माल ७५ मूल्य की अभिव्यंजना में समानता का सम्बंध देखा। वह जिस समाज में रहते थे, केवल उसकी विशेष परिस्थितियों ने ही उन्हें यह पता नहीं लगाने दिया कि इस समानता की तह में "सचमुच" क्या था। ४) मूल्य का प्राथमिक रूप अपनी सम्पूर्णता में माल के मूल्य का प्राथमिक रूप भिन्न प्रकार के किसी दूसरे माल के साथ उसके मूल्य के सम्बंध को व्यक्त करने वाले समीकरण में निहित है, अर्थात् वह इस दूसरे माल के साथ उसके विनिमय के सम्बंध में निहित है। 'क' नामक माल का मूल्य गुणात्मक दृष्टि से इस तव्य द्वारा व्यक्त होता है कि 'ख' नामक माल का उसके साथ सीधा विनिमय हो सकता है। उसका मूल्य परिमाणात्मक दृष्टि से इस तन्य द्वारा व्यक्त होता है कि 'ख' की एक निश्चित मात्रा का 'क' को एक निश्चित मात्रा के साथ विनिमय हो सकता है। दूसरे शब्दों में, विनिमय- मूल्य का रूप धारण करके किसी भी माल का मूल्य स्वतंत्र एवं निश्चित अभिव्यंजना प्राप्त कर लेता है। जब इस अध्याय के प्रारम्भ में हमने पाम बोल-चाल की भाषा का प्रयोग करते हुए यह कहा था कि माल उपयोग-मूल्य और विनिमय-मूल्य बोनों होता है, तब यदि बिल्कुल सही-सही शब्दों का प्रयोग किया जाये, तो हमने गलत बात कही थी। कोई भी माल उपयोग- मूल्य अथवा उपयोगी वस्तु होता है और मूल्य होता है। इस बोहरी चीन के रूप में, जो कि वह है, वह उसी वक्त प्रकट हो जाता है, जब उसका मूल्य एक स्वतंत्र रूप धारण कर लेता है, अर्थात् जब उसका मूल्य विनिमय-मूल्य का रूप धारण कर लेता है। लेकिन प्रलग पड़े रहते हुए वह यह रूप कभी धारण नहीं करता। यह रूप वह केवल उसी समय धारण करता है, जब उसका अपने से भिन्न प्रकार के किसी दूसरे माल के साथ मूल्य का-अपवा विनिमय का-सम्बंध स्थापित हो जाता है। एक बार यह समान लेने के बाद यदि ऊपर दी गयी शब्दावली का प्रयोग किया जाये, तो कोई बुराई नहीं है। वह केवल संकेत-चिन्ह का काम . . करेगी। . हमारे विश्लेषण से सिद्ध हो चुका है कि माल के मूल्य का रूप, अपवा अभिव्यंजना, मूल्य की प्रकृति से उत्पन्न होता है, न कि मूल्य तथा उसका परिमाण विनिमय-मूल्य के म में अपनी अभिव्यंजना से उत्पन्न होते हैं। किन्तु यह बात जिस प्रकार व्यापारवादियों के कट्टर विरोधी बास्तिपात से स्वतंत्र व्यापार के माधुनिक एजेन्टों को, उसी प्रकार खुद व्यापारवादियों और उनके माधुनिक भक्तों क्रेरियर, गामिल्ह' प्रावि को भी प्रम में गले हुए है। व्यापारवादी मूल्य की अभिव्यंजना के गुणात्मक पहलू पर और इसलिये मालों के सम-मूल्य रूप पर खास बोर देते हैं, वो मुद्रा की शकल में अपना पूर्ण विकास प्राप्त करता है। दूसरी मोर, स्वतंत्र व्यापार के माधुनिक फेरीवाले, जिनके लिये किसी भी बाम पर अपनी जिन्स से पिसाना बरी है, सबसे ज्यादा जोर मूल्य के सापेक रूम के परिमाणात्मक पहलू पर बेते हैं। इसलिये, उनके लिये न तो मूल्य और न ही मूल्य का परिमाण मालों के विनिमय- - . . चुंगी के सब-इंस्पेक्टर F. L. A. Ferrier द्वारा लिखित "Du gouvernement consi- déré dans ses rapports avec le commerce", Paris, 1805, at Charles Ganilh द्वारा लिखित “Des Systemes dEconomie Politique", दूसरा संस्करण, Paris, 1821.
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