंधे बरदाश्त करते हैं, क्योंकि पूंजीपति उसका पहले से अधिक शोषण करके अपनी पति-पूर्ति करने की कोशिश करता है। श्रम उत्पादन के जिन साधनों को खर्च कर गलता है, उनका मूल्य वह अपनी पैदावार में स्थानांतरित कर देता है। दूसरी मोर, श्रम की एक निश्चित मात्रा उत्पादन के जिन साधनों को गतिमान बनाती है, उनके मूल्य तथा राशि में आम की उत्पादकता के बढ़ने के साथ-साथ वृद्धि होती जाती है। यद्यपि श्रम की एक सी मात्रा अपनी पैदावार में सदा एक सा नया मूल्य जोड़ती है, फिर भी मन की उत्पादकता के बढ़ने के साथ-साथ उस पुराने पूंजी-मूल्य में वृद्धि होती जाती है, जो श्रम के द्वारा पैदावार में स्थानांतरित कर दिया जाता है। मिसाल के लिये, हो सकता है कि एक अंग्रेज कताई करनेवाला और एक चीनी कताई करनेवाला बोनों एक सी तीव्रता के साथ समान समय तक काम करते रहें। तब वे दोनों एक सप्ताह तक बराबर मूल्यों का सृजन करेंगे। परन्तु, इस समानता के बावजूद, एक विशाल स्वसंचालित यंत्र पर काम करनेवाले अंग्रेस मजदूर की सप्ताह भर की पैदावार के मूल्य और उस चीनी मजदूर की सप्ताह भर की पैदावार के मूल्य में, जिसके पास केवल एक पर्वा है, बहुत बड़ा अन्तर होगा। जितने समय में चीनी मजदूर एक पॉर कपास कातता है, उतने ही समय में अंग्रेस कई सौ पौन कपास कात गलता है। उसकी पैदावार का मूल्य उन पुराने मूल्यों की सैकड़ों गुनी बड़ी राशि के कारण बढ़ जाता है, जो इस पैदावार में एक नये उपयोगी रूप में पुनः प्रकट होते हैं और वो इसलिये एक बार फिर पूंची की तरह कार्य कर सकते हैं। जैसा कि फेररिक एंगेल्स ने हमें बताया है, "१७५२ में इंगलैग में ऊन की तीन साल की पूरी फसल मजदूरों के प्रभाव के कारण ज्यों की त्यों पड़ी थी, और यदि नव-माविकत मशीने . . .
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