पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७५७

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७५४ पूंजीवादी उत्पादन . इन तमाम बातों के बावजूद, १७७० से १७८० तक अंग्रेस नेतिहर मजदूर की भोजन और रहने के स्थान के मामले में और साथ ही मान-सम्मान तथा मनोरंजन प्रादि की दृष्टि से जो स्थिति थी, उसे एक ऐसा मावर्श माना जा सकता है, जिसतक वह उसके बाद फिर कभी नहीं पहुंच सका। उसकी प्रोसत मजदूरी, यदि उसे गेहूं के पाइंटों में व्यक्त किया जाये, तो १७७० से १७७१ तक ९० पाइंट पी, जब कि दिन के काल में ( १७९७ में) वह सिर्फ ६५ पाइंट और १८०८ में ६० पाइंट रह गयी थी। बैंकोविन-विरोधी पुड में समीन के मालिकों, काश्तकारों, कारखानेदारों, सौदागरों, साहूकारों, शेयर बाजार के बलालों, क्रौन के ठेकेदारों प्रादि ने असाधारण म से धन बटोरा था। उसके अन्तिम दिनों में खेतिहर मजदूर की क्या हालत थी, यह ऊपर बताया जा चुका है। कुछ हद तक तो बैंक नोटों का मूल्य-हास हो जाने के कारण और कुछ हद तक इसलिये कि इस मूल्य-हास से स्वतंत्र रूप से भी बीवन-निर्वाह के प्राथमिक साधनों के दाम बढ़ गये बे-इन दोनों कारणों से खेतिहर मजदूरों की नाम मात्र की मजबूरी में वृद्धि हो गयी थी। परन्तु असल मजदूरी में क्या परिवर्तन माया पा, इसका बहुत मासानी से पता लगाया जा सकता है, और उसके लिये अनावश्यक विस्तार में जाने की कोई परत नहीं है। १८१४ में भी गरीबों का कानून और उसका अमली म्प १७६५ के समान ही था। पाठकों को यह पार होगा कि बेहाती इलाकों में इस कानून को कैसे अमल में लाया जाता था। मजदूर को किसी तरह केवल बिन्दा रहने के लिये विस रकम की पावश्यकता थी, उसमें और उसकी नाम मात्र की मजबूरी में जितना अन्तर होता था, वह वर्ष-कोष से दी जाने वाली भील के बारा पूरा कर दिया जाता था। काश्तकार जो मजदूरी देता था और सार्वजनिक कोष से वो कमी पूरी की जाती थी, उनके अनुपात से दो बातें प्रगट होती है। एक तो यह बात सामने पाती है कि मजदूरों की मजदूरी अल्पतम सीमा के कितने नीचे गिर गयी थी। दूसरे, यह स्पष्ट होता है कि खेतिहर मजदूर किस हब तक मजदूर और मुहताज का मिश्रण बन गया पा, या वह किस हद तक अपने गांव या कस्बे का अर्थ-पास बन गया था। पाइये, एक ऐसी काउन्टी को लें, वो सभी काउष्टियों में पायी जाने वाली मौसत परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है। १७६५ में नाम्पटनशायर में मौसत साप्ताहिक मजदूरी ७ शिलिंग ६ पेन्स थी। ६ व्यक्तियों के परिवार का कुल वार्षिक खर्चा ३६ पौड १२ शिलिंग ५ पेन्स बता पा। उनकी कुल पाय २९ पौड १८ शिलिंग होती थी। सार्वजनिक कोष से ६ पौस १४ शिलिंग २ पेन्स की कमी पूरी की जाती थी। १८१४ में इसी काउन्टी में साप्ताहिक मजदूरी १२ शिलिंग २ पेन्स हो गयी थी। ५ व्यक्तियों के परिवार का कुल वार्षिक सर्चा ५४ पौष १० सिलिंग ४ पेन्स बैठता था। उनकी कुल माय होती थी ३६ पास २ शिलिंग। सार्वजनिक कोष . है : "दिन भर के श्रम का दाम इस समय १५१४ के दाम के चौगुने या अधिक से अधिक पांचगुने से ज्यादा नहीं है। परन्तु अनाज का दाम तब से सातगुना हो गया है और मांस तथा कपड़े का दाम लगभग पन्द्रहगुना ज्यादा हो गया है। इसलिये, रहन-सहन के खर्चे में जो इजाफा हो गया है, श्रम का दाम उसके अनुपात में नहीं बढ़ा है, बल्कि वह इससे इतना दूर है कि पहले उसका इस वर्ष के साथ जो अनुपात था, अब उसका प्राधा भी प्रतीत नहीं होता।" 1 Barton, उप० पु०, पृ. २६। १८ वीं सदी के मन्तिम दिनों के लिये देखिये Eden, उप० पु०॥ . .