पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७३३ . . कार्यन और १८० प्रेम नाइट्रोजन हो और प्रोसत डंग के पुरुष के दैनिक भोजन में कम से कम ४,३०० पेन कार्यन और २०० पेन नाइट्रोजन हो; इसका मतलब यह है कि स्त्रियों को उतने पोषक पदार्थ मिलने चाहिये, जितने २ पौण बबन की गेहूं की अच्छी बल रोटी में होते हैं, और पुरुषों के भोजन में उससे अधिक पोषक पदार्ष होने चाहिये । इस प्रकार, वयस्क पुरुषों और स्त्रियों को सप्ताह में पोसतन कम से कम २८,६०० पेन कार्यनं और १,३३० प्रेन नाइट्रोजन मिलने चाहिये। ग. स्मिथ का यह अनुमान उस समय बड़े पाश्चर्यजनक ढंग से व्यवहार में प्रमाणित हो गया, जब प्रभाव और पशिता ने सूती मिलों के कारीगरों के उपभोग को कम करते-करते अल्पतम सीमा पर पहुंचा दिया और जब यह पता चला कि यह सीमा बही पी, जिसपर ग. स्मिथ अपने अध्ययन के फलस्वरूप पहुंचे थे। दिसम्बर १८६२ में सूती मजदूरों का पोसत उपभोग प्रति सप्ताह २६,२११ पेन कार्बन और १,२९५ प्रेन नाइट्रोजन पर पहुंच गया था। १८६३ में प्रिवी काउंसिल ने अंग्रेज मजदूर वर्ग के सबसे कम पोषण पाने वाले हिस्से की जांच करने का आदेश दिया। प्रिवी काउंसिल के मैरिफल-अफसर ग. साइमन ने इस काम के लिये उपरोक्त ग. स्मिथ को चुना। उनकी जांच के क्षेत्र में एक तरफ यदि लेतिहर मजदूर मा गये थे, तो दूसरी तरफ वह रेशम की बुनाई करने वाले मजदूरों, सीने-पिरोने का काम करने वाली औरतों, चमड़े के बस्ताने बनाने वालों, मोवे बनाने वालों, बस्ताने बनाने वालों और जूते बनाने वालों तक फैला हुआ था। मोजे बनाने वालों को छोड़कर ये तमाम प्रौद्योगिक मखदूर शहरों के रहने वाले थे। जांच के लिये यह नियम बना लिया गया था कि प्रत्येक कोटि में से केवल सबसे अधिक स्वस्थ परिवारों को, जिनकी दशा पौरों से अच्छी है, छांटा जायेगा। और इस जांच का सामान्य परिणाम यह निकला कि "घर के अन्दर काम करने वाले कारीगरों की जितनी कोटियों की जांच की गयी, उनमें से केवल एक ही कोटि ऐसी थी, जिसको मात्र पर्याप्तता के अनुमानित मानवण (अर्थात् जितनी नाइट्रोजन भूल से पैदा होने बाली बीमारियों को दूर रखने के लिये प्रावश्यक वी) से परा सी अधिक नाइट्रोजन मिल जाती थी, एक और कोटि लगभग अनुमानित मानवम तक पहुंच जाती थी और दो के पोषण में नाइट्रोजन और कार्वन दोनों की कमी पी-और एक कोटि के पोषण में तो ये दोनों तत्व बहुत ही कम थे। इसके अलावा, जहाँ तक उन खेतिहर परिवारों का सम्बंध है, जिनकी जांच की गयी, उनके बारे में यह पता चला कि उनमें से बीस प्रतिशत से अधिक को कार्यन बाला भोजन पर्याप्तता के अनुमानित मानदम से कम मिलता है, एक तिहाई से अधिक को माइड्रोजन वाला भोजन पर्याप्तता के अनुमानित मानवम से कम मिलता है और तीन काउंटियों (वर्कशायर, पारसकोर्डशायर और सोमरसेटशायर) के प्रोसत ढंग के स्थानीय भोजन में नाइट्रोजन वाले पदार्थ पर्याप्त मात्रा में नहीं होते। यहां तक खेतिहर मजदूरों का सम्बंध पा, संयुक्तांगल राज्य के सबसे बनी भाग-यानी इंगलैड-के खेतिहर मजदूरों को सबसे सराव भोजन मिलता पानेतिहर मजदूरों में अपर्याप्त भोजन का सबसे घातक प्रभाव मुल्यतया लियों और बच्चों पर पड़ता था, क्योंकि समझा जाता था कि “पुरुष को तो जाना ही चाहिये, 1 " Public Health. Sixth Report, 1864" ('freelfarar Fareed it sot foute, १८६४'), पृ० १३। .उप. पु., पृ० १७॥
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