पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७२९ जिसका मूल्य " १८५५ में संयुक्तांगल राज्य में ६,१४,५३,०७६ टन कोयला निकला था, १,६१,१३,१६७ पास बा १८६४ में वहाँ १,२७,८७,८७३ टन कोयला निकला, जिसका मूल्य २,३१,९७,९६८ पौन पा। संयुक्तांगल राज्य में १८५५ में ३२,१८,१५४ टन प्राशुट लोहा निकाला गया था, जिसका मूल्य ८०,४५, ३८५ पौन वा; १८६४ में वहां ४७,६७,६५१ टन प्रशुर लोहा निकाला गया, जिसका मूल्य १,१६,१९,८७७ पोज पा। १८५४ में संयुक्तांगल राज्य में रेल की कुल जितनी लाइनें इस्तेमाल होती थी, उनकी लम्बाई ८,०५४ मील पी, और उनमें २८,६०,६८,७९४ पौण की पुकती पूंजी लगी हुई थी। १९६४ तक रेलों की लम्बाई १२,७८६ मील हो गयी थी और पुकती पूंजी ४२,५७,१६,६१३ पौग पर पहुंच गयी थी। १८५४ में संयुक्तांगल राज्य के प्रायात और निर्यात का कुल गोड २६,१२,१०,१४५ पौण पा, १९६५ तक वह ४८,९९,२३,२८५ पौड हो गया था। निर्यात की गति इस तालिका से स्पष्ट हो जाती है: १८४६-५,८८,४२,३७७ पौड १८६०-१३,५८,४२,८१७ पौड १८४६-६,३५,९६,०५२ १८६५-१६,५८,६२,४०२ १८५६-११,५८,२६,९४८ १८६६-१८,८६,१७,५६३ इन चं उदाहरणों के बाद यह बात समझ में मा जाती है कि बिटिश जनता के रजिस्ट्रार जनरल ने इतने विजयोल्लास के साथ यह क्यों कहा था कि "देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, पर वह उतनी तेजी से नहीं बढ़ी है, जितनी तेजी से उद्योग और धन का विकास हुआ है।" प्राइये, अब इस उद्योग के प्रत्यक्ष अभिकर्तामों, या इस धन के उत्पादकों-अर्थात् मजदूर- वर्ग-की मोर ध्यान दें। ग्लैड्स्टन ने कहा है : “इस देश की सामाणिक अवस्था की यह एक सबसे अधिक शोचनीय विशेषता है कि जिस समय जनता की उपभोग करने की शक्तियां कम हो रही वीं और जिस समय श्रमजीवी वर्ग तथा कारीगरों की गरीबी और कष्ट बढ़ रहे थे, उसी समय ऊपरी वर्गों में लगातार पन का संचय होता जा रहा था और उनकी पूंजी लगातार बढ़ती जा रही थी।" इस बगुलाभगत मंत्री ने १३ फरवरी १८४३ को हाउस प्रात कामन्स में यह कहा था। 1 इस समय , यानी मार्च १८६७ में, फिर हिन्दुस्तानी और चीनी मंडियां अंग्रेजी सूती सामान की गांठों से पटी हुई हैं। १८६६ में सूती मिलों के कारीगरों की मजदूरी में ५ प्रतिशत की कटौती हुई थी। १८६७ में इसी प्रकार की एक कटौती के परिणामस्वरूप प्रेस्टन में २०,००० मजदूरों की हड़ताल भी हुई। [चौबे बर्मन संस्करण का नोटः यह उस संकट की भूमिका थी, जो उसके शीघ्र बाद ही फट पड़ा।-के. एं०] I"Census, &c." ('जनगणना, मादि'), खण्ड ३, पृ० ११। १३ फ़रवरी १८४३ को हाउस माफ़ कामन्स में ग्लैड्स्टन का भाषण । "The Times", 14th February 1843 ('टाइम्स', १४ फ़रवरी १८४३)।- "इस देश की सामाजिक अवस्था की यह एक सबसे अधिक शोचनीय विशेषता है कि हम पाज यह देखते हैं और इसमें तनिक भी सन्देह की गुंजाइश नहीं है कि जहां जनता की उपभोग करने की शक्तियों में इस समय कमी मा गयी है और गरीबी और कष्ट का दबाव बढ़ता जा रहा है, वहां उसके साथ-साथ ऊपरी वर्गों में धन का लगातार संचय हो रहा है, उनकी भोग-विलास की प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं और उनके भोग-विलास के साधनों में वृद्धि हो गयी है।" ("Hansard", 13th February 1843 ["सई', १३ फ़रवरी १८४३]1)
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