पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७१५ - बढ़कर ६ शिलिंग हो जाये, तो उसमें २८० प्रतिशत की वृद्धि हो जायेगी, जो बहुत प्रभावपूर्ण प्रतीत होगी। चुनाचे हर तरफ काश्तकार लोग पीज-पुकार मचा रहे थे, और मजदूरी की इनबरों के बारे में, जिनके सहारे पावनी केवल पाषा पेट साफर ही जिन्दा रह सकता पा, लन्दन के "Economist" ने पूर्ण गम्भीरता के साथ कहा था कि खेतिहर मजदूरों की मजदूरी में "a general and substantial advance" ("पाम तौर पर और पर्याप्त वृद्धि") हो गयी है। तब कास्तकारों ने प्या किया? क्या उन्होंने इसके लिये इन्तजार किया कि इस शानदार उजरत के नतीजे के तौर पर खेतिहर मजदूरों की तादाद इतनी स्यारा बढ़ जायेगी और उनकी नस्ल इतनी अधिक फले-फूलेगी कि रूढ़िवादी पार्षिक मस्तिष्क के मावेशानुसार उनकी मजदूरी फिर अपने पाप लाजिमी तौर पर गिर जायेगी? नहीं, कास्तकारों ने पहले से ज्यादा मशीनें इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, और देखते ही देखते मजदूर फिर इस अनुपात में अनावश्यक बन गये, बो कास्तकारों तक के लिये संतोषजनक पा। प्रब "पहले से ज्यादा पूंगी" पहले से अधिक उत्पादक प में खेती में लगा दी गयी थी। इसके फलस्वरम मम की मांग न केवल सापेन दृष्टि से कम हो गयी, बल्कि निरपेक दृष्टि से भी गिर गयी। उपर्युक्त मार्षिक कपोल-कल्पना मजबूरी के माम उतार-चढ़ाव का, या मजदूर-वर्ग:- अर्थात् कुल श्रम-शक्ति-और कुल सामाजिक पूंजी के अनुपात का नियमन करने वाले नियमों को उन नियमों के साथ गड़बड़ा देती है, जिनके अनुसार काम करने वाली प्रावाबी का उत्पादन के अलग-अलग क्षेत्रों में बंटवारा होता है। मिसाल के लिये, यदि कुछ अनुकूल परिस्थितियों के फलस्वरूप उत्पादन के किसी खास क्षेत्र में संचय में विशेष रूप से तेची पा जाती है और इस क्षेत्र के मुनाफे मौसत मुनाफों से ऊंचे होने के कारण नयी पूंजी को इस क्षेत्र की मोर प्राकर्षित करते हैं, तो जाहिर है कि वहां मम की मांग बढ़ जायेगी और उसके साथ मजदूरी भी बढ़ जायेगी। ऊंची मजदूरी के कारण काम करने वाली मावादी का भी पहले से बड़ा भाग इस क्षेत्र की पोर सिंच पायेगा, और यह बीच उस बात तक जारी रहेगी, जब तक कि यह क्षेत्र भन-शक्ति से पट नहीं जाता और अब तक कि मजदूरी पाजिर फिर अपने पासत स्तर पर या मजदूरों का अत्यधिक दबाव होने के कारण उसके भी नीचे नहीं पहुंच जाती। तब न सिर्फ उद्योग की इस विशेष शाखा में मजदूरों का मागमन रुक जायेगा, बल्कि उसके स्थान पर इस शाखा से मखदूरों का गमन प्रारम्भ हो जायेगा। यहां प्रशास्त्री को यह खयाल होता है कि इस बिंदु पर पहुंचकर वह यह बात पूरी तरह समझ जाता है कि ऐसा क्यों और किस कारण से होता है कि मजदूरी बढ़ जाने पर मजदूरों की संख्या में निरपेक्ष वृद्धि हो जाती है और मजदूरों की संख्या में निरपेक वृद्धि होने पर मजबूरी घट जाती है। परन्तु वास्तव में वह उत्पादन के केवल एक बास क्षेत्र की मन की मन्दी में पाने वाले स्थानीय प्रदोलनों को ही देलता है, वह केवल उन्हीं घटनाओं को देखता है, जो पूंजी की बदलती हुई पावश्यकताबों के अनुसार पूंजी लगाने के अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली पाबाबी के विभाजन के साथ घटती हैं। व्हराब और पोसत समृद्धि के काल में प्रौद्योगिक रिवर्व सेना सक्रिय भमिक सेना के गले का पत्थर बन जाती है। पति-उत्पावन और अंधाधुंध तेजी के समाने में बह सक्रिय भमिकों की मांगों और गगों को रोक कर रखती है। इसलिये, सापेक्ष अतिरिक्त बम-संस्था यह पुरी . 1"Economist", २१ जनवरी १९६०।
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