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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७३८

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७३५ और सबसे अधिक रोटी बूते बनाने वालों के यहां खर्च होती थी, जो औसतन ११६ पौष्ण रोटी का हर हफ्ते उपयोग करते थे; यदि तमाम मजदूरों का पोसत निकाला जाये, तो सप्ताह में एक वयस्क मजदूर ६६ पौड रोटी का उपभोग करता था। चमड़े के बस्ताने बनाने वाले सबसे कम शक्कर (शीरा, राब मावि की शकल में ) साते थे। वे प्रति सप्ताह ४ प्रॉस शक्कर इस्तेमाल करते थे। मोजे बनाने वाले सबसे ज्यादा-११ माँस शक्कर-इस्तेमाल करते थे। और सभी प्रकार के मजदूरों का पोसत निकालने पर प्रति सप्ताह और प्रति वयस्क मजदूर का ८ प्रॉस शक्कर का खर्च बैठता था। मक्खन (ची मादि) का प्रोसत साप्ताहिक सर्च ५ माँस प्रति वयस्क मजदूर था। मांस (सुअर का मांस इत्यादि) के साप्ताहिक खर्च का प्रोसत रेवाम की बुनाई करने वालों में सबसे कम पा-७ माँस, और चमड़े के बस्ताने १ बनाने वालों में सबसे ज्यादा पा-१८ मांस ; विभिन्न प्रकार के तमाम मजदूरों का प्रोसत निकाला जाये, तो हर वयस्क मजदूर प्रति सप्ताह १३.६ प्रॉस मांस खर्च करता था। एक वयस्क मजदूर हर सप्ताह अपने भोजन पर कुल कितना पैसा खर्च करता था, इसका प्रोसत निकालने पर प्रत्येक कोटि के लिये निम्नलिखित संख्याएं सामने आती हैं : रेशम बुनने वाला २ शिलिंग पेन्स खर्च करता था, सीने-पिरोने का काम करने वाली औरत २ शिलिंग ७ पेन्स, ३ चमड़े के दस्ताने बनाने वाला २ शिलिंग पेन्स, जूते बनाने वाला २ शिलिंग ५२ पेन्स और मोसे बनाने वाला २ शिलिंग ई पेन्स। मैग्लेखनील के रेशम बुनने वाले मजदूरों में से प्रत्येक केवल १ शिलिंग ई पेन्स प्रति सप्ताह भोजन पर खर्च करता था। सबसे खराब हालत सीने-पिरोने का काम करने वाली औरतों, रेशम की बुनाई करने वालों और चमड़े के दस्ताने बनाने वालों की थी। म. साइमन ने सामान्य स्वास्थ्य की अपनी रिपोर्ट में इन तथ्यों की वर्षा करते हुए कहा है : "जिस गक्टर ने भी गरीबों के कानून के मातहत लोगों का इलाज किया है या जिसे अस्पतालों के बार्गे या बाह्य रोगी-फलों का घोड़ा बहुत अनुभव है, वह इस बात की पुष्टि कर सकता है कि बहुत से रोग दोषपूर्ण भोजन के कारण पैदा होते हैं, या उग्र रूप धारण कर लेते हैं. परन्तु, मेरी राय में, यहाँ एक प्रत्यन्त महत्वपूर्ण सफ़ाई सम्बंधी संदर्भ को याद रखना बरी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि भोजन के प्रभाव को लोग बहुत पनिच्छापूर्वक सहन करते है, और पाम तौर पर भोजन में कमी उस बात पाती है, जब उसके पहले अन्य प्रकार के प्रभाव पा चुके होते हैं। इसके बहुत पहले कि भोजन की कमी स्वास्थ्य की दृष्टि से चिन्ता का विषय बन जाये और बेहव्यापार-विज्ञान-विशारद नाइट्रोजन पौर कार्वन के उन कनों को गिनने की सोचें, जो जीवन और भुखमरी के बीच सीमा-रेता ... 1 उप. पु., पृ. २३२, २३३ ।