oo पूंजीवादी उत्पादन . ६,००० पौड बी, बढ़कर १८,००० पौड हो गयी है, तो जाहिर है कि उसका अस्थिर संघटक भी बढ़ गया होगा। पहले वह ३,००० पौडवा, तो प्रवबह ३,६०० पोहो गया होगा। परन्तु वहाँ पहले मम की मांग में २० प्रतिशत की वृद्धि करने के लिये पूंजी में २० प्रतिशत की वृद्धि काफ़ी थी, अब उसके लिये मूल पूंजी को तिगुना करना पड़ेगा। चौधे भाग में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि किस प्रकार सामाजिक मम की उत्पादकता के विकास के लिये बड़े पैमाने की सहकारिता का पहले से विद्यमान होना पावश्यक होता है; किस प्रकार इस तरह की सहकारिता के प्राचार पर ही मन का विभाजन और संयोजन संगवित किया जा सकता है और उत्पादन के साधनों का एक विशाल पैमाने पर संकेत्रण करके उनकी बचत की जा सकती है। किस प्रकार केवल इसी प्राचार पर मन के ऐसे प्राचारों का बन्म होता है, जिनका स्वरूप ही ऐसा होता है कि उनका सामूहिक ढंग से ही उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि मशीनों की संहति से काम लिया जा सकता है। किस प्रकार इस प्राधार पर प्रकृति की विराट शक्तियों को उत्पादन की सेवा में लगा देना सम्भव होता है और किस प्रकार इस मापार पर उत्पादन की प्रक्रिया को विज्ञान के प्रायोगिक उपयोग का रूप दिया जा सकता है। मालों के उत्पावन के प्राचार पर, जहाँ उत्पादन के साधनों पर व्यक्तियों का निजी स्वामित्व होता है और वहां इसलिये कारीगर या तो पोरों से अलग तथा स्वतंत्र रूप से माल तैयार करता है और या अपनी बम-शक्ति को माल के रूप में बेच देता है, क्योंकि उसके पास स्वतंत्र उद्योग के सापन नहीं होते,-ऐसी परिस्थिति में बड़े पैमाने की सहकारिता केवल अलग- अलग पूनियों की वृद्धि में ही मूर्त रूप धारण कर सकती है, या यूं कहिये कि यह केवल उसी अनुपात में अमल में पा सकती है, जिस अनुपात में सामाजिक उत्पादन के साधन और जीवन- निर्वाह के साधन पूंजीपतियों की निजी सम्पत्ति में पान्तरित हो जाते हैं। मानों के उत्पादन के प्राचार पर बड़े पैमाने का उत्पादन केवल पूंजीवादी म में ही सम्भव है। इसलिये उत्पादन की विशिष्टतया पूंजीवादी प्रणाली के लिये मालों के अलग-अलग उत्पादकों के पास पूंजी का कुछ संचय पहले से ही पावश्यक होता है। प्रतः हमें यह मानकर चलना पड़ा था कि यह संचय बस्तकारी के पूंजीवादी उचोग में मान्तरित होने के दौरान में हो जाता है। इसे पाविम संचय कहा जा सकता है क्योंकि यह विशिष्टतया पूंजीवादी उत्पादन का ऐतिहासिक परिणाम नहीं, बल्कि उसका ऐतिहासिक मापार होता है। यह किस तरह प्रारम्भ होता है, यहां पर इसकी छानबीन करने की मनी कोई प्रावश्यकता नहीं है। यहां तो इतना पान मेला ही काफी है कि पादिन संचय प्रस्थान-बिनु का काम करता है। परन्तु इस प्राचार पर मम की सामाणिक उत्पादक शक्ति को बढ़ाने के जितने तरीले निकाले पाते हैं, इसके साप-साय प्रतिरिक्त मूल्य या प्रतिरिक्त पैराचार का उत्पादन बढ़ाने के भी तरीके होते हैं, बोपुर संचय का सृजनात्मक तत्व होता है। और इसलिये पूंजी से पूंजी का उत्पादन करने के, या उसका पहले से तेच गति से संचय करने के भी तरीके होते हैं। अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में बो निरन्तर पुनःस्मान्तरण होता रहता है, यह पब उत्पादन की प्राण्या में प्रवेश करने वाली पूंजी के परिणाम की वृद्धि काम धारण कर लेता है। यह पीचर उत्पादन के पैमाने को बढ़ाने का प्राधार बन जाती है। यह बीच भम की उत्पावन-शक्ति को बढ़ाने के उन नये-नये तरीकों का प्राचार बन पाती मो उसके साथ-साथ निकलते रहते है। यह पाच पतिरिक्त मूल्य के उत्पादन में तेजी लाने का प्राधार बन जाती है। इसलिये, मगर एकनास माना तक पूंजी का संचित हो पाना उत्पादन की विशिष्टतया पूंजीवादी प्रणाली की एक मावस्यक पातं प्रतीत होता है, तो दूसरी ओर यह .
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