७३२ पूंजीवादी उत्पादन इंगलब में मुहताबों की सरकारी सूची में ८,५१,३६६ व्यक्ति वर्ष मे, १८५६ में ८,७७,७६७ और १८६५ में ६,७१,४३३। कपास के अकाल के कारण १८६३ में उनकी संख्या बढ़कर १०,७६,३८२ और १८६४ में १०,१४,९७८ हो गयी थी। १८६६ के संकट का लन्दन पर सबसे अधिक भयानक प्रभाव पड़ा था। उसने संसार की मम्मी के इस केन में, जिसकी जन-संख्या पूरे स्कोटलेड राज्य की जन-संस्था से अधिक है, मुहताजों की संख्या को इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि १८६५ की तुलना में १८६६ में उनकी तादाद १९.५ प्रतिशत अधिक हो गयी और १८६४ की तुलना में २४.४ प्रतिशत बढ़ गयी, और १८६६ की तुलना में १८६७ के शुरू के महीनों में तो मुहताबों की संख्या में और भी अधिक वृद्धि हो गयी। मुहताबों के प्रांकड़ों का विश्लेषण करने पर दो बातें सामने पाती है। एक तो यह कि मुहताजों की संख्या में जो उतार-चढ़ाव माता रहता है, उसमें प्रौद्योगिक पक के नियतकालिक परिवर्तन प्रतिबिंबित होते हैं। दूसरी यह कि जैसे-जैसे पूंजी के संचय के साथ-साथ वर्ग-संघर्ष का और इसलिये भमजीवियों की वर्ग-चेतना का विकास होता जाता है, वैसे-वैसे मुहताजों की वास्तविक संस्था के बारे में सरकारी प्रांकड़े अधिकाधिक भ्रामक बनते जाते हैं। उदाहरण के लिये, पिछले दो साल से अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाएं ("The Times", "Pall Mall Gazette* मादि) इसका बड़ा शोर मचा रही है कि मुहताबों के साथ बर्बर व्यवहार किया जाता है, परन्तु असल में यह बीच बहुत पुरानी है। के० एंगेल्स ने १४ में ठीक इन्हीं विभीषिकाओं का वर्णन किया था और उन्होंने बताया था कि उस समाने में भी "सनसनीखेज खबरें " छापने वाले प्रखबारों ने कुछ समय के लिये इसी तरह का भंग रचा था और इन चीजों के बारे में बहुत शोर मचाया था। लेकिन पिछले दस वर्षों में लन्दन में "भूल से मर जाने वालों" ("deaths by starvation") की संख्या में जो भयानक वृद्धि हुई है, उससे इस बात में खरा भी सन्देह नहीं रहता कि मजदूरी-पेशा लोग मुहतावसानों की दासता से, जहां लोगों को उनकी गरीबी की सजा दी जाती है, कितना परते हैं और उनका यह पर कितनी तेजी से बढ़ता जा (ब) सिटिश प्रौद्योगिक मजदूरपन का बहुत कम मजदूरी पाने वाला हिस्सा १८६२ के कपास के प्रकाल के दिनों में प्रिवी काउंसिल ने ग. स्मिथ को लंकाशायर और पेशापर के तुती कारीगरों की पोषण सम्बंधी स्थिति की जांच करने का काम दिया था। इसके पहले, अनेक वर्षों के निरीक्षण के बाद, ग. स्मिथ इस नतीजे पर पहुंचे थे कि "भूल से वो बीमारियां पैरा हो जाती है (starvation diseases), उनको दूर रखने के लिये" बरी है कि मौसत रंग की स्त्री के दैनिक भोजन में कम से कम ३,९०० प्रेन यहां वेल्स को हर जगह इंगलैण्ड में शामिल कर लिया गया है। 'ऐडम स्मिथ के दिनों के मुकाबले में अब जमाना कितनी तरक्की कर गया है, इसका एक सबूत यह है कि ऐडम स्मिय तक कभी-कभी "manufactory" ("हस्तनिर्माणशाला") के लिये "workhouse" ("मुहताज-याना") शब्द का प्रयोग करते थे। उदाहरण के लिये, श्रम-विभाजन सम्बंधी अध्याय के शुरू में उन्होंने लिखा था: "धंधे की हर अलग-अलग शाबा में काम करने बालों को अक्सर एक ही मुहताज-माने में इकट्ठा किया जा सकता है।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७३५
दिखावट