पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम - पूंजी की प्राविधिक संरचना में इस तरह जो परिवर्तन प्राता है, उत्पादन के साधनों में जान गलने वाली मम-शक्ति की कुल राशि की तुलना में इन साधनों की कुल राशि में जो वृद्धि हो जाती है, वह पुनः पूंजी की मूल्य-रचना में प्रतिबिंबित होती है। वह इस तरह कि पूंजी का अस्थिर संघटक अंश कम हो जाता है और स्थिर अंश बढ़ जाता है । मिसाल के लिये, मुमकिन है कि शुरू में किसी पूंजी का ५० प्रतिशत भाग उत्पादन के साधनों में लगाया गया हो और ५० प्रतिशत भन-शक्ति पर खर्च किया गया हो, पर बाद को, बम की उत्पादकता का विकास हो जाने पर, उसका ८० प्रतिशत भाग उत्पादन के साधनों पर खर्च होने लगे और २० प्रतिशत श्रम-शक्ति पर; और प्रागे भी इसी तरह का परिवर्तन हो सकता है। अस्थिर पूंजी की तुलना में स्थिर पूंजी की उत्तरोत्तर वृद्धि के इस नियम की मालों के बामों का तुलनात्मक विश्लेषण करने पर हर कदम पर (जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है) पुष्टि होती जाती है, उसके लिये हम चाहे भिन्न-भिन्न प्रार्षिक युगों की और चाहे एक ही युग में अलग-अलग राष्ट्रों की तुलना करें। बाम का जो तत्व केवल उत्पादन के साधनों के मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है या जो केवल खर्च कर गली गयी पूंजी के स्थिर अंश का प्रतिनिधित्व करता है, उसका सापेक परिमाण संचय की प्रगति के अनुलोम मनुपात में होता है, जब कि बाम के उस दूसरे तत्व का सापेन परिमाण (या पूंजी के अस्थिर अंश का सापेक्ष परिमाण), जिसके द्वारा श्रम को उजरत दी जाती है, संचय की प्रगति के प्रतिलोम अनुपात में होता है। किन्तु पूंजी के स्थिर अंश की तुलना में उसके अस्थिर अंश मेंजो कमी माती है, या पूंजी की मूल्य-संरचना में जो परिवर्तन पा जाता है, उससे केवल यही प्रकट होता है कि पूंजी के भौतिक संघटकों की संरचना में लगभग क्या परिवर्तन हो गया है। मिसाल के लिये, कताई में पाजकल जो पूंजी-मूल्य इस्तेमाल होता है, यदि उसका भाग स्थिर है और अस्थिर है, जब कि, उसके मुकाबले में, १८ वीं सदी के प्रारम्भ में उसका भाषा भाग स्थिर और भाषा भाग अस्थिर हुमा करता था, तो दूसरी पोर, मारहवीं सदी के प्रारम्भ में कताई के श्रम की एक निश्चित मात्रा कच्चे माल, बम के प्राचारों प्रादि की जितनी बड़ी राशि को उत्पादक ढंग से बर्ष कर बेती बी, पान वह उनकी उससे कई सौ गुनी राशि को वर्ष कर गलती है। इसका कारण केवल यह है कि मम की उत्पादकता के बढ़ने के साथ-साथ न केवल उसके द्वारा खर्च कर दिये गये उत्पादन के साधनों की राशि बढ़ती जाती है, बल्कि उनकी राशि की तुलना में उनका मूल्य घटता जाता है। इसलिये, उनका मूल्य निरपेन दृष्टि से तो बढ़ जाता है, पर उनकी राशि के अनुपात में नहीं बढ़ता। अतएव स्थिर पूंजी उत्पादन के साधनों की जिस राशि में पान्तरित कर पी. जाती है और अस्थिर पूंजी भम-शक्ति की जिस राशि में बदल दी जाती है, इन दो राशियों के अन्तर में जितनी अधिक वृद्धि हो जाती है, उसकी अपेक्षा स्थिर तथा अस्थिर पूंजी के अन्तर में बहुत कम वृद्धि होती है। दूसरे प्रकार का अन्तर पहले प्रकार के अन्तर के साथ-साथ बढ़ता है, पर उससे कम मात्रा में। परन्तु यदि संचय की प्रगति से पूंजी के प्रस्थिर अंश का सापेक्ष परिमाण कम हो जाता है, तो यह कदापि नहीं होता कि ऐसा होने से उसके निरपेक्ष परिमाण में वृद्धि होने की सारी सम्भावना खतम हो जाती हो। मान लीजिये कि एक पूंजी-मूल्य पहले ५० प्रतिशत स्थिर और ५० प्रतिशत अस्थिर पूंजी में बांटा गया था और बाद को वह ८० प्रतिशत स्थिर और २० प्रतिशत अस्थिर पूंजी में बांट दिया जाता है। यदि इस बीच में मूल पूंजी, नो, मान लीजिये, १ 5 .