खेतिहर मावादी की जमीनों का अपहरण ८१७ का विक देना काफी होगा। यह महिला प्रशास्त्र में पारंगता पी। इसलिये, अपनी जागीर की बागडोर संभालते ही उसने उसमें एक मौलिक सुधार करने का निश्चय किया और ते कर दिया कि वह अपनी पूरी काउन्टी को, जिसकी पावावी इसी प्रकार की अन्य कार्रवाइयों के फलस्वरम पहले ही केवल १५,००० रह गयी थी, मेड़ों की चरागाह में बदल देगी। १८१४ से १८२० तक इन १५,००० निवासियों के लगभग ३,००० परिवारों को सुनियोजित ढंग से उबाड़ा और साबेड़ा गया। उनके सारे गांव नष्ट कर दिये गये और बला गले गये। उनके तमाम खेतों को बरागाहों में बदल दिया गया। उनको बेदखल करने के लिये अंग्रेच सिपाही भेजे गये, जिनकी गांवों के निवासियों के साथ कई बार मार-पिटाई हुई। एक बुढ़िया ने अपने मोपड़े से निकलने से इनकार कर दिया था। उसे उसी में जलाकर भस्म कर दिया गया। इस प्रकार इस मा महिला ने ७,९४,००० एकड़ ऐसी समीन पर अधिकार कर लिया, जिसपर बाबा मावन के समाने से कबीले का अधिकार पार निकाले हुए प्रामवासियों को उसने समुद्र के किनारे ६,००० एकड़ समीन देवी-पानी प्रति परिवार दो एकड़। यह ६,००० एकड़ समीन अभी तक बिल्कुल परती पड़ी हुई थी, और उससे उसके मालिकों को परा भी लाभ नहीं होता था। परन्तु ग्वेष के मन में अपनी प्रजा के लिये यकायक इस हद तक क्या उमड़ी कि उसने इस जमीन को केवल '२ शिलिंग ६ पेन्स प्रति एकर के प्रोसत लगान पर उनको उठा दिया और यह लगान उसने अपने कबीले के उन लोगों से वसूल किया, जो सदियों से उसके परिवार के लिये अपना खून बहाते पाये थे। कबीले की पुरायी हुई समीन को उसने २९ बड़े-बड़े भेड़ पालने के कामों में बांट दिया, जिनमें से हरेक में केवल एक परिवार रहता था और जिनपर प्रायः इंगलस से मंगाये हए खेत-मजदूरों को बसाया गया था। १८३५ के पाते-पाते १५,००० पल्ट नर-नारियों का स्थान १,३१,००० मेड़ों ने मे लिया था। मादिवासियों में से बचे-सचे लोग समुद्र के किनारे पर . . पर ले पाया जाता है, जिसको जमीन काम दे सकती है... तब जिन प्रासामियों की बेदखली की जाती है, वे या तो पड़ोस के कस्बों में जीविका की तलाश करते हैं, इत्यादि।" (David Buchanan, "Observations on, &c., A. Smith's Wealth of Nations" [tfars garant, 'ऐडम स्मिथ की रचना 'राष्ट्रों का धन' पर कुछ टिप्पणियां, मादि'], Edinburgh, 1814, बण्ड ४, पृ. १४) "स्कोटलैण्ड के धनी लोग किसानों के परिवारों की सम्पत्ति का इस तरह अपहरण करते थे, जैसे झाड़ियों के जंगल को साफ़ कर रहे हों, और वे गांवों तथा उनमें रहने वाले लोगों के साथ उसी प्रकार का व्यवहार करते थे, जिस प्रकार का व्यवहार जंगली जानवरों से परेशान हिन्दुस्तानी प्रतिहिंसा की भावना से उन्मत्त होकर शेरों से भरे हुए जंगल के साथ करते है... इनसान की जानवर की एक बाल या एक लोष के साथ अदला-बदली कर ली पाती है, बल्कि कभी-कभी तो इनसान को उससे भी सस्ता समझा जाता है...परे,सच पूछिये, तो यह उन मुगलों के इरादों से कहीं अधिक भयानक है, जिन्होंने चीन के उत्तरी प्रान्तों में चुसने के बाद अपनी परिषद के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि वहां के निवासियों को मारगला जाये और भूमि को चरागाह में परिणत कर दिया जाये। कोटलैण्ड के पर्वतीय प्रदेश के बहुत से भू-स्वामियों ने पर अपने देश में और अपने देशवासियों का गला काटकर इस योजना को prettere faceret I" (George Ensor, “An Inquiry Concerning the Popula- tion of Nations" [जाप एन्सर, 'राष्ट्रों की जनसंख्या के विषय में एक जांच'], Lon- don, 1818, पृ. २१५, २१६।) 52-45 .
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