८२८ पूंजीवादी उत्पादन . . खतरा एक दूसरे रूम में सामने पाता है। कानून बनाकर ले कर दिया गया कि शहर और बेहात में कार्यानुसार मजदूरी और समयानुसार मजदूरी की या बरें रहनी चाहिये। तिहर मजदूरों के लिये निश्चय हुमा कि वे पूरे साल के लिये नौकर हुमा करेंगे, और शहरी मजदूरों के लिये ते हुमा कि वे किसी भी अवधि के लिये "जुली मन्नी में अपनी मम-शक्ति को बेचेंगे। कानून के द्वारा मजदूरी की वो बरें निश्चित कर दी गयी थी, उनसे अधिक मजदूरी देने की मनाही कर दी गयी और ऐलान कर दिया गया कि इस अपराध के लिये सवा दी जायेगी। लेकिन निश्चित दर से अधिक मजदूरी लेने वालों के लिये देने वालों से अधिक कड़ी सबा का विधान किया गया था। (इसी प्रकार, एलिजावेष के राज्य-काल में सीलतर मजदूरों का जो कानून बनाया गया था, उसकी १८ बी और १९ वी धाराओं में निश्चित बर से अधिक मजदूरी देने वालों के लिये इस दिन की और का विधान पा, पर लेने वालों के लिये इक्कीस दिन को और निश्चित की गयी थी।) १३६० में एक कानून बनाकर इन सवालों को और बढ़ा दिया गया और मालिकों को यह अधिकार दिया गया कि कानूनी पर पर श्रम लेने के लिये वे मजदूरों को मार-पीट भी सकते हैं। राजगीर और बई का काम करने वालों में विभिन्न प्रकार के संयोजनों के द्वारा, मापस में करार करके या कसमें प्रावि लाकर अपने को एकजुट कर रखा था। इस तरह की तमाम चीजों को गैरकानूनी करार दे दिया गया। १४ वीं शताब्दी से १९२५ तक, बब कि मजदूर यूनियनों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों को मंसूज किया गया, मजदूरों का संगठन करना एक भयानक अपराध समझा जाता था। १३४६ के मजदूरों के परिनियम तथा उसमें से फूटने वाली अनेक शाला प्रशासानों की मूल भावना इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि राज्य अधिकतम मजदूरी तो हमेशा निश्चित कर देता था, पर अल्पतम मजदूरी किसी हालत में निर्धारित नहीं करता था। जैसा कि हमें मालूम है, १६वीं शतानी में मजदूरों की हालत बहुत स्वाग खराब हो गयी थी। नकद मजदूरी बढ़ी, पर उस अनुपात में नहीं, जिस अनुपात में मुद्रा का मूल्य कम हो गया था या विस अनुपात में मालों के नाम बढ़ गये थे। इसलिये, असल में, मजदूरी पहले से कम हो गयी थी। फिर भी मजबूरी को बढ़ने से रोकने वाले सारे कानून व्यों के त्यो लागू रहे, और "दिनको कोई भी प्रारमी नौकर रखने को तैयार नहीं पा", उनके पहले की तरह अब भी कान काटे जाते और उनको नाम मोहे से वाया जाता था। एलिजावेष के राज्य-काल के वर्ष में सीलतर मजदूरों का बो कानून पास हुमा बा, उसके तीसरे अन्याय के द्वारा स्थानीय मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार दिया गया था कि कुछ बास तरह के मजदूरों की मजदूरी निश्चित कर सकते हैं और मौसम तवा मानों के नामों का बवाल रखते हुए उनमें हेर-फेर कर सकते हैं। पेम्स प्रथम ने श्रम के इन तमाम नियमों को बुनकरों, कताई करने वालों और प्रत्येक सम्भव कोटि के मजदूरों पर लागू कर दिया।' वा वितीय ने . . 1 "Sophisms of Free Trade. By a Barrister" ('parciar 4797 of the ant FT एक बैरिस्टर द्वारा विवेचन'), London, 1850, पृ. २०६। इसके मागे वह बड़े तीब ढंग से कहते है : "मालिकों के हित में तो हम तत्काल हस्तक्षेप करने को तैयार हो गये थे। अब क्या काम करने वालों के हित में कुछ नहीं किया जा सकता?" (पृ. २३६ )। 'जेम्स प्रथम के राज्यकाल के दूसरे कानून (अध्याय ६) की एक धारा से पता चलता है कि कपड़ा तैयार करने वाले कुछ कारखानेदारों ने स्थानीय मजिस्ट्रेटों के रूप में अपने
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