पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८०६

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खेतिहर आबादी की जमीनों का अपहरण ८०३ . जाती थी। योरप के सभी देशों में सामन्ती उत्पादन का विशेष लक्षण यह है कि जमीन सामन्तों के प्रवीन किसानों की बड़ी से बड़ी संख्या में बंटी रहती है। राजा की भांति, सामन्ती प्रभु की शक्ति भी उसकी जमाबन्दी की लम्बाई पर नहीं, बल्कि उसके प्रजाजनों की संख्या पर निर्भर करती थी और उसकी प्रजा की संख्या भूमिपति किसानों की संख्या पर निर्भर करती थी। इसलिये, यद्यपि इंगलैण्ड की जमीन नोर्मन विजय के बाद बड़ी-बड़ी जागीरों (baronies) में बंट गयी थी, जिनमें से एक-एक में अक्सर नौ-नौ सौ पुरानी ऍग्लो-सेक्सन जमींदारियां शामिल थीं, फिर भी सारे देश में किसानों की छोटी-छोटी भू-सम्पत्तियां बिखरी हुई थी और बड़ी-बड़ी जागीरें (seignorial domains) केवल उनके बीच-बीच में जहां-तहां पायी जाती थीं। इन्हीं परिस्थितियों का और १५ वीं शताब्दी में खास तौर पर शहरों में जो समृद्धि पायी जाती थी, उसका यह फल था कि माम लोगों का धन खूब बढ़ गया था, जिसका चांसलर फ़ोर्तेस्क्यू ने अपनी रचना "Laudes legum Angliae में बहुत जोरवार वर्णन किया है। लेकिन इन परिस्थितियों के कारण पूंजीवादी धन का बढ़ना असम्भव था। जिस क्रान्ति ने उत्पावन की पूंजीवादी प्रणाली की नींव डाली, उसकी प्रस्तावना १५ वीं शताब्दी को पाखिरी तिहाई में और १६ वीं शताब्दी के पहले दशकों में लिखी गयी थी। इस काल में सामन्तों के भृत्यों और अनुगामियों के बल , जिनसे , सर जेम्स स्टीवर्ट के न्यायोचित शब्दों में, "हर घर और किला व्यर्व में भरा रहता था", भंग कर दिये गये, और इसके फलस्वरूप स्वतंत्र सर्वहारा मजदूरों की एक बहुत बड़ी संख्या भन की मण्डी में झोंक दी गयी। यपि यह सच है कि राज-शक्ति ने, जो खुद भी पूंजीवादी विकास की उपज थी, अपनी प्रवाष प्रभुसत्ता कायम करने के लिये संघर्ष करते हुए भृत्यों और अनुगामियों के इन बलों को बलपूर्वक नल्दी-जल्दी भंग करा दिया था, तथापि इनके भंग हो जाने का यही एक कारण नहीं पा। इससे कहीं अधिक बड़ा सर्वहारा वर्ग बड़े-बड़े सामन्तों ने, राजा और संसद के . हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि कृषि-दास केवल अपने घर के साथ जुड़े हुए जमीन के टुकड़े का ही मालिक नहीं होता था, हालांकि उसे इस जमीन के लिये अपने सामन्त को खिराज देना पड़ता था, बल्कि अन्य लोगों के साथ-साथ उसका भी गांव की सामूहिक भूमि पर अधिकार माना जाता था। मिराबो ने लिखा है कि (फ्रेडेरिक द्वितीय के राज्यकाल में साइलीसिया में) "le paysan est sert" ("किसान कृषि-दास होता है")। परन्तु इन कृषि-दासों का सामूहिक भूमि पर अधिकार होता था। "On n'a pas pu encore engager les Silésiens au partage des communes, tandis que dans la Nouvelle Marche, il n'y a guère de village où ce partage ne soit exécuté avec le plus grand succès" ["gettoret के लोगों को अभी तक सामूहिक भूमि को बांट लेने के लिये राजी नहीं किया जा सका है, हालांकि नमार्क में मुश्किल से ही कोई ऐसा गांव होगा, जहां इस तरह का बंटवारा अत्यधिक सफलता के साथ नहीं कर दिया गया है"]| (Mirabeau, "De la Monarchie Prussien- ne", Londres, 1788, अंथ २, पृ० १२५, १२६ ।) 'इतिहास की हमारी सभी पुस्तकें प्रायः पूंजीवादी पूर्वग्रहों के साथ लिखा गयी हैं। इसलिये उनकी अपेक्षा तो यूरोपीय मध्य युग का कहीं अधिक सच्चा चित्र हमें जापान में देखने को मिलता है, जहां भू-सम्पत्ति का विशुद्ध सामन्ती ढंग का संगठन और छोटे पैमाने की विकसित बेती पापी जाती है। मध्य युग को कोसकर " उदारपंथी" कहलाने में बहुत सुविधा रहती है। 51