पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७७३ (१०) नौम्पटनशायर बिनवर्ष, पिककोई और पर। इन गांवों में गाड़ों के मौसम में २०-३० पादमी काम के प्रभाव में गलियों में कार घूम रहे थे। अनाज और दूरनीप के सेतों को काश्तकार हमेशा उतना नहीं बोतते, जितना उनको बोतना चाहिये। इसलिये समीवार ने अपने लिये यह बेहतर पाया है कि अपने सारे खेतों को इकट्ठा करके २ या ३ चोक बना दे। इसी से यह बेकारी फैल गयी थी। एक मोर समीन मजदूरों की मांग करती है, दूसरी पोर बेकार मजदूर भूली नजरों से जमीन को ताकते हैं। गरमियों में इनसे इतना काम कराया जाता है कि उनका सारा सत निकल जाता है, जाड़ों में उनको भूखों मरने के लिये छोड़ दिया जाता है। कोई पाश्चर्य नहीं, यदि यहां के लोग अपनी बोली में कहते हैं कि "the parson and gentle folk seem frit to death at them "11 उदाहरण के लिये, पलूर में सबसे छोटे भाकार के सोने के कमरों में बार-बार, पांच-पांच और छ:-छ: बच्चों के साथ विवाहित बम्पत्ति रह रहे पेया ५बच्चों के साथ ३ वयस्क रहते थे, या पति-पत्नी का बोड़ा अपने दादा और बच्चों के साथ रह रहा था, और बच्चे सब स्कार्लट ज्वर में पड़े हुए थे, इत्यावि, इत्यादि। वो घरों में सोने के दो-दो कमरे थे। उनमें से एक में ८ वयस्कों का और दूसरे में ९ वयस्कों का परिवार रहता था। - (११) विल्टशायर स्ट्रेटन। ३१ घरों को देखा गया। ८ में सोने का केवल एक कमरा था। इसी गांव के पेंटिल नामक स्थान में एक cot (एकमंजिला घर) था, जो १ शिलिंग ३ पेन्स प्रति सप्ताह के किराये पर उठा हुआ था और जिसमें ४ बयस्क और ४ बच्चे रहते थे। छोटे-बड़े पत्थर के टुकड़ों के ऊबड़-खाबड़ फर्श से लेकर घिसे पुराने छप्पर की छत तक इस घर में दीवारों के सिवा और कोई चीज सही-सलामत न थी। (१२) बोरसेस्टरशायर यहाँ घरों को उतने अंघाव डंग से नहीं गिराया गया है। फिर भी १८५१ प्रौर १८६१ के बीच प्रत्येक घर के निवासियों की प्रोसत संख्या ४.२ से बढ़कर ४.६ हो गयी है। बरसे। यहां बहुत से घर और उनके छोटे-छोटे बगीचे हैं। कुछ काश्तकारों का कहना है कि "the. cots are a great nuisance here, because they bring the poor" ("ये cots [एकमधिले घर] हमारे लिये निरी मुसीबत है, क्योंकि उनके लालच से गरीब-गुरवा यहाँ पाकर भीड़ लगाते हैं")। एक भद्र पुरुष ने कहा: "और इन घरों से गरीबों का कोई नाम भी नहीं होता । यदि पाप ५०० मकान बनायेंगे, तो ये भी बहुत जल्दी किराये पर बढ़ जायेंगे और सच पूछिये, तो जितने मकान बनते जाते हैं, उतना ही इन लोगों की मांग बढ़ती जाती है" (न सन्चन की राय में घरों से उनमें रहने वालों का जन्म होता है, जो उसके "पादरी पार बड़े लोगों का तो उन्हें देखते ही दम निकल जाता है।"
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