जिन लोगों की सम्पत्ति छीन ली गयी, उनके खिलाफ खूनी कानूनों का बनाया जाना ८२७ . परिस्थितियों के रहते हुए कभी नहीं मिट सकती। परन्तु पूंजीवादी उत्पादन के ऐतिहासिक जन्म-काल में परिस्थिति इससे भिन्न होती है। अपने उभार के काल में पूंजीपति वर्ग को मजदूरी का "नियमन" करने के लिये, पर्वात् उसको जबर्दस्ती कम करके ऐसी सीमानों के भीतर रखने के लिये, जो अतिरिक्त मूल्य बनाने के लिये सहायताजनक हों, काम के दिन को लम्बा करने के लिये और खुद मजदूर की सामान्य परवशता को बनाये रखने के लिये राज्य की शक्ति की पावश्यकता होती है और वह उसका प्रयोग भी करता है। तथाकषित माविम संचय का यह एक प्रत्यन्त प्रावश्यक तत्व है। १४ वीं शताब्दी के उत्तरार्ष में मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों के जिस वर्ग का जन्म हुमा था, वह उस समय और अगली शताब्दी में भी भावाबी का एक बहुत छोटा हिस्सा पा। देहात में भूमि के स्वामी स्वतंत्र किसानों के कारण और शहरों में शिल्पी संघों के कारण वह पूरी तरह सुरक्षित बा। देहात में और शहरों में सामाजिक दृष्टि से मालिक और मजदूर की हैसियत में कोई विशेष फर्क नहीं पा। पूंजी के सम्बंध में श्रम की अधीनता केवल प्रौपचारिक ढंग की पी,-अर्थात् खुब उत्पादन की प्रणाली ने अभी कोई विशिष्ट पूंजीवादी म धारण नहीं किया था। पिर पूंजी के मुकाबले में अस्थिर पूंजी का पलड़ा बहुत भारी था। इसलिये पूंजी के प्रत्येक संचय के साथ मजदूरों की मांग बढ़ती जाती थी, जबकि उनकी पूर्ति केवल धीरे-धीरे बढ़ रही थी। राष्ट्रीय पैदावार का एक बड़ा हिस्सा, जो बाद को पूंजीवादी संचय के कोष में परिणत हो गया, अभी तक मजदूर के उपभोग के कोष का ही भाग बना हुमाया। इंगलैण्ड में मजदूरों के बारे में कानून बनाने की शुरूमात १३४६ में हुई थी, जब एव तृतीय के राम-काल में Statute of Labourers (मजदूरों का परिनियम) बनाया गया था (इन कानूनों का उद्देश्य शुरू से ही मजदूर का शोषण करना था और प्रत्येक काल में उनका स्वरूप समान रूप से मजदूरविरोषी रहा)। १३५० में राजा जान के नाम से फ्रांस में बो फरमान जारी हुमा पा, वह भी इसी प्रकार का था। इंगलैग और फ्रांस के कानून समानान्तर चलते हैं और उनका अभिप्राय भी एक सा रहता है। जहां तक मजदूर- कानूनों का उद्देश्य काम के दिन को लम्बा करना था, में इस विषय की पुनः पर्चा नहीं करूंगा, क्योंकि उसपर पहले ही (बसवें अध्याय के अनुभाग ५ में) विचार किया . - . Statute of Labourers (मजदूरों का परिनियम) हाउस माफ कामन्स के बहुत चोर देने पर पास किया गया था। एक अनुवार-पली लेखक ने बड़े भोलेपन के साथ कहा है: "पहले परीब लोग इतनी ऊंची मजबूरी मांगा करते थे कि उद्योग और धन-सम्पदा के लिये बतरा पैदा हो गया था। अब उनकी मजदूरी इतनी कम हो गयी है कि उद्योग और धन- सम्पदा के लिये फिर वैसा ही और शायद उससे भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है, मगर यह 'ऐग्म स्मिथ के अनुसार, “अब कभी विधान-सभा मालिकों और उनके मजदूरों के मतभेदों का नियमन करने का प्रयत्न करती है, तब सदा मालिक ही उसके परामर्शदातामों का काम करते है।" लिंगुएत ने कहा है : "L'esprit des lois, cest la propriete' ("कानूनों की पात्मा है सम्पत्ति!")।
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