७७८ पूंजीवादी उत्पादन . पर मुलिया किसी शराबखाने में बैठकर मजदूरों को मजदूरी बांटता है। उसके बाद वह घर लौटता है, तो शराब के नशे में लड़खड़ाता हुमा चलता है। कार्य-बायें वो मर्दनुमा मौरतें उसको संमाले रहती है, और उसके पीछे टोली के मजदूरों का जलूस होता है, जिसके पृष्ठ-भाग में शोर मचाते हुए और हंसी-मजाक के गंदे गीत गाते हुए बच्चे और लड़के-लड़कियां चलते हैं। गांव लौटने के समय टोली में, यूरिये के शब्दों में, "phanerogamle" (मुक्त यौन सम्बंधों) का राज्य रहता है। १३ पौर १४ वर्ष की लड़कियों का इसी मायु के अपने सहयोगी लड़कों के द्वारा गर्भवती बना दिया जाना बहुत सामान्य घटना होती है। जिन मुले गांवों के निवासी इन टोलियों में भर्ती होते हैं, वे पाप के केन (Sodoms and Comorrahs) बन जाते हैं। गांवों में प्रवेष सन्तानों की जन्म-संस्था राज्य के बाकी भाग की अपेक्षा दुगुनी है। इन पाठशालाओं में जिन बालिकाओं की बीमा होती है, उनका नैतिक चरित्र विवाहितावस्था में कैसा रहता है, यह ऊपर बताया जा चुका है। उनके बच्चे अक्सर तो मां की खिलाई हुई अफीम के शिकार हो जाते हैं, जो बच जाते हैं, वे जन्म से ही इन टोलियों के रंगल्ट बन जाते हैं। प्रायः देखी जाने वाली जिस प्रकार की टोली का हमने ऊपर वर्णन किया है, वह सार्वजनिक टोली,सामान्य टोली या घूमती-फिरती टोली (public, common, or tramping gang)कहलाती है।कारण कि कुछ निजी टोलियां (private gangs) भी होती हैं। इनमें सामान्य टोली की भांति ही भर्ती होती है, पर पानी कम होते हैं, और वे टोली के मुखिया के बजाय फार्म के किसी बूढ़े नौकर के मातहत काम करते हैं, जो काश्तकार की दृष्टि में किसी और काम के लायक नहीं रह गया होता। इन टोलियों में खानाबदोशों को निन्दादिली तो गायब हो जाती है, पर सभी पर्यवेक्षकों का कहना है कि इनमें मजदूरी कम होती है और बच्चों के साप व्यवहार स्यादा खराब किया जाता है। टोलियों की प्रणाली का चलन पिछले वर्षों में बराबर बढ़ता गया है। जाहिर है कि टोलियों से इसलिये नहीं काम कराया जाता कि उससे टोली के मुखिया का लाभ होगा। उनसे बड़े काश्तकारों का और अप्रत्यक्ष ढंग से समीदारों का धन बढ़ाने के लिये काम कराया जाता है। काश्तकार के लिये, अपने मजदूरों की संख्या को सामान्य स्तर से कम रखने और फिर भी . - 1" लुडफ़ोर्ड की प्राधी लड़कियां" (टोलियों में काम करने के लिये ) “बाहर जाने के कारण खराब हो गयी है।" ( उप. पु., परिशिष्ट, पृ० ६, अंक ३२१) "पिछले कुछ वर्षों में उनकी ( टोलियों) की संख्या बहुत बढ़ गयी है। कुछ स्थानों में अभी हाल में ही उनका प्रयोग शुरू हुमा है। अन्य स्थानों में, जहां टोलियां अनेक वर्षों से काम कर रही है,.. बच्चों से ज्यादा बड़ी संख्या में काम लिया जाता है और ज्यादा छोटे बच्चे नौकर रखे जाते है।" ( उप. पु.,पृ०७६, अंक १७४।) "छोटे काश्तकार टोलियों से कभी काम नहीं लेते।""बड़ी संख्या में स्त्रियों और बच्चों से बराब जमीन पर नहीं, बल्कि ४० शिलिंग से ५० शिलिंग तक का लगान देने वाली जमीनों पर काम कराया जाता है।" (उप. पु., पृ०१७, १४१) "इनमें से एक महानुभाव को अपना लगान इतना प्रिय था कि वह जांच-पायोग के सामने गुस्से से लाल होकर बोले कि इस प्रणाली के खिलाफ केवल उसके नाम के कारण इतना शोर मचाया जा रहा है। यदि इनको "टोलियां" न कहकर "वेतिहर तरुण-तरणियों के पात्मनिर्भर पोचोगिक संघ" कहा जाये, तो सारा झगड़ा मिट जायेगा। .
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