पूंजीवादी उत्पादन ग) मूल्य का सामान्य रूप १कोट २० गडकपड़ा १० पौण्ड चाय ४० पौडहवा १ क्वार्टर अनाज २ माँस सोना १/२ टन लोहा 'क' माल का 'प' परिमाण इत्यादि . १) मूल्य के रूप का बदला हुमा स्वरूप . . अब तमाम माल अपना मूल्य (१) सरल रूप में व्यक्त करते हैं, क्योंकि सब का मूल्य केवल एक माल के रूप में व्यक्त किया जाता है, और (२) एकता के साप व्यक्त करते हैं, क्योंकि सब का मूल्य उसी एक माल के रूप में व्यक्त किया जाता है। मूल्य का यह रूप सब मालों के लिये प्राथमिक और एक सा है, इसलिये वह सामान्य रूप है। 'क' और 'ख' म्प केवल इस योग्य थे कि किसी भी एक माल के मूल्य को उसके उपयोग-मूल्य-अथवा भौतिक रूप-से भिन्न किसी चीज के रूप में व्यक्त कर दें। पहले रूप ('क') से ऐसे समीकरण मिलते थे, जैसे १ कोट-२० गत कपड़ा, १० पौड चाय-१/२ टन लोहा। कोट के मूल्य का कपड़े के साथ चाय के मूल्य का लोहे के साथ समीकरण कर दिया जाता है। लेकिन कपड़े के साथ और फिर लोहे के साथ समीकरण किया जाना उतना ही भिन्न होता है, जितने भिन्न कपड़ा और लोहा है। जाहिर है कि यह रूप व्यावहारिक दृष्टि से केवल बहुत शुरू में ही पाया जा सकता है, जब कि श्रम से पैदा होने बाली वस्तुएं अकस्मात और यदा-कदा हो जाने वाले विनिमय के द्वारा ही कभी-कभार मालों का रूप धारण कर लेती थीं। बसरा रूप ('ख') पहले म की तुलना में किसी माल के उपयोग मूल्य से उसके मूल्य के अन्तर को अधिक पर्याप्त ढंग से स्पष्ट कर देता है, क्योंकि उसमें कोट का मूल्य तमाम सम्भव रूपों में कोट के शारीरिक रूप के मुकाबले में रख दिया जाता है। उसका कपड़े, लोहे, पाय, संक्षेप में यह कि सिर्फ एक कोट को छोड़कर बाकी हर चीज के साथ समीकरण किया जाता है। दूसरी भोर, मूल्य की किसी ऐसी सामान्य अभिव्यंजना का, जो समान रूप से सब मालों के काम में पा सके, सीधे तौर पर अपवर्जन कर दिया जाता है, क्योंकि प्रत्येक माल के समीकरण में प्रब बाकी सब माल केवल सम-मूल्यों के रूप में सामने पाते हैं। मूल्य के विस्तारित रूप का पहली बार वास्तव में उस बात जन्म होता है, अब मम की किसी जास पैदावार का, ते डोरो का, अपवार-कम में नहीं, बल्कि भारतन नाना प्रकार के दूसरे मालों से विनिमय होने लगता है। मूल्य का तीसरा और सबसे बार में विकसित होने वाला म मालों की पूरी दुनिया के मूल्यों को केवल एक माल के ममें-पानी कपड़े के रूप में व्यक्त करता है, वो इस काम .
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