७३० पूंजीवादी उत्पादन "1 उसके बीस वर्ष बाद उसने १६ अप्रैल १८६३ को बजट पेश करते हुए अपने भाषण में यह कहा कि “१८४२ से १८५२ तक देश की कर लगाने योग्य प्राय में ६ प्रतिशत की वृद्धि हुई.. १९५३ से १९६१ तक के वर्षों में बह १८५३ के मापार से २० प्रतिशत ऊपर उठ गयी। यह तव्य इतना पाश्चर्यजनक है कि उसपर सहसा विश्वास नहीं होता...पन और शक्ति की यह मदोन्मत्त कर देने वाली वृद्धि... पूरी तरह सम्पत्तिवान वर्गों तक सीमित है... उससे ममजीवी जन-संख्या को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचना चाहिये, क्योंकि इससे सामान्य उपभोग के माल सस्ते हो जाते हैं। इधर पनी अधिकाधिक धनी होते जा रहे हैं, उपर गरीबों की गरीबी कम होती जा रही है। बहरसूरत, मैं यह दावा नहीं करता कि वरिखता की चरम सीमाएं कुछ कम हो गयी है। कहां तो ग्लब्स्टन इतने ऊंचे उड़ रहे थे और कहां यकायक इतने नीचे प्रा गिरे। यदि मजदूर- वर्ग अब भी "गरीब" बना हुआ है, यदि उसकी गरीबी केवल उसी अनुपात में कम हुई है, जिस अनुपात में वह धनी वर्ग के लिये "धन और शक्ति की मदोन्मत्त कर देने वाली वृद्धि" करता जाता है, तो जाहिर है कि सापेक्ष दृष्टि से वह अब भी उतना ही गरीब है। यदि गरीबी की चरम सीमाएं पहले से कम नहीं हुई हैं, तो जाहिर है कि वे बढ़ गयी है, क्योंकि उपर धन की चरम सीमाएं बढ़ गयी हैं। जहां तक बीवन-निर्वाह के साधनों के सस्ते होने का प्रश्न है, सरकारी प्रांकड़ों से, मिसाल के लिये, London Orphan Asylum (लन्दन मनापालय) के हिसाब से पता चलता है कि यदि १८६० से १८६२ तक के तीन वर्षों के प्रोसत की १८५१-१८५३ के मौसत से तुलना की जाये, तो दामों में १० प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है। अगले तीन साल में, यानी १८६३-६५ में, मांस, मक्खन, दूध, चीनी, नमक, कोयला और जीवन निर्वाह के कई अन्य मावश्यक साधनों के दाम उत्तरोत्तर बढ़ते गये। ग्लैड्स्टन ने अगला बजट पेश करने के समय, ७ अप्रैल १८६४ को, जो भाषण दिया, उसमें अतिरिक्त मूल्य कमाने की कला और "गरीबी" की चाशनी के साथ मिली हुई जनता की खुशी का महाकवि पिंवार जैसा प्रशस्ति-गान किया गया है। उसमें उन्होंने कंगाली के कगार पर बड़े जन-साधारण की चर्चा की है, व्यवसाय की उन शालाओं का जिक्र किया है, जिनमें "मजदूरी नहीं बढ़ी है,"पौर अन्त में मजदूर-वर्ग की खुशी का निचोड़ इन शब्दों में पेश किया है: "बस में से नौ प्रादमियों के लिए मानव-जीवन किसी तरह जिन्दा रहने के संघर्ष का नाम है।" प्रोफेसर फ्रोसेट को चूंकि ग्लैड्स्टन की तरह . 1१६ अप्रैल १८६३ को हाउस माफ़ कामन्स में ग्लैड्स्टन का भाषण। "Morning Star", April 17th ('मानिंग स्टार', १७ अप्रैल)।
- 4778 1879 "Miscellaneous Statistics of the United Kingdom"
('संयुक्तांगल राज्य के विविध प्रांकड़े') में सरकारी विवरण देखिये ; भाग ६, London, 1866, पृ० २६०-२७३, विभिन्न स्थानों पर। अनाथालयों पादि के मांकड़ों के बजाय यदि मंत्रियों की पत्रिकामों के उन लेखों को पढ़ा जाये, जिनमें राजकुमारों और राजकुमारियों के विवाहों के लिये दहेज की सिफ़ारिश की गयी है, तो उनसे भी इस बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है। कारण कि इन लेखों में जीवन-निर्वाह के साधनों की बढ़ी हुई महंगाई को हमेशा ध्यान में रखा जाता है। ७ अप्रैल १८६४ को हाउस माफ़ कामन्स में ग्लैड्स्टन का भाषण । - "Hansard" में यह अंश इस प्रकार है : “फिर-और यह बात और भी अधिक व्यापक रूप में सत्य है- पयादातर लोगों के लिये मानव-जीवन किसी तरह जिन्दा रहने के संघर्ष के सिवा और क्या है?".