पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८०७

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८०४ पूंजीवादी उत्पादन बिल्ड पृष्टतापूर्वक संघर्ष करते हुए, किसानों को बर्दस्ती उन समीनों से खदेडकर, जिनपर उनका भी खुद सामन्तों के समान ही सामन्ती अधिकार था, और सामूहिक भूमि को छीनकर पैदा कर दिया। पलडर्स में मन के उद्योग का तेब विकास होने और उसके साथ-साथ इंगलब में ऊन का भाव बढ़ जाने से इन देवतालियों को प्रत्यक्ष रूप में बढ़ावा मिला। पुराना अभिजात वर्ग बड़े-बड़े सामन्ती युद्धों में मर-सप गया था। नया अभिजात वर्ग अपने युग की सन्तान था, जिसके लिये पैसा ही सबसे बड़ी ताकत था। इसलिये उसका नारा पा किती की बमीनों को भेजों के बारों में बदल गलो! हैरिसन ने अपनी रचना "Description of England, prefixed to Holinshed's Chronicles" ('tfernaia gertat im शुरू में पुरा हुमा इंगलैड का वर्णन') में बताया है कि छोटे किसानों की समीनों के छिन जाने के फलस्वरूप किस प्रकार देश चौपट हुमा जा रहा है। पर “what care our great encroachers?" ("जमीन छीनने वाले बड़े लोगों को इसकी क्या चिन्ता है?") किसानों के घर और मजदूरों के मोपड़े गिरा दिये गये हैं या सड़-गलकर गिर जाने के लिये छोड़ दिये गये है। हैरिसन ने लिखा है: "यदि हर जागीर के काग्रब देने जायें, तो शीघ्र ही यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि कुछ गागीरों पर सत्रह, प्रारह या बीस घर तक नष्ट हो गये हैं। और इंगलैड में पानकल जितनी कम पावादी है, उतनी कम पहले कभी न पी मैं ऐसे अनेक शहरों और कस्बों का वर्णन कर सकता हूं...वो या तो बिल्कुल तबाह हो गये हैं और या जिनका चौपाई या पाषा भाग बरबाद हो गया है, हालांकि यह भी मुमकिन है कि जहां तहां एकाप शहर पहले से थोड़ा बढ़ गया हो; और में ऐसे कस्बों के बारे में कुछ बता सकता हूं, जिनको गिराकर भेड़ों के बारे बना दिये गये हैं और जिनकी जगहों पर अब केवल सामन्ती प्रभुत्रों के महल बड़े हैं।" इन पुराने इतिहासकारों की शिकायतों में कुछ अतिशयोक्ति हमेशा रहती है, परन्तु उनसे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि उस जमाने में उत्पावन की परिस्थितियों में जो क्रान्ति पायी थी, उसका उस बनाने के लोगों के दिमागों पर क्या असर पड़ा था। चांसलर क्रोस्क्यू और टोमस मोर की रचनाओं की तुलना कीजिये ; यह स्पष्ट हो जायेगा कि १५ वीं और १६ वीं शताब्दियों के बीच कितनी बड़ी बाई है। जैसा कि पोनंटन ने ठीक ही कहा है, अंग्रेज मजदूरवर्ग को किसी संक्रमणकाल से नहीं गुजरना पड़ा, बल्कि उसको तो यकायक स्वर्ण-युग से उठाकर सीधे लौह-युग में पटक दिया गया। कानून बनाने वाले इस क्रान्ति को देखकर भयभीत हो उठे। अभी तक वे सभ्यता के उस शिखर पर नहीं पहुंचे थे, जहां " wealth of the nation" ("राष्ट्र के धन") को बढ़ाना (अर्थात् पूंजी का निर्माण तथा जन-साधारण का निर्मम शोषण करना और उसकी परीबी को लगातार बढ़ाते जाना) हर प्रकार की राजनीति की ultima Thule (पराकाष्ठा ) समझा जाता है। हेनरी सातवें की जीवनी में बेकन ने लिखा है: "उस समय (१४८९ में) सामूहिक बमीन को घेरकर अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति बना लेने का पालन बहुत बढ़ गया, जिसके फलस्वल्प खेती को बमीन (जिसे लोगों और उनके बालबच्चों के प्रभाव में जोतना-बोना सम्भव नहीं पा) परागाह में बदल दी गयी, जिसपर बन्द गड़रिये बड़ी प्रासानी से डोरों के रेबड़ की देखभाल कर सकते थे और जिन बमीनों पर किसानों को एक निश्चित अवधि के लिये, जीवन भर के लिये या प्रस्थायी अधिकार मिला हुमा वा (और अधिकतर "yeomen" [स्वतन्त्र कृषक] इसी प्रकार की समीनों पर रहते थे), के सामन्तों की सीर बन गयीं। इससे लोगों का पतन होने लगा और (उसके फलस्वरूप) .