माल ८१ . . के लिये अलग कर दिया जाता है। इस प्रकार, यह तीसरा रूप इन तमाम मालों के मूल्यों को कपड़े के साथ उनकी समता की शकल में प्रस्तुत करता है। अब चूंकि हर माल के मूल्य का कपड़े के साथ समीकरण किया जाता है, इसलिये न केवल उसके अपने उपयोग मूल्य के साथ, बल्कि बाकी सब उपयोग-मूल्यों के साथ भी माम तौर पर उसका अन्तर स्पष्ट हो जाता है, और इसी तम्य के फलस्वरूप वह उस तत्व के रूप में व्यक्त होता है, जो सब मालों में समान रूप से मौजूद है। इस (तीसरे) म के द्वारा मालों का पहली बार कारगर डंग से मूल्यों के रूप में एक दूसरे के साथ सम्बंध स्थापित होता है या यूं कहिये कि वे विनिमय- मूल्यों के रूप में सामने लाये जाते हैं। शुरू के पहले दो रूपों में प्रत्येक माल का मूल्य या तो उससे भिन्न प्रकार के किसी एक माल के रूप में या ऐसे बहुत से मालों के रूप में व्यक्त होता है। दोनों सूरतों में हर अलग-अलग माल का, यो कहिये, अपना निजी काम है कि अपने मूल्य के लिये किसी अभिव्यंजना की तलाश करे, और यह काम वह बाकी सब मालों की मदद के बिना पूरा करता है। ये बाक़ी माल उस माल के सम्बंध में सम-मूल्यों की निष्क्रिय भूमिका अदा करते हैं। मूल्य का सामान्य रूप ('ग') मालों को पूरी दुनिया की संयुक्त कार्रवाई के फलस्वरूप अस्तित्व में प्राता है, और उसके अस्तित्व में पाने का यही एकमात्र ढंग है। कोई भी माल अपने मूल्य की सामान्य अभिव्यंजना केवल उसी दशा में प्राप्त कर सकता है, जब उसके साथ-साथ बाकी सब माल भी एक ही सम-मूल्य के रूप में अपने मूल्यों को व्यक्त करें, और हर नये माल को भी उनका अनुसरण करते हुए अनिवार्य रूप से ऐसा ही करना होता है। इस प्रकार, यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मूल्यों के रूप में मालों का अस्तित्व चूंकि विशुद्ध सामाजिक अस्तित्व होता है, इसलिये यह सामाजिक अस्तित्व केवल उनके तमाम सामाजिक सम्बंधों की सम्पूर्णता के द्वारा ही व्यक्त हो सकता है और इसलिये उनके मूल्य का रूप कोई सामाजिक तौर पर मान्य रूप होना चाहिये। सब मालों का चूंकि अब कपड़े के साथ समीकरण किया जाता है, इसलिये वे सामान्य रूप से मूल्य होने के रूप में केवल गुणात्मक दृष्टि से समान प्रतीत होते हैं, बल्कि ऐसे मूल्यों की तरह भी सामने आते हैं, जिनके परिमाणों का आपस में मुकाबला किया जा सकता है। उनके मूल्यों के परिमाणों को कि एक ही वस्तु के रूप में-पानी कपड़े के रूप में- व्यक्त किया जाता है, इसलिये इन परिमाणों का एक दूसरे के साथ भी मुकाबला हो जाता है। उदाहरण के लिये, चूंकि १० पौडवाय-२० गड कपड़ा और ४० पौडहवा-२० गड कपड़ा, इसलिये १० पौड चाय-४० पौडहवा। दूसरे शब्दों में, १ पौड चाय में मूल्य का जितना तत्व-अर्थात् जितना प्रम -निहित है, १ पौड हवे में उसका केवल एक चौथाई निहित है। सापेक्ष मूल्य का सामान्य म, जिसके अन्तर्गत मालों की पूरी दुनिया मा जाती है, उस एक माल को, बो बाकी सब मालों से अलग कर दिया जाता है और जिससे सम-मूल्य की भूमिका अदा करायी जाती है,-पानी हमारे उदाहरण में 'कपड़ा' नामक माल को,-सार्वत्रिक सम-मूल्य में बदल देता है। अब सभी मालों का मूल्य समान ढंग से कपड़े का शारीरिक म पारण कर लेता है। प्रतएव अब कपड़े का सभी मालों से और प्रत्येक माल सीमा विनिमय हो सकता है। 'कपड़ा' नामक पदार्थ हर प्रकार के मानव-मन का दृश्यमान अवतार, उसका सामाजिक कोमशायी म बन जाता है। बुनाई, बो कि एक बास बीच-कपड़ा-तैयार करने पाले कुछ व्यक्तियों का निवी मम होती है, इसके परिणामस्वरूप एक सामाजिक म-यानी . 6-45
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