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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८१८

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बेतिहर माबादी की जमीनों का अपहरण ८१५ . " है, उसका एक उदाहरण सर एफ० एम० ईडन है, वो बड़े दानवीर और साथ ही अनुवारवली भी है। १५ वीं शताब्दी के अन्तिम तेतीस वर्षों से लेकर १८ वीं शताब्दी के अन्त तक जनता को सम्पत्ति का जिस तरह बलपूर्वक अपहरण होता रहा और उसके साथ-साथ जो चोरियां और अत्याचार होते रहे और जनता पर वो मुसीबत का पहाड़ टूटता रहा, उस सब का अध्ययन करने के बाद सर एक० एम० दिन केवल इस सन्तोषजनक परिणाम पर ही पहुंचते हैं कि "खेती की जमीन पर चरागाह की जमीन के बीच एक सही (due) अनुपात कायम करना बकरी पा। पूरी १४ वीं शताब्दी में और १५ वीं शताब्दी के अधिकतर भाग में एक एकड़ परागाह के पीछे २,३ और यहां तक कि ४ एकड़ खेती की जमीन हुआ करती थी। १६ वीं शताब्दी के मध्य के लगभग यह अनुपात बदलकर २ एकर परागाह के पीछे २ एकर खेती की जमीन का हो गया, बाद को २ एकर परागाह के पीछे १ एकड़ खेती की जमीन का अनुपात हो गया पौर मातिर ३ एकर परागाह के पीछे १ एकर लेती की जमीन का सही अनुपात भी कायम हो गया। १६ वीं शताब्दी में, जाहिर है, इस बात की किसी को पाव तक नहीं रह गयी कि खेतिहर मजदूर का सामूहिक समीन से भी कभी कोई सम्बंध था। अभी हाल के दिनों की बात जाने दीजिये ; १८०१ और १८३१ के बीच जो ३५,११,७७० एकर सामूहिक समीन खेतिहर प्राबादी से छीन ली गयी और संसद के हरकण्डों के जरिये खमीवारों के द्वारा जमींदारों को भेंट कर दी गयी, क्या उसके एवज में खेतिहर पाबादी को एक कौड़ी का भी मुभावजा मिला है? बड़े पैमाने पर खेतिहर पाबारी की भूमि के अपहरण की अन्तिम क्रिया वह है, जिसका नाम है "clearing of estates" ("जागीरों को साफ़ करना"-अर्थात् उनको बन-विहीन बना देना)। इंगलैग में भूमि-अपहरण के जितने तरीकों पर हमने अभी तक विचार किया है, वे सब मानों इस "सफाई" के रूप में अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाते हैं। पिछले एक अध्याय में हमने अाधुनिक परिस्थितियों का वर्णन किया था और बताया था कि जहां उजारे जाने के लिये स्वतंत्र किसान नहीं रह गये हैं, वहां झोपड़ों की "सक्राई" शुरू हो जाती है, जिससे खेतिहर मजदूरों को उस भूमि पर, जिसे वे बोतत-बोते हैं, रहने के लिये एक चप्पा बनीन भी नहीं मिलती। लेकिन "clearing of estates" ("जागीरों की सफाई") का असल में और सही तौर पर क्या मतलब होता है, यह हमें केवल माधुनिक रोमानी कथा-साहित्य की प्रादर्श भूमि, स्कोटलंग के पर्वतीय प्रदेवा में ही देखने को मिलता है। वहां इस क्रिया की विशेषता यह है कि वह बड़े सुनियोजित ढंग से सम्पन्न होती है। एक ही बोट में बड़े भारी इलाके की सफाई हो जाती है (मायरलेस में खमींदारों ने कई-कई गांव एक साप साफ कर दिये हैं, पर स्कोटलण में तो जर्मन रियासतों जितने बड़े-बड़े इलाके एक बार में साफ कर दिये जाते हैं); और अन्तिम बात यह कि अबन की हुई समीनें एक विचित्र प्रकार की सम्पत्ति का रूप धारण कर लेती है। स्कोटलेज के पर्वतीय प्रदेश में रहने वाले केल्ट लोग कबीलों में संगठित थे। प्रत्येक कबीला जिस भूमि पर बसा हुभाषा, उसका मालिक था। कबीले का प्रतिनिधि, उसका मुखिया, या "बड़ा पावनी," केवल नाम के लिये इस सम्पत्ति का मालिक होता था, जैसे इंगलेम की रानी नाम के लिये राष्ट्र की समस्त भूमि की स्वामिनी है। जब अंग्रेस सरकार इन "बड़े पारमियों" की मापसी लड़ाइयों को बन्द कराने में कामयाब हो गयी और कोटलंग के मैदानी भागों पर ये "बड़े पावनी" लगातार दो पढ़ाइयां किया करते थे, जब भी रोकपी गयी, तो इन सवालों के मुखियालों ने सती का अपना पुराना पुस्तैनी पेशा छोड़ नहीं दिया, बल्कि . .