पूंजीवादी उत्पादन ५ पलंग%१मकान (naivam navre avrt ofxlac) और ५ पलंग = इतनी मुद्रा में कोई अंतर नहीं है (Khiva névte avel ... boov al TÉVTE KAiva) . अरस्तू ने भागे कहा है कि मूल्य का यह सम्बंध, जिससे यह अभिव्यंजना उत्पन्न होती है, यह बारी बना देता है कि मकान को गुणात्मक दृष्टि से पलंग के बराबर समझा जाये, और इस तरह उनको बराबर समझे बिना वो स्पष्ट रूप से भिन्न वस्तुओं को एक दूसरी के साप इस तरह तुलना नहीं की जा सकती, जैसे कि वे एक ही मापदण्ड से नापी जाने वाली मात्राएं हों। उन्होंने लिखा है: "विनिमय समानता के बिना नहीं हो सकता, और समानता उस वक्त तक नहीं हो सकती, जब तक कि दोनों वस्तुएं एक ही मापदम से न नापी जा सकती हों" (or isbrns pnotoms ropperplus)। लेकिन यहां पाकर वह हर जाते हैं और मूल्य के रूप का मागे विश्लेषण करना बन्द कर देते हैं। उनके शब है : “किन्तु वास्तव में यह असम्भव है (sinev obv airnesla dsbvarov) कि इतनी असमान वस्तुएं एक मापदण से नापी जा सकती हों,"-अर्थात् वे गुणात्मक दृष्टि से बराबर हों। इस प्रकार का समानीकरण इन वस्तुओं की वास्तविक प्रकृति के प्रतिकूल है और इसलिये केवल "व्यावहारिक उद्देश्य के लिये इस्तेमाल की गयी काम-पलाऊ तरकीब" ही हो सकता है। इस तरह, अरस्तू ने खुद हमें बता दिया है कि किस चीन ने उनको प्रागे विश्लेषण नहीं करने दिया; वह बीच थी मूल्य की किसी भी प्रकार की धारणा का प्रभाव। पलंगों मौर मकान दोनों में वह कौनसी समान बस्तु है, वह कौनसा समान तत्व है, जिसके कारण यह सम्भव होता है कि पलंगों का मूल्य मकान के द्वारा व्यक्त हो जाये? अरस्तू का कहना है कि ऐसी कोई वस्तु असल में हो ही नहीं सकती। भला हो क्यों नहीं सकती? मकान की पलंगों से तुलना करने पर मकान उस हर तक बकर पलंगों के समान किसी बीच का प्रतिनिधित्व करता है, जिस हद तक कि वह उस बीच का प्रतिनिषित्व करता है, जो पलंगों तवा मकान दोनों में सचमुच बराबर है। और वह पीच है-मानव-मन। लेकिन एक महत्वपूर्ण तव्य पा, जिसने परन्तु के यह समझने में वापा गली कि मालों को मूल्यवान मानना हर प्रकार के प्रम को समान मानव-श्रम के प में और इसलिये समान गुण के बम के रूप में व्यक्त करने का ही एक डंग हैं। यूनानी समान दासता पर पापारित और इसलिये उसका स्वाभाविक माचार पा-मनुष्यों तथा उनकी मम-पाक्तियों की प्रसमानता। मूल्य की अभिव्यंजना का रहस्य यह है कि हर प्रकार का मम क्योंकि और जिस हर तक साधारण मानव-मन होता है, इसलिये और उस हद तक यह समान और सम-मूल्य होता है। लेकिन यह रहस्य उस बात तक नहीं समझा जा सकता, जब तक कि मानव-समता का विचार एक लोकप्रिय पूर्वग्रह की स्थिरता नहीं प्राप्त कर लेता। किन्तु यह केवल उसी समाज में सम्भव है, जिसमें मम की पैराबार का अधिकतर भाग मालों का सधारण कर लेता है और इसके परिणामस्वरूप जिसमें मनुष्य और मनुष्य का प्रमुख सम्बंध मानों के मालिकों का हो जाता है। परन्तु की प्रतिमा का चमत्कार इसी बात में प्रकट होता है कि उन्होंने मालों के ? .
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