खेतिहर मावादी की जमीनों का अपहरण ८२१ . तरीके हैं, जिनके परिये पादिम संचय हुआ था। इन तरीकों के परिये पूंजीवादी खेती के लिये मैदान साफ़ किया गया, भूमि को पूंजी का अभिन्न अंग बनाया गया, और शहरी उद्योगों की पावश्यकता को पूरा करने के लिये एक "स्वतंत्र" पोर निरामय सर्वहारा को जन्म दिया गया। . . हद तक हल करने में मदद करता है, क्योंकि उससे उसकी पत्नी को, उसके बच्चों को, उसके खेत-मजदूरों को और खुद उसको भी एक उपयोगी धंधा करने को मिल जाता है। लेकिन इस सहायता के बावजूद उसका जीवन कितना दयनीय होता है ! गरमियों में वह नाव बेने वाले गुलाम की तरह काम करता है और जमीन को जोतता है और फसल काटता है। रात को ९ बजे वह सोने के लिये लेटता है और सुबह को २ बजे उठ खड़ा होता है, क्योंकि यदि वह देर करे, तो दिन का काम पूरा नहीं हो सकता । जाड़ों में उसे देर तक पाराम करके अपनी शक्ति को पुनः प्राप्त करना चाहिये। लेकिन राज्य के कर अदा करने के लिये उसे मुद्रा चाहिये, और मुद्रा प्राप्त करने के लिये उसे अपना सारा अनाज बेच देना चाहिये , और यदि वह अपना सारा अनाज बेच देता है, उसके पास रोटी खाने के लिये और अगली फसल बोने के लिये काफ़ी बीज नहीं बचते । इस कमी को पूरा करने के लिये उसे कताई करनी चाहिये और उसमें खूब मेहनत करनी चाहिये । चुनांचे जाड़ों में किसान माधी रात को . या एक बजे सोने के लिये लेटता है और ५ या ६ बजे उठ जाता है। या वह रात को | बजे सो जाता है और सुबह २ बजे ही उठकर काम में लग जाता है। इतना अधिक काम और इतनी कम नींद पादमी का सारा सत सोख लेती है, और यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में लोग बहुत जल्दी बूढ़े हो जाते हैं"]] (Mirabeau, उप० पु०, ग्रंथ ३, पृ० २१२ और उसके प्रागे के पृष्ठ।) दूसरे संस्करण का नोट : रोबर्ट सौमर्स की जिस रचना को हमने ऊपर उद्धृत किया है, उसके प्रकाशन के १८ वर्ष बाद, अप्रैल १८६६ में, प्रोफेसर लेग्रोने लेवी ने Society of Arts (घंधों की परिषद) के सामने भेड़ों की चरागाहों के हिरनों के जंगलों में बदल दिये जाने के बारे में एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि स्कोटलैण्ड के पर्वतीय प्रदेश को किस तरह उजाड़ा गया है। अन्य बातों के अलावा उन्होंने इस भाषण में यह भी कहा था: "बस्तियों को उजाड़कर भेड़ों की चरागाहों में बदल देना बिना कुछ खर्च किये आमदनी हासिल करने का सबसे सुविधाजनक उपाय था पर्वतीय प्रदेश में यह अक्सर देखने में माता था कि भेड़ों की चरागाह का स्थान हिरनों के जंगल ने ले लिया है। जिस तरह एक समय जमींदारों ने इनसानों को अपनी जागीरों से निकाल बाहर किया था, उसी तरह अब उन्होंने भेड़ों को निकाल बाहर किया और अपनी जमीनों पर नये किरायेदारों को-जंगली जानवरों और पक्षियों को-ला बसाया फोरफ़ारशायर में डेलहौजी के प्रलं की जागीर से चलना शुरू करके जान मोनोट्स तक चलते जाइये, पाप कभी जंगलों के बाहर नहीं निकलेंगे. इनमें से बहुत से जंगलों में लोमड़ियां, बन-बिलाव, मार्टन, गन्धमार्जार, वीजेल और पहाड़ी बरगोश बहुतायत से मिलते है; और परहे, गिलहरियां और चूहे अभी हाल ही में इस . ... . .
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